पाटकर पाजरा २. सेतु । पुल । वधि । उ०-( क ) बधि पाज सागरह के लोग धोती ही पहना करते थे। परतु पहाडियों और हनुम अगद सुग्रीवह । -पृ० रा०, २०२७१ । (ख) ब्रज शीतप्रधान प्रदेशों के रहनेवालो में अाजकल इसका जितना तिय हिय सरबर रसभरे। लाज पाज तजि उमगनि ढरे । व्यवहार है उससे सदेह हो सकता है कि पहले भी उनका काम इसके बिना न चलता रहा होगा। आजकल हिंदू, -घनानद०, पृ० ३२२ । मुसलमान दोनो पाजामा पहनते हैं, पर मुसलमान अधिक पाजरा-सञ्ज्ञा पुं॰ [ देश०] एक वनस्पति जिससे रग निकाला पहनते हैं। जाता है। पाजी'-सञ्ज्ञा पु० [सं० पदाति ] १ पैदल सेना' का सिपाही । पाजस्य–सञ्चा पुं० [सं०] १ पांजर । छाती और पेट की बगल का प्यादा। २. रक्षक। चौकीदार । उ०-पउरी नवउ बजर भाग । २ पार्श्व । बगल । कइ साजी। सहस सहस तह बइठे पाजी। -जायसी पाजा-सञ्ज्ञा पुं॰ [ देश०] दे० 'पायचा'। (शब्द०)। पाजामा-सञ्ज्ञा पुं० [फा० पाजामह् ] पैर मे पहनने का एक प्रकार पाजी-वि० [सं० पाय्य ] दुष्ट । लुच्चा। खोटा । कमीना। का सिला हुआ वस्त्र जिससे टखने से कमर तक का भाग पाजीपन-सज्ञा पुं० [हिं० पाजी+पन (प्रत्य॰) ] दुष्टता। खुटाई। ढका रहता है । सुयना । तमान । इजार । कमीनापन | नीचता। विशेष-पाजामे के टखने की मोर के प्रतिम भाग को मुहरी पाजेब-सञ्ज्ञा स्त्री० [फा०] स्त्रियो का एक गहना जो पैरो में या मोरी, जितना भाग एक एक पैर मे होता है उसे पायचा, पहना जाता है। यह चांदी का होता है और इसमें घुघरू दोनो पायचो के मिलानेवाले भाग को मियानी, कमर की ओर टॅके होते हैं । मजीर । मूपुर । के अतिम भाग को जिसमे इजारबद रहता है नेफा और जिस पाटबर-सञ्ज्ञा पुं० [ स० पादम्बर ] रेशमी वस्त्र । रेशमी कपडा। सूत या रेशम के बधनो को नेफे मे डालकर कसते हैं, उसे पाट-सञ्ज्ञा पुं० [ स० पट्ट, पाट ] १ रेशम । उ०-झूलत पाट की इजारवद कहते हैं । पाजामे के कई भेद हैं-(क) डोरी गहे पटुली पर बैठन ज्यों उकुरू की। --भारतेंदु ग्र०, चूडीदार, जो घुटने के नीचे इतना तग होता है कि सहज भा०१, पृ०३६१। में पहना या उतारा नहीं जा सकता। पहनने पर घुटने के यो०-पाटंबर । पाटकृमि । नीचे इसमें बहुत से मोड पड जाते हैं। इसके भी दो भेद होते हैं-पाडा और खडा । पाहे की काट नीचे से ऊपर २ बटा हुआ रेशम । नख । ३ रेशम के कीडे का एक भेद । ४ पटसन या पाटसन के रेशे। जैसे, पाट की घोती। विशेष- तक पाडी पोर खडे की खडी होती है। कभी कभी इसमें दे० 'पटसन'। ५ राज्यासन । सिंहासन । गद्दी । मोहरी की तरफ तीन वटन लगते हैं। उस दशा मे मोहरी और भी तग रखी जाती है। ( ख ) बरदार, जो घुटने के यौ०-राजपाट । पाटरानी । पाटमहादेह । पाटमहिपी । नीचे और ऊपर बरावर चौडा होता है। इसकी एक एक ६ चौडाई। फैलाव । जैसे, नदी का पाट, धोती का पाट । ७ मुहरी एक हाथ से कम चौडी नहीं होती। (ग) अरबी, पल्ला | पीढ़ा । तख्ता। उ०-पौढ़त मूला, पाट उलटि के जिसकी मोहरी चूडीदार से अधिक ढीली होती है और जो सरकि परत जव। -प्रेमघन०, मा० १, पृ० १०15 कोई अधिक लवा न होने के कारण सहज मे पहन लिया जाता शिला या पटिया। ९ वह शिला जिसपर धोवी कपड़े घोता है । (घ) पतलूननुमा, जिसकी मोहरी बरदार से है । १०. चक्की का एक मोर का भाग। ११ वह चिपटा कम और अरवी से अधिक चौडी होती है। प्राज- शहतीर जिसपर कोल्हू हाँकनेवाला बैठता है। १२ वह कल इसी पाजामे का रवाज अधिक है। (3) कलीदार शहतीर जो कुएँ के मुंह पर पानी निकालनेवाले के खडे या जनाना पाजामा, जो नेफे की तरफ कम और मोहरी होने के लिये रखा जाता है। १३. मृदग के चार क्यों में से की तरफ अधिक चौडा रहता है। इसके नेफे का घेरा एक । १४ वैलो का एक रोग जिसमें उनके रोगो से रक्त १ गज और मोहरी का २३ गिरह होता है। इसमे बहुत बहता है। सी कलियाँ होती हैं जिनका चौडा भाग मोहरी की ओर क्रि०प्र०-फूटना। और तग भाग नेफे की ओर होता है। (च) पेशावरी, १५ वस्त्र । कपटा । १६ हल में का मछोतर जिसकी सहायता जो कलीदार का प्राय उलटा होता है अर्थात् नेफा १३ से हरिस में हल जुड़ा रहता है । यह मछली के आकार का गज और मोहरी प्राय २३ गिरह चौडी होती है। (छ) होता है। काबुली और (ज) नेपाली भी इसी प्रकार के होते हैं। पाटक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ स्वरवाध । २ गांव का आधा अथवा पहले के नेफे का घेरा ४ गज और दूसरे का २३ गज होता है। कोई भाग । ३ तट । किनारा। ४ पासा । ५ मूलधन का इनमे कलियो की स्थापना कलीदार की उलटी होती है। अपचय वा हानि (को०)। ६ तट पर जाने के लिये निर्मित पाजामे का व्यवहार इस देश में कब से प्रारभ हुआ, उपलब्ध सीढ़ी या सोपान (को०)। इतिहासो से इसका निश्चय नहीं होता। अधिकतर लोगो का पाटक-वि० [सं०] विभाग करनेवाला । चीरने या फाडने- ख्याल है कि यह मुसलमानो के साथ यहां पाया । पहले यहाँ वाला (को०]।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२२२
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