पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२६

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होती है। पंचमेली २७३५ पंचवाघ सब प्रकार की चीजें मिली हो। मिला जुला ढेर। ३ पंचलोकपाल-संज्ञा पुं० [सं० पञ्चलोकपाल ] पाँच सरक्षक देव- साधारण । विनायक, दुर्गा, वायु, प्राकाश और अश्विनीकुमार [को०] । पचमेली-वि० [हिं० पचमेल ] पांच चीजो की मेलवाली (मिठाई. पंचलोह-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पञ्चलोह ] दे० 'पचलौह' । आदि) । मिश्रित । पंचलोहक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पञ्चलोहक ] दे० 'पचलौह' । पंचमेवा-सज्ञा पु० [हिं पांच - मेवा ] किसमिस, बदाम, गरी, पंचलौह-सज्ञा पु० [ स०] १ पांच धातुएँ–सोना, चाँदी, तांबा, छुहाडा और चिरोंजी यह पाच प्रकार का मेवा । सीसा और रांगा। २ पाँच प्रकार का लोहा-बचलौह, पंचमेश-मशा पु० [ स० पञ्चमेश ] फलित ज्योतिष के अनुसार कांतलौह, पिंडलोह और क्रौंचलौह । पांचवें घर का स्वामी। पंचवक्त्र--सज्ञा पु० [ स० पञ्चवक्त्र ] दे० 'पचमुख' [को०] । पचयज्ञ-मश पु० [म० पञ्चयज्ञ ] पचमहायज्ञ । पचवक्त्रा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० पञ्चवक्त्रा ] दुर्गा [को०] । पंचयाम-सशा पु० [स० पञ्चयाम ] दिन । पंचवट-सचा पुं० [सं० पञ्चवट [ यज्ञोपवीत [को०] । विशेष-शास्त्रो मे दिन के पांच पहर और रात के तीन पहर पंचवटी-सज्ञा पुं॰ [ स० पञ्चवटी ] रामायण के अनुसार दहकारण्य माने गए हैं। रात के पहले चार दड और पिछले चार दड के प्रतर्गत एक स्थान जहाँ रामचंद्र जी वनवास में रहे थे । दिन में लिए गए हैं। यह स्थान गोदावरी के किनारे पर नासिक के पास है । सीता पचरग-वि० [हि० पाँच +रग] १ पांच रग का। अनेक रगो हरण यही हुआ था। २ पांच वृक्षो का वह समूह जो ये का । रग विरग का। हैं-अश्वत्थ, विल्व, वट, धात्री और अशोक । पचरक्षक-मञ्ज्ञा पु० [ म० पञ्चरक्षक ] पखोडा वृक्ष । विशेष-हेमाद्रि प्रतखड मे इनके लगाने की विधि का वर्णन पंचरत्न-सज्ञा पुं० [ मा पञ्चरत्न ] पाँच प्रकार के रत्न । पौर कहा गया है कि ऐसे स्थान पर तपस्या और मप्रसिद्धि विशेप-कुछ लोग सोना, हीरा, नीलम, लाल और मोती को पंचवदन-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पञ्चवदन ] शिव । पचरत्न मानते हैं और कुछ लोग मोती, मूगा, वेफ्रात, हीरा पंचवर्ग-सज्ञा पुं० [सं० पञ्चवर्ग ] १. पांच वस्तुप्रो का समूह । जैसे, और पन्ना को। २ महाभारत के पांच प्रसिद्ध पाख्यान- पांच प्रकार के चर, पाँच हड्डियाँ। २. पच महाभूत-क्षिति, गीता, विष्णुसस्रनाम, भीष्मस्तवराज, अनुस्मृति और गजेंद्र- मोक्ष (को०)। जल, पावक, गगन और समीर (को०)। ३ पांच ज्ञानेंद्रियाँ (को०)। ४. पचमहायज्ञ (को०) । ५, पाँच प्रकार के गुप्तचर- पंचरश्मि-सज्ञा पु० [ म० पञ्चरश्मि ] सूर्य को०] । कापटिक, उदास्थित, गृहपति व्यजन, वैदेहिक व्यजन और पचरसा-मज्ञा पु० [म० पञ्चरमा ] आमला । तापस व्यजन, (को०)। पंचरात्र-सज्ञा पु० [सं० पञ्चरान ] १ पांच रातो का समूह । २ पंचवर्ण-शा पु० [ स० पञ्चवर्ण] १ प्रणव के पांच वर्ण अर्थात् एक यज्ञ जो पांच दिन मे होता था। ३ वैष्णव धर्म का एक अ, उ, म, नाद और विदु। २. एक वन का नाम । प्रसिद्ध ग्रथ । ४ भास कवि का एक नाटक । ३. एक पर्वत का नाम । पंचराशिक-सज्ञा पुं॰ [ म० पञ्चराशिक ] गणित मे एक प्रकार का पंचवर्षदेशीय–वि० [सं० पञ्चवर्षदेशीय] लगभग पांच वर्ष पुराना । हिसाव जिसमे चार ज्ञात राशियो के द्वारा पांचवीं अज्ञात पांच वर्ष का [को॰] । राशि का पता लगाया जाता है। पंचवर्षीय-१० [म० पञ्चवर्षीय ] पाँच वर्ष का । पाँच वर्ष तक पंचरीक-रशा पुं० [स० पञ्चरीक ] सगीत शास्त्र के अनुसार चलनेवाला । जैसे, पचषीय योजना । एक ताल । पषषल्कल-मशा पु० [सं० पञ्चवल्कल ] वट, गूलर, पीपल, पाकर और वेत या सिरिस की छाल । पचल-सा पु० [स० पञ्चल ] शकरकंद । पंचवल्लमा-पशा स्त्री॰ [ पञ्चवल्लभा ] द्रौपदी का नाम को०] । पचलक्षण-सज्ञा पुं॰ [ म० पञ्चलक्षण ] पुराण के पांच चिह्न या लक्षण जो ये हैं, 'सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च । पचवाण-सशा पुं० [सं० पञ्चवाण] १ कामदेव के पाँच वाण जिनके वशानुचरित चैव पुराण पचलक्षणम्'। अर्थात्-सृष्टि की नाय ये हैं-द्रवण, शोषण, तापन, मोहन और उन्मादन । उत्पत्ति, प्रलय, देवताओ की उत्पत्ति और परपरा, मन्वतर कामदेव के पांच पुष्पवाणो के नाम ये हैं-कमल, अशोक, आन, नवमल्लिका और नीलोत्पल । २ कामदेव । मनु के वश का विस्तार । पंचवातीय-पया पु० [स० पञ्चवातीय ] राजसूय के अतर्गत एक पंचलवण-समा पु० [स० पञ्चलवण] वैद्यक शास्त्रानुसार पाँच प्रकार प्रकार का होम । उ०-शुनासीरीय और पचवातीय याग अनु- के लवण-काँच, संघा, सामुद्र, विट और सोचर । ण्ठान हुआ।-वैशाली०, पृ० ४१३ । पंचलागलक-मशा पुं० [सं० पञ्चलाझलक ] एक महादान जिसमें पचवाद्य-सञ्चा पुं० [पु०] तंत्र, पानद्ध, सुषिर, घन और वीरो पाँच हल के जोत के वरावर भूमि दी जाती है [को॰] । का गर्जन । .