पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२८५

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या क्षत। पिचरिया २४४४ पिच्छलतिका पिचरिया-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पिचलना ] एक प्रकार का छोटा पिच्चा-मञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] सोलह मोतियों की माला जिसका वजन कोल्हू जिसकी कोठी छोटी होती है । एक धरन ( मोतियो की एक तौल ) हो (को०] । पिचलना-क्रि० अ० [हिं०] दे॰ 'कुचलना' । पिचिट-सञ्चा पु० [सं०] एक विषेला कीडा [को॰] । पिचवा-सञ्ज्ञा पुं० [?] वटवृक्ष । (डि.) । पिच्चित'—वि० [स० पिञ्च ( = दयना, पिचकना )] पिचका हुआ । पिचव्य-सज्ञा पुं॰ [म०] कपास का पौधा (को०] । दवा हुमा । जो दबकर चिपटा हो गया हो। पिचाश, पिचास-सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'पिशाच' । पिच्चिस-सञ्ज्ञा पुं० १ वह वस्तु जो दबकर पिचक गई हो या चिपटी पिचिंड-व० [सं० पिचिण्ड ] १ उदर । पेट । २ पशु का कोई हो गई हो। २ सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का घाव मग (फो०)। पिचिंडक-वि० [सं० पिचिण्टिक ] पेट । प्रौदरिक [को०] । विशेष—यह शरीर के किसी भाग पर किसी भारी वस्तु की चोट लगने अथवा दाव पड़ने के कारण होता है। जो स्थान पिचिंडिका-शा श्री० [सं० पिचिण्डिका ] पिंडली । दवता है वह फैलकर चिपटा हो जाता है और प्राय उस पिचिंडी-वि० [सं० पिचिण्डिन् ] तोंदिल | तु दिल [को०] । स्थान की हड्डी की भी यही दशा होती है, त्वचा कट जाती पिचीस-वि० [हिं० ] दे॰ 'पचीस' । उ०-पांचों यार पिचीसों है और कटा हुआ भाग रुधिर और मज्जा से चिपचिपा वस कर इनमे चहै कोई होय ।-कबीर श०, भा० १, बना रहता है। पृ०६७। पिच्ची-वि० [हिं०] दे० 'पिच्चित'। पिचु-सज्ञा पुं० [स०] १ रूई। २ एक प्रकार का कोढ़ । कोठ का पिच्छ-प्रज्ञा पुं० [सं०] 1 किसी पशु की पूछ । ऐसी पूछ जिसपर एक भेद । ३ एक तौल जो दो तोले के बराबर होती है। वाल हो। लागूल । २ मोर को पूछ। मयूरपुच्छ। ३ ४. एक अन्न (को०) । ५ एक असुर का नाम । मोर की चोटी। चूडा। ४. मोचरस । ५. पख । डैना (को०)। पिचुक -सज्ञा स्त्री० [स०] मैनफल का वृक्ष । ६ वाण का पख (को०)। ७ दुम या पूछ के पख । जैसे, पिचुकारी-पञ्चा मी० [हिं०] दे० 'पिचकारी' । उ०—पाप पुन्य मोर का (को०)। दोउ ले पिचकारी छोडत हैं बारी बारी।-चरण वानी, पिच्छक-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] १ लागूल । पूछ । २ मोचरस । पृ० ७०। पिच्छतिका-पशा स्त्री० [स०] शीशम । शिशिपा। पिचुकिया–पञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० पिचको ] १ छोटी पिचकारी। २ पिच्छन-मज्ञा पुं० [मं०] किसी वस्तु को अत्यत दवाना । दवाकर वह गुझिया (कवा) जिसमें केवल गुड भौर सोठ भरी चिपटा करने की क्रिया। मत्यत पीडन । जाती है। पिच्छपाद -सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पैरो में होनेवाला एक रोग । विशेष-यह एक प्रकार का पकवान है जो होली प्रादि के पिच्छपादी-वि० [ स० पिच्छपादिन् ] जिसको पिच्छपाद हो गया विशिष्ट अवसरों पर बनता है। हो । पिच्छपाद रोगयुक्त ( घोडा )। पिचुका-पुञ्ज्ञा पुं० [हिं० पिचकना] १ पिचकारी । २ गोलगप्पा । पिच्छबाण -सञ्ज्ञा पुं० [सं०] वाज । श्येन । पिचुतूल -सञ्ज्ञा पु० [स०] कपास की रूई । रूई (को०] । पिच्छभार-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] मोर की पूछ । पिचुमंद-पञ्चा पुं० [सं० पिवुमन्द] नीम का पेड [को०] । पिच्छम-वि० [हिं० पच्छिम] दे० 'पश्चिम' । उ०-घर पिच्छम पिचुमर्द-सज्ञा पुं० [०] नीम का पेड । निरखण मन धारे। परसण हरि द्वारका पधारे।-रा० पिचुल-सचा पु० [सं०] १. झाऊ का पेड (डि०)। २ समुद्रफल । रू०, पृ० १२ । ३. रूई। ४ गोताखोर | ५ जल काक । जलवायस [को०] । पिच्छल'-सज्ञा पुं० [सं०] १ मोचरस । २ प्रकासवेल । पिचू-पचा पु० [देश॰] १६ माशे को तौल । कर्ण । आकाशवल्ली। ३ शीशम । शिशिपा वृक्ष । ४ वासुकि के वश का एक सर्प। पर्या०-अक्ष । तिंदुक । विडाक्ष । परडक । सुवर्ण। हंसपद । उदुयर। पिच्छल-वि• जिसपर से पैर रपट या फिसल जाय । रपटन- वाला । चिकना। पिचूका-सया पुं० [हिं० पिचकना] दे० 'पिचुक्का'। पिच्छल वि० [हिं०] दे० 'पिछला'। पिचोवरसो-प्रज्ञा पुं० [सं० पञ्चोत्तरशत] एक सौ पाँच की सख्या। पिच्छल'–सञ्चा पुं० [हिं० पिछला ] जहाज का पिछला भाग । सौ और पांच (पहाडा) । (लश.)। पिच्चट'-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] १ वैद्यक के अनुसार प्रांख का एक रोग। पिच्छलच्छदा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ बेर। बदरीवृक्ष । २ पोय । २ सीसा । रांगा। उपोदकी शाक। पिच्चट-वि० दबाकर निचोडा या चिपटा किया हुआ [को०) । पिच्छलतिका-सज्ञा स्त्री० [सं०] पूंछ पर के पख [को०] ।