पातक २५६ पाताल पुरुष विशेष-'प्रायश्चित्त' के मतानुसार पातक के भेद हैं-(१) जाति अछेह। खरी पातरीक तक लगै भरी सी देह ।- अतिपातक । (२) महापातक । (३) अनुपातक । (४) विहारी (शब्द०)। उपपातक । (५) सकरीकरण। (६) अपात्रीकरण । (७) पासराज-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का सर्प । जातिप्र शकर । (८) मलावह और (E) प्रकीर्णक । मनु ने पातरि सशसी० वि० [हिं०] दे० 'पातर'। ५ महापातक गिनाए हैं-(१) ब्रह्महत्या । (२) सुरापान । (३) स्तेय । (४) गुरुतल्पगमन और (५) इस प्रकार के पावरि-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पत्र, हिं० पातर ] भगवान् का प्रसाद, जो पत्तलो में भक्तों को बांटा जाता है। पातर । पत्तल । उ०- पापियो का संपर्क। (क) उन वैष्णवन की पातरि करी।-दो सौ बावन०, पातक-वि० नीचे गिरानेवाला [को०] । भा०१, पृ०७६ । (ख) जो कोई बैष्णव भावतो ताको पासको-वि० [सं० पातकिन् ] पातक करनेवाला । पापी। फुकर्मी। प्रथम महाप्रसाद की पातरि घरि के पाछे वे दोक स्त्री वदकार । अधर्मी। उ०—(क) मो समान को पातकी बादि महाप्रसाद लेते ।-दो सौ बावन०, भा॰ २, पृ० ७७ । कहाँ कछु तोहिं ।-मानस, २ । १६२ । (ख) क्यो चाहति तू पदमिनी करन पातको मोहि ।-शकुतला, पृ० ६३ । पातरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पात्र, पातली ] दे० 'पातर'। पातरी-वि० स्त्री० [हिं० पातर ] सूक्ष्म । क्षीण । तनु । उ०- पातखो-सज्ञा पुं० [स० पातक] दे० 'पातक'। उ०-कहे दरिया अघ लचकीली कटि प्रतिहि पातरी चालत झोका खाय । पातख पर्वल भक्ति विन सभ रोगा।-सं० दरिया पृ०६६ | -भारतेंदु ग्रं०, मा० १. पृ० । पातग+-सञ्चा पुं० [सं० पातफ ] पाप। पातक । उ०-कनक पातल-सज्ञा सी० [हिं० ] दे० 'पातर'। कति दुति प्रग की निरपि सु पातग जात । परमानद प्रदायिनी, पार करन जग मात ।-१० रा०, ३।६। पावव्य-वि० [सं०] १ रक्षा करने योग्य । २ पीने योग्य । पातघावरा+-वि० [हिं० पात + घयराना ] वह मनुष्य जो पत्ते के पातशाह-सञ्ज्ञा पु० [ फा० पादशाह ] दे० 'पादशाह' । खड़कने पर भी घवडा जाय । बहुत अधिक डरपोक । पातशाही-पज्ञा पुं० [फा० पादशाही ] दे० 'पादशाही' । पातन'-सज्ञा पुं॰ [स०] १ गिराने की क्रिया। नीचे ढकेलने की पावसा, पावसाह-सज्ञा पुं० [फा० पादशाह ] दे० 'पादशाह'। क्रिया। २. फेंकना या हालना (को०)। ३. झुकाना । नवाना उ०-(क) फते पातसा की भई बैनकारी।-ह. रासो, (को०)। ४.पारे के पाठ संस्कारों में से पांचवा संस्कार । पू०६६ । (ख) जो है दिल्ली तखतनसीन । पातसाह इसके तीन भेद है-ऊर्ध्वपातन, अघ.पातन और तिर्थक्पातन । आलाउद्दीन । हम्मीर०, पृ० १७। विशेष-दे० 'पारा। पातस्याहा-सबा पुं० [ फा० पादशाह ] दे॰ 'पादशाह' । उ०-सब पावन-वि० मीचे ढकेलनेवाला । गिरानेवाला [को०] । कह राठ को पातस्याह । जस स्रवन सुनन की सदा चाह । पावनिका-सक्षा मी० [सं०] पात्रता । योग्यता । अनुरूपता [को०] । -१० रासो, पृ० २। पासनीय-वि० [सं०] १.पात के योग्य । गिराने लायक । २. प्रहार पाता-वि० [सं० पात] १ रक्षा करनेवाला । २ पीनेवाला। के योग्य । प्रहार करने लायक । प्रहरणीय [को०] । पाता@-सच्चा पुं० [सं० पत्र] पत्ता । पत्र । पासवदी-सशा मी० [सं० पात ( = परना) +फा• बंदी ] वह पाताखत@t-मज्ञा पुं० [हिं० पात+वाखत ] दे० 'पातापत' । मकणा जिसमें किसी जायदाव की घंदाजन मालियत पौर १०-या सुमिरन पूजिवों पाताखत थोरे । दइ जग जहूँ उसपर जितना देना या कर्ष हो यह लिखा रहता है। लगि पंपदा सुख गप रथ घोरे ।—तुलसी (शब्द॰) । पातयिषा-वि० [सं० पातयितु] १ नीचे गिरानेवाला। गिराने- पाताया-सज्ञा पुं॰ [फा० पातायड्] १ मोजा । २ चमडे का वह वाला । २. फेंकनेवाला [को०] । लबा टुकड़ा जो ढीले जूते को चुस्त करने के लिये उसमे डाला पावर+-सज्ञा स्त्री॰ [सं० पत्र] १ पत्तल । पनवारा। उ०- जाता है । सुखतला। बिनती राय प्रवीन की सुनिए शाह सुजान । जूठी पातर पावार@-सचा पुं० [सं० पाताल ]दे० 'पाताल' । उ०-बरम्हा डरै भखत है वारी वायस स्वान । -राय प्रवीन (शब्द०)। चतुरमुख जासू । पौ पातार डरे वलि वासू ।—जायसी प्र० पातर-सज्ञा स्त्री० [सं० पातली ( = स्त्री विशेष) या स० पात्र ] (गुप्त), पृ० २९८ । वेश्या । रही। पतुरिया। पाताल-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ पुराणानुसार पृथ्वी के नीचे के सात पातर-वि० [हिं० पत्तर, या स० पात्रट ( = पतला)] लोकों में से सातवा । २. पृथ्वी से नीचे के लोक । अधोलोक । १ पतला। सूक्ष्म । २ क्षीण। वारीक। ३ निम्न | नागलोक । उपस्थान । विशेष-पाताल सात माने गए हैं । पहला अतल, दूसरा वितल, पासर-सज्ञा स्त्री० तितलो। तीसरा सुतल, चौथा तलातल, पाँचवाँ महातल, छठा रसातल पावर - वि० [हिं० पतला ] [स्री० पातरी ] जिसका शरीर और सातवा पाताल । पुराणो मे लिखा है कि प्रत्येक पाताल दुर्बल हो। पतला। उ०-पग भग छवि की लपट उपटति की लवाई चौडाई १०१० हजार योजन है। सभी पाताल हेय । क्षुद्र।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२३०
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