पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२६४

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पार्श्वगम २६७३ पार्श्वस्थ' पार्श्वगय–वि० [सं०] दे० 'पार्श्वग' [को०] । पहा है । पाश्वं ने कहा -'दयाहीन धर्म किसी काम का पार्श्वगायक-सचा पु० [स० पाश्व+गायक] [स्त्री० पार्श्वगायिका] नहीं' । एक दिन बगीचे में जाकर उन्होंने देखा कि एक जगह पाव में रहकर गानेवाला व्यक्ति । अभिनय या नाटक में दीवार पर नेमिनाथ चरित्र अकित है । उसे देख उन्हे वैराग्य पोट से गानेवाला व्यक्ति । उत्पन्न हुआ और उन्होंने दीक्षा ली तथा स्थान स्थान पर विशेष-दे० 'पारर्वगायन'। उपदेश और लोगो का उद्धार करते घूमने लगे । वे अग्नि पार्श्वगायन-सज्ञा पु० [सं० पार्श्व+गायन ] पर्दे के पीछे से गाना । के समान तेजस्वी, जल के समान निर्मल और आकाश के अभिनय या नाटक में प्रोट से गाना। समान निरवलब हए। काशी में जाकर उन्होने चौरासी दिन विशेष-पार्श्वगायन का उपयोग सिनेमा मे अधिक होता है। तपस्या करके ज्ञानलाभ किया और त्रिकालज्ञ हुए । पुद्र, जो अभिनेता या अभिनेत्रियां पभिनय के साथ गा नही पाते ताम्रलिप्त पादि अनेक देशो में उन्होने भ्रमण किया । ताम्र- उनके गीतो को अन्य गायक या गायिका से गवाया जाता है। लिप्त में उनके अनेक शिष्य हुए। म त में अपना निर्वाणकाल समीप जानकर समेत शिखर (पारसनाथ की पहाडी जो ये गायक पर्दे पर सामने नहीं पाते इनके गीत ध्वनि अकित हजारीबाग मैं है ) पर चले गए जहाँ श्रावण शुषला अष्टमी करनेवाली मशीन ( टेप रिकार्डर ) पर अकित कर लिए जाते हैं जिन्हें अभिनय के समय यथास्थान बजाकर समिलित को योग द्वारा उन्होंने शरीर छोडा । कर लिया जाता है। इस प्रकार से गायक या गायिका को पार्श्वपरिवर्तन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. करवट बदलना। २ भाद्रपद पार्श्वगायक या पार्श्वगायिका कहते हैं। मास के कृत्णपक्ष में द्वादशी के दिन पडनेवाला एक पार्षचर-वि० [सं०] दे० 'पावंग' [को०] । त्योहार (को०। पावतीय-वि० [सं० ] बगल में स्थित । पाश्ववर्ती (को०] । पर्श्वभाग-सज्ञा पुं० [सं०] बगल का भाग । घाज (को०) । पार्श्वद -सञ्ज्ञा पुं० [स०] नौकर । सेवक । उ०—पार्श्वद गण पार्श्वभूमि-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पावं + भूमि ] पृष्ठभूमि । आधार । इधर उधर दौड धूप करके अपना अपना काम करने लगे। उ.-यहाँ तक कि प्रेमचक्ष जैसे लेखक को भी मैं स्वतत्र -वैशाली, पृ० २४६ । पार्श्वभूमि नहीं दे सका हूँ।-नया०, पृ० ४ । पार्श्वदर्शन-सज्ञा पुं॰ [ सं० पाव+दर्शन ] वगल से देखना । बगल पार्श्वमहलो-सचा पुं० [सं० पाश्वमएडलिन् ] नृत्य में एक विशेष से देखने की क्रिया। उ०-धक्ति विरक्त पाश्र्वदर्शन से प्रकार की मुद्रा (को०] । खींच नयन ।-अपरा, पृ०६२ । पार्श्व मौलि-सचा पुं० [सं०] कुबेर का एक मंत्री। पार्श्वदेश-सज्ञा पुं० [ स०] बगल । पाश्वं [को॰] । पार्श्ववका-सञ्ज्ञा पु० [स०] महादेव [को०] । पार्श्वनाथ-सज्ञा पुं० [सं० ] जैनो के तेईसवें तीर्थंकर । पार्श्ववर्ती -सक्षा पुं० [सं० पाश्ववर्तिन् ] [ मी० पाश्ववर्सिनी ] विशेष-वाराणसी में अश्वसेन नाम के इक्ष्वाकुवशीय राजा थे पास रहनेवाला । निकटस्थ जन । मुसाहब । सेवक । जो बडे धर्मात्मा थे। उनकी रानी वामा भी बडी विदुषी पाश्ववर्ती - वि० १ जो बगल में हो। जो पास मे हो । २ और धर्मशीला थी। उनके गर्भ से पौष कृष्ण दशमी को एक निकटस्थ । पास में या निकट में ही स्थित [को०] । महातेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ जिमका वर्ण नील था और पावंशय-वि० [सं०] १ बगल में सोनेवाला। २ करवट से जिसके शरीर पर सर्पचिह्न था। सब लोको में मानद फैल सोनेवाला [को०] । गया। वामा देवी ने गर्भकाल में एक बार अपने पार्श्व में पार्श्वशूल-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पसच्ची का दर्द । एक सपं देखा था इससे पुत्र का नाम 'पाश्व' रखा गया। पावं दिन दिन वढने लगे और नौ हाथ लबे हुए। कुशस्थान विशेष-सुश्रुत में लिखा है कि इसमें सूई छेदने की सी पीडा होती है और साँस कष्ट से निकलती है। यह कफ और वायु के राजा प्रसेनजित् की कन्या प्रभावती 'पाश्वं' पर अनुरक्त के बिगडने से होता है। हुई । यह सुन कलिंग देश के यवन नामक ने प्रभावती का हरण करने के विचार से कुशस्थान को आ घेरा। पार्श्वसंगीत-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पाव+सङ्गीत] १ वह गीत जो नाटक अश्वसेन के यहां जब यह समाचार पहुंचा तब उन्होने वही या सिनेमा में अभिनय के साथ साथ पृष्ठभूमि में चलता भारी सेना के साथ पावं को कुशस्थल भेजा । पहले तो रहता है । २ वह सगीत जो पाश्र्वगायक या पाश्र्व गायिका कलिंगराज युद्ध के लिये तैयार हुआ पर जब अपने मत्री के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। मुख से उसने पार्श्व का प्रभाव सुना तब पाकर क्षमा मांगी। पार्श्वसंधान-सज्ञा पुं० [सं० पार्श्वसन्धान ] बगल से इंटा को अत में प्रभावनी के साथ पावं का विवाह हुमा । एक दिन रखकर जुठाई करना (को०] । पार्श्व ने अपने महल से देखा कि पुरवासी पूजा की सामग्री पार्श्वसूत्रक-सञ्ज्ञा पु० [स०] प्राचीन काल का एक प्राभूषण । लिये एक ओर जा रहे हैं । वहां जाकर उन्होने देखा कि एक पार्श्वस्थ'-वि० [स०] १ पास खडा रहनेवाला। २, निकट का तपस्वी पचाग्नि ताप रहा है और अग्नि मे एक सर्प मरा निकटस्थ (को०] । ६-३२ 1