पानी पर्या०--थर्ण । क्षोद । पम । नभ । ग्रंभ। कबंध। सलिल । वा । वन । घृत । मधु । पुरीप। पिप्पल । क्षीर । विप। रेत । कश । वुम । तुग्य । मुश्म। वरण । सुरा । अरविद । धनु धतु । जामि । श्रायुध । आय । यहि । अक्षर । स्रोत । तृप्ति । रस । उदक । पय । सर। भेपज। सह। प्रोज। सुख । क्षत्र । शुभ । याद। भूत। भुवन। भविग्यत । महत् । श्रप। व्योम । यश । मह । सगीक । रवृतीक । सतीन । गहन । गभीर । गभलंग। ईम् । श्रन्न । हवि । सदन । ऋत । योनि। सत्य । नीर । रयि। सत् । पूर्ण । सर्व । अक्षित । वर्हि । नाम । सर्पि । पवित्र । अमृत । इदु । स्व । सर्ग । संवर । वसु । श्रथ । तोय तूप । शुक्र । तेज । वारि । जल। जलाप । कमल । कीलाल । पाथ। पुष्कर । सर्वतोमुस । पानीय । मेघपुष्प। सल । जड़ । क । अध। उद। नार। कुश । काड। सबर। कर्बुर । व्योम। सव। इरा। वाज| तामर । कवल । स्यदन। पर। ऊर्ज। सोम। 1 ! पानी' २६१० हो चुकने अर्थात् वायुमडल स्वच्छ हो जाने पर किसी बरतन मे एकत्र किया जाय तो शुद्ध होता है अन्यथा उसमे भी उपर्युक्त द्रव्य मिल जाते हैं। प्राकृतिक वर्फ का पानी भी प्राय शुद्ध होता है। भभके मे से खीचा हुआ पानी भी सव प्रकार के मिश्रणो से शुद्ध होता है, दवाइयो मे यही पानी मिलाया जाता है। जो नदियां उजाड स्थानों, कठोर चट्टानों और कंकरीली भूमि से होकर जाती हैं उनका जल भी प्राय शुद्ध होता है, पर जिनका रास्ता गरम भूमि और चट्टानो तथा घनी आबादी के बीच से है उनके पानी में कुछ न कुछ अन्य द्रव्य मिले रहते हैं । समुद्र के जल में क्षार और नमक के प्रश अन्य प्रकार के जलो की अपेक्षा बहुत अधिक होते हैं जिससे वह इतना खारा होता है कि पिया नहीं जा सकता। भभ के के द्वारा उहा लेने से सब प्रकार का पानी शुद्ध हो जाता है। समुद्र का पानी भी इस क्रिया से पेय बनाया जा सकता है। वैद्यक के अनुसार पानी शीतल, हलका, रस का कारण रूप, श्रमनाशक, ग्लानिहारक, बलकारक, तृप्तिदायक, हृदय को प्रिय, अमृत के समान जीवनदायक, मूर्छा, पिपासा, तद्रा, वमन, निद्रा मौर अजीर्ण का नाश करनेवाला है । खारा जल पित्तकारक और वायु तथा कफ का नाशक है, मीठा जल कफकारक और वायु तथा पित्त को घटानेवाला है। भादो या क्वार मे विधिपूर्वक एकत्र किया हुआ वृष्टिजल भमृत के समान गुणकारी, त्रिदोषशातिकर, रसायन, बल- दायक, जीवनरूप, पाचन और बुद्धिवर्धक है । वेग से वहने- वाली और हिमालय से निकली हुई नदियों का जल उत्तम होता है, तथा मद गति से वहनेवाली और सह्याद्रि से निकली हुई नदियो का पानी कोढ़, कफ, वात प्रादि विकारो को उत्पन्न करता है । झरने का और प्राकृतिक बर्फ के पिघलने से उत्पन्न जल उत्तम है। कुएँ का जल, यदि उसके सोते अधिक गहराई और कडी कंकरीली मिट्टी पर से निकले हो तो, उत्तम होता है, अन्यथा दोपकारक होता है। जिस