पारसनाथ २९६७ पारा (मथ) हैं। इसके कई विभाग हैं जिनमें 'गाथ' सबसे प्राचीन प्रारम अपने अतिम राजा यज्दगर्द के पराभव काल से और जरथुस्त्र के मुंह से निकला हुमा माना जाता है। एक भाग लेते हैं। का नाम 'यश्न' है जो वैदिक 'यज्ञ' शब्द का रूपातर मात्र है। पारसीक-सज्ञा पुं० [सं०] १ पारस देश । २ पारस देश का विस्पर्द, यस्त ( वैदिक इष्टि ), बदिदाद् मादि इसके और निवासी । उ०-फुमार० -पाज तो कुछ पारसीक नतंकियां विभाग हैं । बदिदाद में जरथुस्त्र और अहुरमज्द का धर्म पानेवाली हैं। -स्कद०, पृ० १४ । ३ पारस देश का घोड़ा । सवध मे संवाद है। 'अवस्ता' की भाषा, विशेषत गाथा की, पारसीक यमानो-उज्ञा स्त्री॰ [ म० ] खुरासानी अजवायन । पढ़ने मे एक प्रकार की अपभ्र श वैदिक संस्कृत सी प्रनीत पारसीक वचा-सशा स्त्री० [सं०] खुरासानी बच । होती है। कुछ मत्र तो वेदमत्रों से विलकुल मिलते जुलते पारसीकेय'-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ कुकुम । हैं । डाक्टर हाग ने यह समानता उदाहरणो से बताई है और डा० मिल्स ने कई गाथामो का वैदिक संस्कृत में ज्यो पारसीकेय-वि० पारस देश सबधी । पारस देश का (को०। का त्यो रूपातर किया है । जरथुस्त्र ऋषि कब हुए थे इसका पारस्कर-सचा पुं० [स०] १ एक देश का प्राचीन नाम । २ एक निश्चय नहीं हो सका है। पर इसमे सदेह नहीं कि ये प्रत्यत गृह्यसूत्रकार मुनि । प्राचीन काल मे हुए थे। शाशानो के समय मे जो 'प्रवस्ता' पारस्त्रैणेय-सज्ञा पु० [स०] पराई स्त्री से उत्पन्न पुत्र । जारज पुत्र । पर भाष्य स्वरूप अनेक स थ बने उनमे से एक में व्यास हिंदी पारस्परिक-वि० [स०] परसरवाला । परस्पर में होनेवाला । का पारस मे जाना लिखा है । स भव है वेदव्यास और जरथुस्त्र प्रापस का। समकालीन हो । पारस्य-सज्ञा पुं॰ [स] पारस देश । पारसनाथ-सद्या पुं० [सं० पार्श्वनाथ ] दे० 'पार्श्वनाथ' । पारस्स-सञ्चा पु० [सं० सर्श ] दे० 'पारस' (मणि ) । उ०- पारसव-पधा पुं० [सं० पारशव ] दे० 'पारशव' । कुम्बेर अति सुख पाय, पारस्स मनि दिय प्राय ।-40 रासो पारसा-वि० [फा०] पतिव्रता । सच्चरित्र । सती साध्वी। उ०- पृ० २५॥ अथी यो पाकदामन पारसा नार, नमाज पच वक्ता होर जिक्र पारहस्य-वि० [सं० ] दे० 'पारमहस्य [को॰] । चार ।-दक्खिनी० पृ० २४६ पारा-सशा स्त्री० [स०] एक नदी जो पारियात्र पर्वत से उत्प पारसाई-सज्ञा सी० [फा०] सच्चरित्रता। सदाचार । उ० कही गई है [को०] । पारसाई और जवानी क्यो कर हो, एक जगह भाग पानी पारा-सा पु० [ स० पारद ] चाँदी की तरह सफेद, और चल क्यो कर हो। -कविता को०, भा० ४ पृ० २७ । एक धातु जो साधारण गरमी या सरदी में द्रव अवस्था पारसिक-सशा पुं० [सं०] दे० 'पारसीक' (को०] । रहती है। पारसी-वि० [फा० पारस ] पारस देश का। पारस देश विशेष-खूब सरदी पाकर पारा जमकर ठोस हो जाता है यह कभी कभी खानो मे विशुद्ध रूप में भी बहुत सा सबधी । जैसे, पारसी भाषा पारसी विल्ली। जाता है, पर अधिकतर और द्रव्यों के साथ मिला हुआ पारसो-सञ्ज्ञा पुं० १.पारस का रहनेवाला व्यक्ति । पारस का जाता है । जैसे, गधक और पारा मिला हुमा जो द्रव्य आदमी । २ हिंदुस्तान में बबई और गुजरात को भोर है उसे इंगुर कहते हैं । गधक और पारा ई गुर से अलग हजारो वर्ष से वसे हुए वे पारसी जिनके पूर्वज मुसलमान होने दिए जाते हैं। पारा पृथ्वी पर के बहुत कम प्रदेशो के डर से पारस छोडकर पाए थे। मिलता है। भारतवर्ष में पारे की खाने अधिक नहीं विशेष- सन ६४० ई० में नहाबद की लड़ाई के पीछे जब पारस केबल नेपाल मे हैं। अधिकतर पारा चीन, जापान मौर. पर भरब के मुसलमानो का अधिकार हो गया और पारसी से ही यहां पाता है। पारा यद्यपि द्रव अवस्था में रहता मुसलमान बनाए जाने लगे तब अपने पार्यधर्म की रक्षा के तथापि बहुत भारी होता है। लिये बहुत से पारनी खुरासान मे आकर रहे । खुरासान मे इंगुर से पारा निकालने में स्वेदनविधि काम मे लाई जाती भी जव उन्होने उपद्रव देखा तब वे पारस की खाडी के मुहाने ईगुर का टुकडा तेज गरमी द्वारा भाप के रूप में कर पर उरगूज नामक टापू में जा बसे । यहाँ पद्रह वर्ष रहे । जाता है जिससे विशुद्ध पारे के परमाणु अलग हो जाते मागे वाधा देख प्रत मे सन् ७२० मे वे एक छोटे जहाज पर भाप रूप मे फिर पारा अपने असली द्रव रूप में लाया - भारतवर्ष की घोर चले पाए जो शरणागतो की रक्षा के है। पारा बहुत से कामो मे आता है । इसके द्वारा खा लिये बहुत काल से दूर देशों में प्रसिद्ध था। पहले वे दीऊ निकले हुए अनेकद्रव्यमिश्रित खो से सोना चांदी नामक टापू में उतरे, फिर गुजरात के एक राजा जदुराणा ने वहुमूल्य धातुएँ मलग करके निकाली जाती हैं । यह इस , उन्हें समान नामक स्थान में वसाया और उनकी अग्निस्थापना किया जाता है कि खड या टुकड़े का चूर्ण कर लेते हैं, और मदिर के लिये बहुत सी भूमि दी । भारत के वर्तमान उसके साथ युक्ति से पारे का ससर्ग करते हैं । इससे यह पारसी उन्हीं की सतति हैं । पारसी लोग अपने सवत् का है कि सोने या चांदी के परमाणु पारे के साथ मिल जाते .
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