पाडुर' २६१८ पांशुधान छोटा क्षुप । पांडुर–वि० [सं० पाण्डर ] १ पोला । जई । २ सफेद । श्वेत । कर दोष लगावा । पाडो कहं बहु काल सतावा । -कबीर पांडुर-सा पु० [सं०] १ वह जो पीला हो । २ वह जो सफेद सा०, पृ०४९८ । हो । ३ घी का पेड। ४ सफेद ज्वार । ५ कवूतर । ६ पांड्य-सक्षा पुं० [सं०] १ एक देश का नाम । २ उस देश का बगला। ७ सफेद खडिया। ८ कामला रोग। ६ सफेद राजा । ३ पाड्य देश के निवासी जन [को॰] । कोढ़ । १० कार्तिकेय के एक गण का नाम । ११ पाडु वर्ण पांथ-वि० [सं० पान्य] १ पथिक । उ०—यह प्रोघ अमोघ जायगा, या रग। पथ तो पांथ स्वय बनायगा- साकेत, पृ० ३६३ । २ पाडुरक- [सं० पाण्डरक ] पाश्वर्ण का । पाड़ रग का। वियोगी। विरही। ३ सूर्य । रवि (को०)। पाडुरनुम-सज्ञा पुं॰ [सं० पाण्डरद् म] कुडे का वृक्ष । कुटज । पांथनिवास-सज्ञा पुं० [सं० पान्थनिधास ] सराय । चट्टी। कुरेया। पाथशाला-सशा पुं० [सं० पान्थशाला ] सराय । चट्टी। पाडुरपृष्ठ-सज्ञ पुं० [सं० पाण्डुरपृष्ठ ] दे० 'पाडुपृष्ठ' । पाथागार-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पान्यागार ] दे० 'पाथशाला' । उ०-पा पाहुरफली-सक्षा सी० [सं० पाण्डरफली ] एक प्रकार का के पाथागार मे पशुपुरी के एक विस्यात रत्नविक्रेता कई दिन से ठहरे थे। --वैशाली०, पृ० २१६ । पाडुरा-सज्ञा स्त्री० [सं० पाण्डुरा] १ मषवन । माषपर्णी। २ पांशन'-वि० [स०] १ तिरस्कार योग्य । तिरस्करणीय । हेय । २ ककही । ३ बौद्धो में एक देवी या शक्ति का नाम । दुष्ट । वदगाश। ३ कल वित या भ्रष्ट वरनेवाला। मप- पाडुराग-सज्ञा पु० [सं० पाण्डुराग] दौना । मानित करनेवाला । ( समासात में प्रयुक्त ) यथा कुलपशिन, पाडुरित-वि० [सं० पाण्डरित ] पाडु या पाडुर वर्ण का । पौलस्त्य कुलपाशन [को०)। पाडुरिमा-सञ्ज्ञा [ सं० पाण्डुरिमन् ] १ श्वेत वर्ण। सफेद रंग । पाशन-सा पुं० घृणा । तिरस्कार [को०] । २ श्वेत वर्ण युषत पीत रग [को०] । पाशव'-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] रेह का नमक । पाडुरेक्षु-सचा पुं० [सं० पाण्डरेक्षु ] सफेद ईख । पाशव-वि० १ पाशु से उत्पन्न । धूल से उत्पन्न । २ पाशुयुक्त । पाडुरोग-सज्ञा पुं० [सं० पाण्डुरोग ] कामला रोग । पीलिया [को०) । धूल से भरा हुअा को०] । पाडुलिपि-सज्ञा स्त्री॰ [ स० पाण्डुलिपि ] लेख आदि का वह पहला पाशु-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ धूलि । रज । २ बालू । रूप जो काट छांट या घटाने बढ़ाने आदि के लिये तैयार यी-पाशुज । किया जाय । मसौदा। ३ गोवर की खाद । ४ पित्तपापडा । ५ एक प्रकार का कपूर । पांडुलेख-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पाण्डुलेख ] पामुलिपि । मसौदा। ६ रज । ७ भूसपत्ति। पाडुलोमशा'- सज्ञा स्त्री० [सं० पाण्डुलोमशा] मषवन । माषपर्णी । पांशुका-सच्चा स्त्री० [स०] केवडे का पौधा । पांडुलोमशा-वि० स्त्री० जिसके रोएँ सफेद हो । पांशुकासीस–सञ्चा पुं० [सं०] कसीस । पाडुलोमा-वि०, सहा स्त्री॰ [सं० पाण्डुलोमा ] दे० 'पाटुलोमशा । पाशुकुली-सशा स्त्री० [सं०] राजपथ । चौड़ा रास्ता । राजमार्ग (को०) पाडुलोह-सञ्चा पुं० [ सं० पाण्डुतोह ] चाँदी । रजत [को॰] । पाशुकूल--सज्ञा पुं० [सं०] १ चीथडो आदि को सीकर बनाया हुभा पाडुवा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पाण्डुवा ] वह जमीन जिसकी मिट्टी मे वौद्ध भिक्षुषो के पहनने का वस्त्र । २ वह दस्तावेज या वालू भी मिली हो। बलुई मिट्टीवाली जमीन । दोमट फागज जो किसी विशिष्ट व्यक्ति के नाम न लिखा गया हो। जमीन । निरुपपद शासन । ३ धूलिपुज । धूल का ढेर (को०)। पांडुशर्करा-सज्ञा स्त्री० [सं० पाण्डुशर्करा ] एक प्रकार का प्रमेह । पाशुकृत-वि० [स] धूलि से आवृत । धूल से ढका हुमा । [को०] । पाडुशर्मिला-सशा स्त्री० [सं० पाण्डशर्मिला ] द्रौपदी। पाशुक्रीडा--सज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ बालू से खेलना। २ मुष्टियुद्ध । पाडुसोपाक-सज्ञा पुं० [सं० पाण्डसोपाक ] प्राचीन काल को एक मुक्केबाजी (फो०। वर्णसकर जाति, जिसकी उत्पत्ति मनु के अनुसार वैदेही माता पांशुक्षार-सशा पुं० [ सं० ] दे० 'पाशुज' [को०] । और चाडाल पिता से है। कहते हैं, इस जाति के लोग पांशुगुठित-वि० [सं० पाशुगुरिठत ] धूलि से मावृत (को०) । बांस की चीजें, दौरिया, टोकरे आदि बनाकर अपना निर्वाह पाशुचदन-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० पाशुचन्दन ] दे॰ 'पासुघदन' (को० । करते थे। पाशुचत्वर-सहा पुं० [स] पोला । वर्षोपल । पांडूरा-वि० [ सं० पाण्डरक ] श्वेत । सफेद ।-उ० दांत कवाड्या पाशुचामर-सचा पुं० [सं० ] दे० 'पाशुचामर' । सिर पाङ्करा केस ।-बी० रासो, पृ०७१ । पाशुज-सज्ञा पुं॰ [सं०] नोनी मिट्टी से निकाला हुमा नमक | पाडेय-सज्ञा पुं॰ [सं० पाण्डेय ] दे० 'पाँडे'। पांशु जालिक-सज्ञा पुं॰ [सं०] विष्णु का एक नाम (को०] । पाडो-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पाण्डव ] दे॰ 'पाडव'। उ०-बघु घात पांशुधान-सज्ञा पुं० [सं० ] धूल की ढेरी [को०] ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२०९
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