पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पचमवेद २७३४ पंचमेस शिथिल माज है कल का कूजन पिक की पचमतान ।- देशद्रोही। भेदिया । उ०-सरकार की दृष्टि मे समर्थक अनामिका, पृ०६४। वनने के लिये एक पोर तो वे पचमागियो का कार्य करते पंचमवेद-सञ्ज्ञा पुं० [ स० पञ्चमवेद ] पाँचवाँ वेद-महाभारत, रहे।-नेपाल०, पृ० १२१ । पुराण एव नाट्य। पंचमास्य-वि० [सं० पम्चमास्य] पांच महीने का । पांच महीने पर होनेवाला। पचमहापातक-संज्ञा पुं० [ स० पञ्चमहापातक ] पांच प्रकार के पंचमास्य-सशा पुं० कोकिल । महापाप। विशेष-मनुस्मृति के अनुसार ये पाँच महापातक हैं-ब्रह्महत्या, पंचमी-सजा पी० [सं० पन्चमी] १ शुक्ल या कृष्णपक्ष की पांचवीं .तिथि। सुरापान, चोरी, गुरु की स्त्री से व्यभिचार और इन पातको के करनेवालो के साथ ससर्ग । विशेष-प्रत आदि के लिये चतुर्थीयुक्ता पचमी तिथि ग्राह्य मानी पचमहाभूत-सञ्चा पुं० [स० पञ्चमहाभूत] दे० 'पचभूत'। उ०- पचमहाभूत अर्थात् पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, आकाश उत्पन्न २ द्रौपदी । ३ एक रागिनी। ४ व्याकरण में अपादान कारक । हुए और इन पचभूतों से समस्त ससार हवा ।-कवीर म०, ५ एक प्रकार की ईट जो एक पुरुष की लवाई के पांचवें पृ० ३०६। भाग के वरावर होती थी और यज्ञो मे वेदी बनाने में काम प्राती थी। ६ तम मे एक मप्रविधि । ७ एक प्रकार की पचमहायज्ञ-पशा पुं० [सं० पञ्चमहायज्ञ] स्मृतियो और गृह्य सूत्रो के अनुसार वे पाँच कृत्य जिनका नित्य करना गृहस्थो के विसात जिसपर गोटिया नेलते थे (को०)। लिये आवश्यक है। पचमुख-सरा पुं० [सं० पञ्चमुख ] १ शिप । २ सिंह । ३ एक विशेष-गृहस्थो के गृहकार्य से पांच प्रकार से हिंसा होती है जिसे प्रकार का रुद्राक्ष जिसमें पांच लकीरें होती हैं। ४. पाच धर्मशास्त्रो मे 'पचसूना' कहते हैं। इन्ही हिंसाप्रो के पाप से फलोंवाला बाण (को०)। निवृत्ति के लिये धर्मशास्त्रो में इन पांच कृत्यो का विधान पंचमुख-वि० पांच मुखोवाला। जैसे, पचमुख गणेश । पचमुम्ब है। वे कृत्य ये हैं शिव । [को०] । (१) अध्यापन-जिसे ब्रह्मयज्ञ कहते हैं। सध्यावदन इसी पचमुखी'-वि० [ म० पञ्चमुग्विन् ] पांच मुखवाला। अध्यापन के अंतर्गत है। पचमुखी-सज्ञा ग्ली० [सं०] १ वासा। प्रदू सा । २ जवा । (२) पितृतर्पण-जिसे पितृयज्ञ कहते हैं। गुडहल का फूल । ३ सिंही । सिंह की मादा । ४ पार्वती। (३) होम-जिसका नाम देवयज्ञ है। पचमुद्रा-सज्ञा पुं० [सं० पञ्चमुद्रा ] तंत्र के अनुसार पूजनविधि मे (४) वलिवैश्वदेव वा भूतयज्ञ । पांच प्रकार की मुद्राएँ-पावाहनी, स्थापनी, सन्नीधापनी, (५) अतिथिपूजन-नृयज्ञ वा मनुष्ययज्ञ । सवोधिनी, सम्मुखीकरणी। पचमहाव्याधि-मशा पुं० [स० पञ्चमहाच्याधि ] वैद्यकशास्त्र के पचमुष्टिक-सञ्ज्ञा पुं० [ म० पञ्चमुष्टिक ] वैद्यक में एक प्रौपप जो अनुसार ये पांच बडे रोग-पर्श, यक्ष्मा, कुष्ठ, प्रमेह और सन्निपात मे दी जाती है। विशेप-जौ, वैर का फल, कुलथी, मूंग और काष्ठामलक एक उन्माद । पचमहाव्रत-सशा पुं० [स० पञ्चमहानत] योगशास्त्र के अनुसार ये एक मुट्ठी लेकर प्रठगुने पानी मे पकाने से यह वनती है । पांच आचरण-अहिंसा, सूनृता, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और पचमत्र-सरा पु० [ म० पञ्चमूत्र ] गाय, बकरी, भेंड, भैस और गपी अपरिग्रह। इन पांच पशुयो का मूत्र [को०] । विशेष-पतजलि जी ने इन्हें 'यम' माना है। जैन यतियो के पचमूल-नशा पु० [ स० पञ्चमूल ] वैद्यक मे एक पाचन प्रौषध जो लिये इनका ग्रहण जैन शास्त्र में आवश्यक बतलाया गया है। औषधियो की जड लेकर बनती है। पचमहाशब्द-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पञ्चमहाशब्द ] पाँच प्रकार के बाजे विशेप-पोषधिभेद से पचमूल कई हैं जैसे-वृहत्, स्वल्प, तृण, जिन्हें एक साथ बजवाने का अधिकार प्राचीन काल में शतावतं, जीवन, बला, गौखुर इत्यादि । राजाश्रो महाराजामों को ही प्राप्त था। इसमें ये पांच वाजे वृहत्पचमूल-बेल, सेनापाठा ( श्योनाक ), गंभारी, पांडर माने गए हैं-शृग (सीग), तम्मट (खेजडी ), शंख, भेरी और गनियारी। और जयघटा। स्वल्पपचमूल-शालपर्णी, पृश्निपर्णी ( पिठवन ), वडी झटक- पंचमहिष-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पञ्चमहिप] सुश्रुत के अनुसार भैस से टैया, छोटी भटकटैया और गोखरू। प्राप्त पांच पदार्थ-मूत्र, गोवर, दही, दूध और घो। तृणपचमूल-कुश, काश, शर, इक्षु और दर्भ । पचमांग-सज्ञा पुं० [पुं० पञ्चमाझ्] पांचर्चा भाग या अग। पचमली-सशा स्त्री॰ [ म० पञ्चमूलिन् ] स्वल्प पचमूल । पंचमागी-मझा पुं० [सं० पम्चमागिन् ] दूसरे (शत्रु) देशो से गुप्त पंचमेल-वि० [हिं० पाँच +मेल या मिलाना ] १. जिसमे पाँच सवध स्थापित कर अपने देश को हानि पहुंचानेवाला व्यक्ति । प्रकार की चीजें मिली हो । जैसे, पंचमेल मिठाई। २ जिसमें