पाटीर २६३४ पाठांवर द्वारा बैठाए हुए वाल, जो देखने में बराबर मालुम हों। यौ०-पाठभेट । पाठांतर । पट्टी पटिया। उ०—मुंडली पाटी पारन चाहै नकटी पहिरै पाठार-सशा सी० [हिं० पट्ठा ] जवान गाय, मैस या बकरी। वेसर ।- सूर (शब्द०)। पाठक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ जो पढ़े। पढनेवाला । वाचक । २ क्रि० प्र०-पारना ।-धैठाना । जो पढावे। पढ़ानेवाला । अध्यापक । ३ धर्मोपदेशक । ४ ४ लकही का वह गोला, चिपटा या चौकोर पतला बल्ला जो गौड, सारस्वत, सरयूपारीण, गुजराती प्रादि ब्राह्मणों का एक खाट की लबाई के वल में दोनों ओर रहता है। चारपाई उपवर्ग। ५ गुप्तकाल में प्रचलित एक बढे माप का नाम जो के ढांचे में लवाई की भोर की पट्टी। चारपाई के ढांचे कुल्यावाप से पंचगुना होता था। उ०—पिछले गुप्तकान में का पाश्वंभाग । उ०-जागत जाति राति सव काटी । लेत एक बडे माप का नाम मिलता है जिसे पाठक रहते थे।- करोट सेज की पाटी।-शकुतला, पृ० १०८ । पू० म० भा०, पृ० १२३ । ५ चटाई। पाठच्छेद-सज्ञा पुं० [सं०] पाठ के बीच में होनेवाला विराम । यौ०-शीतलपाटी। यति [को०] ६ शिला। चट्टान । ७. मछलियां पकड़ने के लिये वहते पानी पाठदोप-सज्ञा पुं० [सं०] पढने का ढंग या पढने के समय की को मिट्टी के बाँध या वृक्षो को टहनियो प्रादि से रोक्कर वह चेष्टा जो निंद्य और वजित है। जैसे, विकृत या कठोर एक पतले मार्ग से निकालने और वहाँ पहरा विछाने स्वर से पढना, अव्यक्त, अस्पष्ट, सानुनासिक या बहुत की क्रिया। ठहर ठहरकर उच्चारण करना, गाकर पढ़ना, सिर धादि क्रि० प्र० - बिछाना ।-लगाना। अगो को हिलाना। प्राचीन संस्कृत ग्रथो में ऐसे दोषों की ८ खपरैल को नरिया का प्रत्येक प्राधा भाग । ६ जती। सरुपा अट्ठारह मानी गई है। पाटीर-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ एक प्रकार का चदन । उ०-मटवर पाठन-सगा पुं० [सं० ] पढाने की क्रिया या भाव | शिक्षण । श्याम किसोर तन चरचित नव पाटीर।-घनानद, पृ० २७१। पढाना । प्रध्यापन । २ मेघ । वादल (को०)। ३ क्षेत्र । मैदान (को०) 1 ४ टीन यौ०-पाठनशेली = पढ़ाने की शीली या ढंग । पढ़ाने की पद्धप्ति । (को०)। ५ छनना । छलनी । चलनी। (को०)। ६ एक पाठना-सशा रसी० [सं० पाठन ] पटाना। तीक्ष्ण मूलक या मूली (को०)। ७ वेणुसार । घसलोचन (को०)। ८ नजला । जुफाम (को०)। ६ वह व्यक्ति जो पाठनिश्चय-सपा पुं० [सं०] पाठ की शुद्धता का निर्णय करना। किसी बात को छिपा न सके । पेट का हलका (फो०)। शुद्ध पाठ निश्चित करना [को०) । पाटूनी -सशा सं० [देश॰] वह मल्लाह जो किसी घाट का ठेकेदार पाठपद्धति-संश स्री० [०] परने की रीति या रंग । हो । घटवार । पाठप्रणाली-साक्षी० [सं०] पटने की रीति पारग। पाट्य-संज्ञा पुं॰ [सं०] पटसन । पाठभू-सका सी० [सं०] १ वह जगह महाँ वेदादि का पाठ किया पाठ-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ पढ़ने की क्रिया या भाव । पढ़ाई। २ जाय । २ ब्रह्मारण्य ) फिसी पुस्तक विशेषत, धर्मपुस्तक को नियमपूर्वक पढ़ने की पाठभेद-सशा पुं० [ सं० ] वह भेद या प्रतर जो एक ही प्रथ की क्रिया या भाव । जैसे, वेदपाठ, स्तोत्रपाठ। ३ यह्मयज्ञ । दो प्रतियों के पाठ में कहीं कहीं हो। पाठांतर । वेदाध्ययन । वेदपाठ। पाठमंजरो-सग्ना स्त्री॰ [सं० पाठमम्जरी ] एक प्रकार की मैना। यो०-पाठदोप। पाठप्रणाली। पाठशाला-सशा सी० [सं०] वह स्थान जहाँ पढा या पटाया जाय । ३. जो कुछ पढा या पढ़ाया जाय । पढने या पढ़ाने का विषय । मदरसा । स्कूल । विद्यालय । चटसाल । ४ उक्त विषय का उतना मग जो एक दिन में या एक बार पाठशालिनी-सशा स्त्री॰ [सं०] एक प्रकार को मैना । शारिका । पढ़ा जाय । सबक । सथा। पाठशाली-सज्ञा पुं॰ [ सं० पाठशालिन् ] छात्र । विद्यार्थी (को०)। कि० प्र०—देना ।-पढ़ना ।-पाना। पाठशालीय-वि० [सं०] पाठशाला से सबध रखनेवाला । पाठ- मुहा०-पाठ पढ़ना = कुछ सीखना, विशषत कोई बुरी घात । पाला का। जैसे,—आजकल ये जुए का पाठ पढ़ रहे हैं। पाठ पढ़ाना = पाठांतर-सज्ञा पुं० [सं० पाठान्तर] १ एक ही पुस्तक की दो अपने मतलव के लिये किसी को बहकाना। पट्टी पढ़ाना। प्रतियो के लेख मे किसी विशेष स्थल पर भिन्न शब्द, वाक्य उलटा पाठ पढ़ाना = कुछ फा फुछ समझा देना। असलियत के विरुद्ध विश्वास करा देना । बहका देना। अथवा क्रम । भिन्न भिन्न स्थलो में लिखे हुए एक ही पाक्य के कुछ शब्दो या एक ही शब्द के कुछ अक्षरो का अदल बदल । ५ पुस्तक का एक प्रश। परिच्छेद । अध्याय । ६ शब्दो या अन्य पाठ। दूसरा पाठ। पाठभेद । जैसे,—अमुक दोहे के वाक्यों का झम या योजना । जैसे,—अमुक पुस्तक में इस दोहे कई पाठातर मिलते हैं। २. पाठातर होने का भाव । पाव का यह पाठ है। का भेद । पाठभिन्नता। -
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२२५
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