पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२७

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पंचसूना पंचवान २७३६ पंचवान-सज्ञा पु० [ म० पञ्चवाण? ] राजपूतो की एक जाति । राज्य की प्रवडता और प्रभुता के प्रति परस्पर समान, (२) परस्पर अनाक्रमण का आश्वासन, (३) मातरिक मामलो में पंचवायु-सशा पुं० [ स० पञ्चवायु ] शरीरस्थ पाँच वायु जिनके नाम अहस्तदोप, (४) परस्पर समानता का भाव भोर (५) हैं-प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान । उ०-अन्नमय कोश शातिमय सहअस्तित्व। सु तो पिंड है प्रगट यह प्रानमय कोश पचवायु हू वषानिये । पंचशूरण-सशा पुं० [सं० पञ्चशूरण ] वैद्यक मे पांच विशेप कद- सुदर ग्र०, भा०२ पृ० ५६८ । अत्यम्लपर्णी, काडवेल, मालाकद, सूग्न, सफेर सूरन । पंचवार्षिक-1ि. [म० पञ्चवार्पिक] हर पांचवें वर्ष होनेवाला [को०] । पचविश–वि [मै० पञ्चविंश ] पच्चीसवां को०)। पंचशैरीपक-मरा पुं० [सं० पञ्चशेरीपफ] सिरिम वृक्ष के पांच मग जो प्रोपध के काम आते हैं-जड, छाल, पत्ते, फूल और फल । पंचविंश-सज्ञा पु० ( पच्चीस तत्वो से युक्त ) विपणु (को॰) । पचशैल-सज्ञा पु० [स० पञ्चशन] पुराणो मे वरिणत एव पर्वत [को० । पचविंशति--वि० [म. पचविंश ] पच्चीस [को० । पचविध-वि० [सं० पञ्चविध ] १. पंचगुना । २ पांच प्रकार का पंचप-वि० [म० पञ्चप] पांच या छह (को०] । [को०] । पंचपष्टि'-सज्ञा सी० [म० पञ्चपष्टि] पैंसठ की सरया । यौ०-पचविधप्रकृति शासन के पांच अवयव-अमात्य, राष्ट्र, पचपष्टि-वि० पैसठ। दुर्ग, अर्थ, और दड। पचसंधि-मजा पी० [स० पञ्चसन्धि] व्याकरण में सधि के पांच पंचवृक्ष-सञ्ज्ञा पु० [ स० पञ्चवृक्ष ] पांच देववृक्ष जिनके नाम हैं- भेद-स्वर सपि, व्यजनसधि, विसर्गसघि, स्वादिसधि और मदार, पारिजात, सतान, कल्पवृक्ष और हरिचदन को०] । प्रकृति भाव । २. रुपकी प्रकृति तथा प्रवस्थानो के पंचशब्द-सपा पुं० [ स० पञ्चशब्द ] १ पांच मगलसूचक वाजे जो समिश्रण से होनेवाली पांच सघिया। ये इस प्रकार हैं-मुख मगल कार्यों में बजाए जाते हैं - तत्री, ताल, झांझ, नगारा प्रतिमुख, गर्भ, विमर्श और निर्वहण (को०) । और तुरही। ., 'पचमहाशब्द' । २ व्याकरण के अनुसार पंचसप्तति'-पी०जी० [स० पञ्चसप्तति] पचहत्तर की सन्या । सूत्र, वातिक, भाष्य, कोश और महाकवियो के प्रयोग । ३. पघसप्ततिः-वि० पचहत्तर । पांच प्रकार की ध्वनि-वेदध्वनि, वदीध्वनि, जयध्वनि, पाख- पचसबद-उल पु० [स० पञ्चशब्द] " 'पचशब्द' । उ०—(क) ध्वनि और निशानध्वनि। इतने सुभट्ट जि ज़ह धार । बजि पचसवद वाजे करार।