पाटलिमा २६३३ पाटी अजातशत्रु का पुत्र था जो बुद्ध का समकालिक था । बौद्धो के रघुराज (शब्द०)। २ रेशमी कोषेय । रेशम से वुना हुमा 'महानिन्वाहनसुत्त' नामक ग्रंथ मे इसके निर्माण के विषय में (वस्त्र)। उ०—गल हैकन सिर सुवरण शृगा। पौठ यह कथा लिखी है . भगवान बुद्ध नालद से पैशाली जाते हुए पाटवी झूल अभंगा। -रघुराज (अम्द०)। ३ घरिष्ठ । पाटली ग्राम मे पहुंचे। वहां के निवासियो ने उनके लिये एक श्रेष्ठ । ज्येष्ठ । पट्ट पधिकारी। प्रधान । बड़ा । उ०- विश्रामागार बनवा दिया। उन्होंने माशीर्वाद दिया कि यह गरीबदास षी दादू जी के पाटवी पुत्र पौर प्रधान शिष्य ग्राम एक विशाल नगर होगा और मग्नि, जल तथा विश्वास थे। सुदर प्र. (जी०), भा० १, पृ० ११ । घातकता के माघात सहन करेगा। मगषराज के दो मंत्री पाटसन–सशा पुं० [सं० पशण] पटसन । पटुप्पा । कोई ऐसा नगर बसाने के लिये उपयुक्त स्थान क रहे थे पाटहिक-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] पटह बजानेवाला । उस बड़े ढोल का जिसमें रहकर निशिव नामक ब्रात्य क्षत्रियों के पाक्रमण से बजानेवाला जो लड़ाई प्रादि में बजता है । देश की रक्षा की जा सके। उपयुक्त प्राशीर्वाद की बात पाटहिका-सशा स्त्री० [सं०] गुजा । धुंधुची । सुनते ही उन्होंने पाटली में नगर वसाना प्रारभ कर दिया। इसी का नाम पाटलिपुत्र पडा । भविष्य पुराण के अनुसार पाटा-सचा पुं० [हिं० पाट] १ पीढा । विश्वामित्र के पिता गाधि की कन्या पाटली के इच्छानुसार मुहा.-पाटा फेरना = पीढा बदलना । विवाह मे घर के पीढ़े कौंडिन्य मुनि के पुत्र ने मश्रबल से इस नगर को बसाया और पर कन्या को और कन्या के पीछे पर वर को बिठाना । इसी से पाटलीपुत्र नाम रखा। २ दो दीवारों के बीच बाँस, बल्ली, पटिया आदि देकर बनाया पाटलिमा-सज्ञा पुं० [सं० पाटलिमन् ] पाटल वर्ण या गुलाबी हुमा आधारस्थान जिसपर चीजें रखी जाती है। दासा । रग [को०] । ३ वह हाथ डेढ़ हाथ ऊंची दीवार जो रसोईघर में चौके के सामने और बगल में इसलिये वनाई जाती है कि पाटली'-सञ्चा स्त्री० [सं०] १ पाहर । २ पाडफली । ३. पटना बाहर बैठकर खानेवालों को पकानेवाली स्त्री से सामना नगर की अधिष्ठात्री देवी । ४ गाधि की पुत्री जिसके न हो । ४ दे० 'पाट'। उ०-मोही छाज छात पो पाटा । अनुरोध से पाटलीपुत्र बसा। सब राजै मुई धरा लिलाटा । —जायसी प्र०, पृ० ५। यौ०-पाटलीपुत्र = पाटलिपुत्र । +५ दे० 'पट्ट'। पाटली-मझा श्री० [हिं० पाट ] लकडी की एक बल्ली जिसमे पाटि-सधा स्त्री० [हिं० पाट ] सिंहासन । राजासन । उ०- बहुत से छेद होते हैं और प्रत्येक छेद में से मस्तूल की एक उदै करण राजा बिर पाठि बैठा।-शिखर०, पृ०१। एक रस्सी निकाली जाती है। इससे रात में किसी विशेष रस्सी को अलग करने में कठिनाई नहीं पड़ती। (लश०)। पाटिका-सक्षा स्त्री० [सं०] १ एक दिन की मजदूरी। २ एक पौधा । ३ छाल या छिलका। पाटली तैल-सला पु० [सं०] एक औषध तैल जिसके लगाने से जले हुए स्थान को जलन, पीड़ा और चेप बहना दूर होता है। पाटिस-वि० [सं०] काठा हुमा । विदारित । इससे चेचक की भी शांति होती है। पाटी-मशा स्त्री० सं०] १ परिपाठी। अनुक्रम । रीति । उ०- विशेप-इसके बनाने की विधि इस प्रकार है-पाडर या पाढर सीह छतीसी सांभलै छाकै बस छतीस । बाँक पाटी बीर की छाल के ८ सेर का ६४ सेर पानी मे काढ़ा किया जाय । रस, बरणी बिसवा बीस । -चौकी० ०, मा० १, चौथाई नह जाने पर ८ सेर सरसो के तेल में डालकर फिर पृ०१८ । २ गणनादि का क्रम । जोड़, बाकी, गुणा, भाग घीमी पांच में वह पकाया जाय । तेलमात्र रह जाने पर छान- आदि का क्रम । कर काम में लाएँ। यौ०-पाटीगणित । पाटलोपल-सक पुं० [सं०] एक मणि जिसया रग सफेदी लिए हुए श्रेणी। प्रवलि । पक्ति। पति । ४. बला नामक क्षुप । लाल होता है । लाल । खरंटी। पाटल्या-सशा स्त्री० [स०] पाटल के फूलों का समूह (को०] । पाटी-हिं० [सं० पाटी] लकडी की वह प्राय लंबोतरी पाटव-सजा पुं० [सं०] १. पटुवा । चतुराई । कुशलता । चालाकी । पट्टी जिसपर विद्यारम करनेवाले छात्र गुरु से पाठ क्षेते वा उ०-झलक पाया स्वेद भी मकरद सा, पूर्ण भी पाटव हुमा लिखने का प्रयास करते हैं। सम्सी। पटिया। २ पाठ। कुछ मद मा। साकेत, पु० २३ । २ ठता। मजबूती। सबक। पक्कापन । ३ पारोग्य । ४ स्फूर्ति । तीयता । शीघ्रता मुहा०-पाटी पढ़ना = पाठ पढ़ना । सबक लेना । शिक्षा पाना। (को०)। ५ तीक्ष्णता (को०)। उ०-तुम कौन धों पाटी पढ़े हो लला मन लेत हो त छगन पाटविक-वि० [सं०] १. पटु । कुशल । २ धूर्त । नहीं।-धनानद (शब्द०)। पाटी पदाना= पाठ पाना। पाटवी-वि० [हिं० पाट] १ पटरानी से उत्पन्न (राजकुमार)। शिक्षा देना। कोई त सिखा देना। उ-तें मम प्रभु सुत पाटवी मैं तुव पितु पद दास ।- ३ मांग के दोनों मोर तेल, गोर या जल की सहायता से की १-२७
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२२४
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