पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२०

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प'चकीस पंच २७२४ ३ पान अधिक पमिती गाममाज जो बिगी भगटे या मामले फे लिये अलग निकाल दिया जाता है। यह पनियध- को निपटाने निये एवाप्र हो । न्याय पग्नेवानी सभा । दवा घंग माना जाता है। प्रमागन ।यागमन । ८०-- शि०प्र०-घुलाना। पनप यस परियन नागे । गालि गान : प्रति नगगे। या-सरपंच। पंचनामा । -तुलनी (शब्द०)। मुहा०-(मिमीनो) पंच मानना ा बदना-झगडा निबटाने पचपाया ० [ पन्चापाय ] तो यनुगार इन पनिये किसी को नियत पारना। मगटा निबटानेवाला पाँच वृक्षो का यपाय-नामुन, गेमर, टी, गौतसिंगे और वैर। समीर गारना। उ०-दोनो ने गुपच मोना ।-शिय- विशेप-यह नपाय झाल गो पानी में भिगार निशाना जाता प्रसाद (गव्द०)। यह जो पोजदानी दौरे के मादमे में दोग जज की अदालत है पोर दुर्गा के पूजन में शाम पाता है। ग मुकदमे मेले में जज को सहायता के लिये नियत हो। पंचकाम-मा गु० [2० पञ्चकाम ] मार के पनुशार पान ५. दनाल । ( दलाल )। ६ किली विषय विशेष में मुख्यता नामदेव जिनके नाम ये है-नाम, मन्मय, मादर्ण, माज प्राप्त करनेवाला व्यक्ति। पौर मीनवेतु। पंच-1 [॥ पञ्च ] विस्तृत । फैला हुमा । पंचकारण-सा पुं० [१० पञ्चकारण ] जैनमान में गनुसार पाच कारण जिनगे किमी काय पी उत्पत्ति होती है। वयेरें- पंचफ--min [सं० पञ्चा] १. पांच का समूह । पचि का संग्रह । जसे, इश्यिप चना, पपना। २. चट जिसके पांच अवयव या गाल, स्वभाव, नियति, पुरुष और कर्म । पचे द्रियों में गया "मनेवाली। गाग हो। ३. पाच गोटे व्याज । ४ पनिष्ठा प्रादि पंचकी-वि० [पञ्चक ] १ पार नभन जिरागे पिसी नए गाय का प्रारभ निषिद्ध २. दुनिया की। लोगो की। उ०-घटी मानि नीति है। (फलित ज्यो०)। सव मन की मेटि उपाधि । दादू पनहर पचपी गम रहे ते पनसा । ५. शकुन शास्त्र । ६ पाशुपत पशन में गिनाई हुई पाठ वस्तुएं जिनमें प्रत्येक के पांच साध। -दादू० पृ० ४१० । पाच भद लिए गए हैं। ये गाठ वस्तु ये है-लाभ, मल, पचकृत्य--14t० पु० [५० पञ्चत्य ] १ ईश्वर या महादेव को उपाय, देश, अवस्था, पिशुति दीक्षा, कारिक और बल । पाँच प्रकार के फर्म-गृष्टि, स्थिति, प्यन, विधान पौर म नुप्रद ७ पान प्रतिनिधियो की सभा। पपायत । ८ युद्धक्षेत्र । ( सर्वदर्शनगग्रह ) २ पक्तपौल वृक्ष । पनौटे का प० । रणभूमि (को०)। पचकृष्ण- पुं० [ मं० पञ्चकृष्ण ] मुश्रुत के अनुसार एक पोट पचफन्या-गा. [ । पञ्चरन्या ] पुगणानसार पांच स्त्रियाँ का नाम । जो सदा गन्या ही रही अर्थात् वियाह आदि करने पर भी पचफोण'- पुं० [ { प-को ] १ पांच गोने । २. तुटली में जिनका पन्चात्य नष्ट नहीं हुया । प्रहल्या, द्रौपदी, चुती, लग्न से पाचर्या मोर नयाँ स्थान । तारापोर मदोदरी ये पांच पन्याएँ ही गई हैं। पंचकोण - जिनमे पाच गोने हो । पंचयाना । पंचकपाल-11 . [ पञ्चकपाल ] वह पुगेटाश जो पांच पचकोल-सत ५० [५० पञ्चकोल ] पीपल, पिपरामस, चन, कपालो में प्रचार गृधन पारा नाम । चित्रय मूल धौर सोठ । पैद्यर मे इन्हे पाचन, रविकर या पचफपाल -- पांच रुपालो मे तैयार दिया हुआ। गुल्म पोर प्लीहा गंगनाया माना है। पचर्प, पंचकर्पट -11 . पार्प, पञ्चकर्पट] महाभारत पचकोश-- पुं० [१० पञ्चकोश] अनिषद भौर पदान गे. गोपनगार एका देश जो पश्चिम घो- था और जिने नगुल ने पनुनार परीर रागटित रोयाले पाच गोग ( स्त)। जगूय यश के समय जीता पा। विशेप --इनो नाम मोर नसी परिभाषा : --- पायो, पचकर्ग--1.7 y० [" पञ्चकर्मन् ] १ चिरिला की पान प्राणमय कोशमनोमय गोग, MITRE प्रो: पान:- पिपाएं। गमगविपन, नम्र, नियम्ति और अनुरस्ति मय होश । इनमे रल शीर गो माग, नानी (अनुपासन)। पुल लोग निम्हयस्ति पोर मनुअस्ति (मनु. पर्मेनियो सहित प्राग से प्रागमन मोग, पांगमा बावर) रपान में बन पौर यस्तोरण मानते हैं। सहित मन यो मनोमन पोज, पानी जनहित ये "ति दिपगा: पान पगार गे पोपण, पो विज्ञानमय नोज गपा महामाया परियार पीपरा, मनस, मारा और गमन । मानंदमय गोग मरते हैं। पाने पोकर दो ५पपल्याए --- [.प. चायारा ] Pा जिगात शिर सूक्ष्म शोर पोर तीसरे, गोपे और पापा पारगर (गाया). पर गणेहो पोर शेप मागेर सान, महवे है। पाना नानी रगाहोरेको नम देनेगना मा पोप- [प] : पपग। पंपांस-11पञ्चदशेश] [ . . पया पंपरयन-- 3 [.प.समजो मृति में सोती साई र चोदाई के बीजोral समार साने ते. पासत, मोली, रोगी, और मादि पषित मि । पानी । 30-40गपुर भारत