पानर २९४७ पान पान२-सज्ञा पुं॰ [ स० प्राण ] प्राण। उ०-पान अपान व्यान मुलायम होती हैं । इसका बीडा मह में रखते ही गल जाता उदान और कहियत प्राण समान । तक्षक धनजय पुनि देवदत्त है । इसके बाद बंगला पान का नबर है । महोवी पान कडा और पौड़क सख धुमान |--सूर (शब्द॰) । पर मीठा होता है और अच्छे पानी मे गिना जाता है। कलकतिहा कडा और कडवा होता है। कपूरी बहुत कड़वा पान-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पर्ण, प्रा० पण्ण] १ पत्ता । पर्ण । उ०- होता है । उसके पत्ते लबे लवे होते हैं और उसमे कपूर की औषध मूल फूल फल पाना । कहें नाम गनि मगल जाना ।- सी सुगघि पाती है । वैद्यक के अनुसार पान उत्तेजक, दुर्गधि- तुलसी (शब्द०)। उ०—हाथी को सौ कान किधों, पीपर नाशक, तीक्ष्ण, उष्ण, क्टु, तिक्त, कषाय, कफनाशक, वातघ्न को पान किधों, ध्वजा को उडान कहाँ थिर न रहतु है। श्रमहारक, शातिजनक, प्रगों को सु दर करनेवाला और -सु दर० ग्र०, भा॰ २, पृ०४५७ । दांत, जीभ आदि का शोधक है। २ एक प्रसिद्ध लता जिसके पत्तों का बीडा बनाकर खाते हैं। वेदों, सूत्रन थो, वाल्मीकि रामायण और महाभारत में पान का ताबूलवल्ली। ताबूली। नागिनी । नागरवल्ली। नाम नहीं आया है, परतु पुराणो और वैद्यक प्रथो में इसका विशेष-यह लता सीमात प्रदेश और पजाब को छोडकर उल्लेख वार बार मिलता है । विदेशी पर्यटको ने भारतवासियों सपूर्ण भारतवर्ष तथा सिंहल, जावा, स्याम, प्रादि उष्ण की पान खाने की आदत का उल्लेख किया है। अत्यत प्राचीन जलवायुवाले देशो में अधिकता से होती है । भारत में पान ग्रथों में इसका नाम न आने से यह सूचित होता है कि इसका का व्यवहार बहुत अधिक है। कत्था, चूना, सुपारी पादि व्यवहार पहले से पूर्व और दक्षिण में ही था। वैदिक पूजन मसालों के योग से बना हुप्रा इसका बीडा खाकर मन प्रसन्न मे पान नहीं है। पर आजकल प्रचलित तात्रिक पद्धति में तथा अतिथि आदि का सत्कार करते हैं। देवताओ और पान का काम पडता है। पितरो के पूजन मे इसे चढाते हैं और इसका रस अनेक रोगों यो०-पानदान। मे औषध का अनुपान होता है। पान की जड भी, जिसे मुहा०-पान उठाना कोई काम करने के लिये प्रतिज्ञाबद्ध कुलजन या कुलीजन कहते हैं, दवाई के काम आती है। होना। वीडा उठाना या लेना । पान कमाना=पान को उपर्युक्त दो प्रातों को छोडकर भारत के सभी प्रातों मे खपत उलटना पुलटना और सहे अंश या पत्तो का भलग करना । और जलवायु की अनुकूलता के अनुसार न्यूनाधिक मात्रा में पान चीरना= व्यर्थ के काम करना। ऐसे काम करना जिससे इसकी खेती की जाती है। इसकी खेती में घड़ा परिश्रम और कोई लाभ न हो। पान खिलाना= वर कन्या के व्याह संबंध झझट होता है। मत्यत कोमल होने के कारण अधिक सरदी में उभय पक्ष का वचनवद्ध होना। मंगनी करना । सगाई गरमी यह नही सहन कर सकती। करना । पान देना = किसी काम, विशेषत किसी साहसपूर्ण इसकी खेती प्राय' तालाब या झील आदि के किनारे भीटा बना काम के कर डालने के लिये किसी से हामी भरवाना । बीड़ा कर की जाती है । धूप और हवा के तीखे झोको से बचाव के देना । उ०-वाम वियोगिनि के वध कीवे को काम वसंतहि लिये भीटे के ऊपर बांस, फूस प्रादि का मंडप छा देते हैं पान दियो है। -रघुनाथ (शब्द०)। पान पत्ता- (१) जिसके चारो ओर टट्टियां लगा दी जाती हैं । मंडप के भीतर लगा या वना हुआ पान । (२) तुच्छ पूजा या भेंट । पान- वेलें चढाई जाती हैं। इस मडप को पान का बंगला, बरेव फूल । पान फूल =(१) सामान्य उपहार या भेंट । (२) या वरीजा कहते हैं। इसके छाने में इस बात का ख्याल रखा अत्यत कोमल वस्तु । पान फेरना = पान कमाना। पान जाता है कि पौधे तक थोडी सी धूप छनकर पहुँच सके । धनाना = (१) पान में चून', कत्था, सुपारी आदि रखकर भीटा बीच में ऊँचा, चौरस और अगल बगल, कभी कभी बीड़ा तैयार करना । (२) दे० 'पान कमाना' । पान लेना= एक ही पोर, ढालू होता है, इससे वर्षा का जल उसपर रुकने किसी काम के कर डालने की प्रतिज्ञा करना या हामी नहीं पाता। भीटे पर प्राधा फुट गहरी और दो फुट चौडी भरना। बीडा लेना। उ०-नृपति के ले पान मन कियो सीधी क्यारियां बनाई जाती हैं। इन्ही मे थोडी थोडी दूर अभिमान करत अनुमान चहूंपास घाऊँ। सूर (शब्द॰) । पर कलमें रोपी जाती हैं । जो पौधे पूरी बाढ़ को पहुंच चुकते पान सुपारी = किसी शुभ अवसर पर निमत्रित जनो का हैं और जिनमें पत्ते निकलना वद हो जाता है वे ही कलमें सत्कार करने की रीति । तैयार करने के काम आते हैं। उडीसा में इससे भी अधिक ३ पान के आकार की चौकी या तावीज जो हार में रहती है। समय तक उससे अच्छे पत्ते निकलते जाते हैं । इसलिये ४ जूते में पान के प्राकार का वह रंगीन या सादे चमटे का पान की खेती वहाँ सबसे अधिक लाभदायक है। कही कही टुकडा जो एंडी के पीछे लगता है। ४ ताश के पत्तो के चार पान की बेलें भीटे पर नही किंतु किसी पेड, अधिकतर सुपारी, भेदो में से एक जिसमें पत्ते पर पान के प्रकार की लाल लाल के नीचे लगाई जाती हैं। बूटियां बनी रहती हैं। पान की अनेक जातियां हैं । जैसे, बंगला, मगही, सांची, कपूरी, पान-सज्ञा पुं॰ [ मं० पाणि ] दे० 'पानि' या 'पाणि' । उ०- महोबी, मछुवा, कलकतिहा, थादि । गया का मगही पान बैठी जसन जलूस करि फरस फवी सुखदान । पानदान ते ले सबसे अच्छा समझा जाता है । इसकी नसें बहुत पतली और दए पान पान प्रति पान ।-स० सप्तक, पृ० ३६४ ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२३८
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