- पंचशर- समा सं० [ म०] १ कामदेव के पांच वाण । २ कामदेव । पृ० रा०, ८।१५। (स) पचसबद घुनि मगल गाना। पट पंचशस्य - सज्ञा पुं॰ [ म० पञ्चशस्य ] देवकार्य में प्रयुक्त होनेवाले पावडे परहि विधि नाना । —तुलमी (शब्द०)। धान, मूग, तिल, उडद, और जो ये पांच अन्न [को०] । पपसर-सग पुं० [स० पञ्चशर] कामदेव । दे० 'पचशर' । उ०- पचशाख-सञ्ज्ञा पु० [ स० पञ्चशाख ] १ हाथ। २ पनसाखा । मदन मनोभव पचसर मयन कुसुमसर मार। -अनेकार्थ, ३. हाथी (को०)। पृ०१८। पंचशारदीयमचा पु० [ म० पञ्चशारदीय ] एक प्रकार का पंचसर-शा पुं० [ स० पञ्च + स्वर या देश० ] ८० 'पचशब्द' । यज्ञ कोना उ०-मुरघर प्रगट थयौ महराजा। वाजे सु सुर पचसर पशिख - सना पु० [म. पञ्च शिख] १ सिंघा बाजा। २ एक वाजा । रा० रू०, पृ० ३०१ । मुनि जो महाभारत के अनुसार महर्षि कपिल के पुत्र थे । पचसिक-वि० [हिं० पचीस + एक ] पचीस । उ०-एक कोट विशेष-साख्य शास्त्र के ये एक प्रधान प्राचार्य थे। साख्य पंचसिक द्वारा पचे मागहि हाला ।-कवीर ग्र०, पृ० २७३ । सूत्रो मे इनके मत का उल्लेख मिलता है । इनको लोग द्वितीय पचसिद्धासी-मा सी० [सं० पञ्चसिमान्ती] ज्योतिष सवधी सूर्य कपिल कहते हैं। ये कपिल की शिष्यपरपरा के आसुरि के सिद्धात आदि पांच सिद्धात [को०] । शिष्य थे । ३ सिंह (को०) । पचसिद्धोषधि--पना सी० [सं० पञ्चसिनीपधि] वैद्यक मे ये पांच पचशोप -सज्ञा पुं॰ [ म० पञ्चशीर्ष ] एक प्रकार का सर्प [को० । प्रोपधियाँ-सालिव मिनी, वराहीकद, रोदती, साक्षी पचशील-मशा पु० [ स० पञ्चशील ] १ बौद्ध धर्म के अनुसार शील और सरहटी। या सदाचार के पांच सिद्धात जिनका आचरण प्रत्येक धर्मशील पचसुगधक-संशा पुं० [स० पञ्चसुगन्धक] वैद्यक में ये पांच सुगध व्यक्ति के लिये आवश्यक बताया गया है-(१) अस्तेय पोषधियां-लौंग, शीतलचीनी, अगर, जायफल, कपूर, ( चोरी न करना), (२) अहिंसा (हिंसा न करना), (३) अथवा कपूर, शीतलचीनी, लौंग, सुपारी और जायफल । ब्रह्मचर्य (व्यभिचार न करना), (४) सत्य (झूठ न बोलना) · पचसना-सज्ञा सी० [स० पञ्चसूना] मनु के अनुसार पांच प्रकार और (५) मादक द्रव्यों का भोग न करना। २ पांच राज की हिंसा जो गृहस्थो से गृहकार्य करने मे होती है। वे पांच नीतिक सिद्धांत जो सन् १९५४ के बांदुग समेलन में एशिया काम जिनके करने में छोटे छोटे जीवो की हिंसा होती है। और अफ्रीका के प्रमुख देशों द्वारा शाति बनाए रखने के विशेष-वे पाँच काम ये हैं-चूल्हा जलाना, प्राटा प्रादि पीसना, उद्देश्य से स्थिर किए गए हैं। ये इस प्रकार हैं।-(१) झाडू देना, कूटना और पानी का घड़ा रखना। इन्हें मनु ने