पानी में कोई गध या विशेष स्वाद न हो उसे उत्तम और जिसमे ये बातें हो उसे सदोष समझना चाहिए। पकाने से पानी के सव दोष मिट जाते हैं। प्राचीन आर्य तत्वज्ञानियो ने पानी को पांच महाभूतो अर्थात् उन मूल तत्वो मै जिनके योग से जगत् के भौर सब पदार्थों को उत्पत्ति हुई है, चौथा माना है। रस तन्मात्र से उत्पन्न होने के कारण रस इसका प्रधान गुण है और तीन पूर्ववर्ती तत्वो के गुण शब्द स्पर्श और रूप को गौण गुण कहा है। पांचवें महाभूत या मूलतत्व पृथ्वी के गध गुण का इसमें प्रभाव माना है। इसका रूप अर्थात् वर्ण सफेद, रस अर्थात् स्वाद मधुर और शीतल माना है। परमाणु में इसे नित्य और सावयव अर्थात् स्यूल रूप मे अनित्य कहा है। पाश्चात्य देशों फे द्रव्यशास्त्रविद् भी वर्तमान विज्ञान युग के प्रारभ के पहले सहस्रो साल तक पानी को अपने माने हुए चार मूल तत्वों अग्नि, वायू, पानी और मिट्टी में से एक मानते रहे हैं। मुहा०-पानी अाना = (१) पानी का रस रसकर एकत्र होना । (२) कुएं या तालाव में पानी का सोता खुलना। (३) घाव या प्रांख, नाक आदि में पानी भर पाना । (४) घाव, आँख, नाक प्रादि से पानी गिरना। पानी उठाना = (१) पानी सोखना। पानी चूसना। जैसे,-मुलायम आटा खूब पानी उठाता है । (२) पानी अटाना। (दोरी या हत्ये में जितना पानी घंटता है, किसान लोग उसे उतना पानी उठाना बोलते हैं।) जैसे,—वह हत्या खूब पानी उठाता है। पानी उतरना = पानी की तल या सतह का नीचा होना। पानी घटना । उतार होना । बाढ़ पर न रहना । (काम को) पानी करना = साध्य या सरल कर देना। सहज कर डालना। जैसे,-मैंने इस काम को पानी कर दिया। पानी का वासरा = नाव की वारी पर लगा हुमा कुछ कुछ झुका हुमा तस्ता जिसपर छाजन की अोलती का पानी गिरता है। आधी वारी। (लश०) । पानी काटना = (१) पानी का बाप काट देना । (२) एक नाली से दूसरी मे पानी ले जाना। (३) तैरते समय हाथ से पानी को हटाना। पानी चीरना। पानी का बताशा = (१) बुल । बुदवुद। (२) क्षणभगुर वस्तु । क्षणस्थायी पदार्थ । पानी का बुतवुला = (१) बुलबुले की तरह क्षण मे नण्ट या रूपारित होनेवाला । क्षणभगुर । (३) नाशवान् । विनाशशील । पानी की तरह बहाना = अधाधुध खर्च करना। किसी चीज का प्रावश्यकता से बहुत अधिक मात्रा में खर्च करना। उडाना या लुटाना। जैसे,—उन्होंने लाखों रुपए पानी की तरह वहा दिए । पानी की पोट = (१) जिसमे पानी ही पानी हो। जिसमें पानी के सिवा और कुछ न हो। (२) वे साग, पात, तरकारियाँ मादि जिनमें जलीय प्रश ही अधिक होता है, ठोस पदार्थ बहुत ही कम होता है। पानी के मोल = पानी की तरह सस्ता । बहुत सस्ता कौड़ियों के मोल । पानी के रेले में वहाना(१) पानी
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२४१
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