के पहल, प्रादि। पहल २९०८ पहलू भूमि। किसी वस्तु की लंबाई चौडाई और मोटाई अथवा प्रथम गणना में एक के स्थान पर पडनेवाला । एक की संख्या गहराई के कोनो अथवा रेखाओं से विभक्त समतल मश । का पूरक । घटना, अवस्थिति, स्थापना आदि के विचार से किसी लवे चौहे और मोटे मथवा गहरे पदार्थ के बाहरी जिसका स्थान सबसे आगे हो। प्रथम । औवल । जैसे, पानी- फैलाव की बेटी हुई सतह पर का चौरस कटाव या बनावट । पत का पहला युद्ध, ग्रथमाला की पहली पुस्तक, पांत का बगल । पहलू । बाजू । तरफ। जैसे, खमे के पहल, डिविया पहला आदमी आदि। पहला २-उज्ज्ञा पुं० [हिं० पहल ] जमी हुई पुरानी रूई । पहल । क्रि०प्र०—काटना । तराशना । --बनाना । पहलादा-सदा पुं० [सं० प्रहलाद ] दे० 'प्रहलाद'। उ०-चद मरे यौ०-पहलदार । चौपहल । अठपहल । सूरज मरे, मरिहै जिमीं प्रकास । धू पहलाद भभीषना, परे काल की फांस ।-घट०, पृ०२३५ । मुहा०-पहल निकालना = पहल बनाना । किसी पदार्थ के पृष्ठ देश या वाहरी सतह को तराश या छीलकर उसमें त्रिकोण, पहलुका-वि० [हिं० पहले ] पहले का । प्राथमिक । उ०—पहलुक चतुष्कोण, षट्कोण आदि पैदा करना । पहल तराशना । परिचय पेम क सचय, रजनी पाघ समाजे । -विद्यापति, २ धुनी रूई या कन की मोटी और कुछ कही तह या परत । पृ०६०। जमी हुई रूई अथवा कन । रजाई तोशक आदि मे भरी हुई पहलू-संज्ञा पुं॰ [ फा०] १ शरीर में कांख के नीचे वह स्थान रूई की परत । ३ रजाई तोशक भादि से निकाली हुई जहाँ पसलियां होती हैं। बगल और कमर के बीच का वह पुरानी रूई जो दवने के कारण कडी हो जाती है । पुरानी भाग जहाँ पसलियाँ होती हैं। कक्ष का अघोभाग। पाव । रूई। ४. तह । परत । उ०-मायके के सखी सो मंगाइ पांजर। फूल मालती के चादर सों ढाँपै छ्वाइ तोसक पहल में।- मुहा०-(किसी का ) पहलू गरम करना = किसी के शरीर रघुनाथ (शब्द०)। से विशेषत प्रेयसी या प्रेमपात्र का प्रेमी के शरीर से सटकर पहल-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पहला ] किसी कार्य, विशेषत ऐसे कार्य बैठना। किसी के पहलू से अपना पहलू सटा या लगाकर का प्रारभ जिसके प्रतिकार या जवाब में कुछ किए जाने वैठना। किसी के प्रति समीप वैठकर उसे सुखी करना। की सभावना हो। छेह । जैसे,—इस मामले में पहल तो (किसी से) पहलू गरम करना = किसी को विशेषत प्रेयसी या प्रेमपात्र को शरीर से सटाकर बैठाना। किसी को अपनी तुमने ही की है, उनका क्या दोष? बगल में इस प्रकार बैठाना कि उसका पहलू अपने पहल से पहलदार-वि० [हिं० पहल + फा० दार ] जिसमे पहल हो । पहलूदार । जिसमें चारों ओर अलग अलग बॅटी हुई लगा रहे। मुहव्वत में बैठाना। पहलू में बैठना = किसी के पहलू से अपना पहलू लगाकर वैठना। किसी का पहलू गरम सतहे हो। करना = विलकुल सटकर बैठना । अति समीप बैठना । पहलनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पहल ] सोनारों का प्रौजार जिसमें कोढ़े पहलू में बैठाना=किसी के पहलू को अपने पहलू से लगा- को पहनाकर उसे गोल करते हैं । यह लोहे का होता है । कर बैठाना । विलकुल सटाकर बैठाना । अति समीप पहलवान-सज्ञा पुं० [फा० ] [ सशा पहलवानी ] १ कुश्ती वैठाना । पहलू में रहना=पहलू में बैठा रहना । पहलू लडनेवाला बली पुरुष । कुश्तीवाज । बलवान और दावपेंच गरम करना। लग या सटकर रहना। आस पास रहना। मे अभ्यस्त । मल्ल । २ पहलवान तथा डीलहौलवाला। अति समीप रहना। वह जिसका शरीर यथेष्ट हृष्ट पुष्ट और बलस युक्त हो । २ किसी वस्तु का दायाँ अथवा वायाँ भाग। पार्श्व भाग । मोटा तगडा और ठोस शरीर का आदमी । जैसे,—वह तो बाजू । बगल । ३ सेना का दाहना या वायां भाग । खासा पहलवान दिखाई पड़ता है। सैन्यपाल । फौज का पहलू । जैसे,—वह अपने दो हजार पहलवानी-सच्चा स्त्री॰ [फा०] १ कुश्ती लड़ने का काम । कुश्ती सवारो के साथ शत्रुसेना के दाएँ पहलू पर बाज की तरह लडना । २ कुश्ती लडने का पेशा । मल्ल व्यवसाय । जैसे,- टूट पडा। उनके यहाँ तीन पीढ़ियो से पहलवानी होती आ रही है। मुहा०—पहलू दवाना = (१) आक्रमणकारी सेना का विपक्षी ३ पहलवान होने का भाव । बल की अधिकता और दावे की सेना अथवा नगर के एक मोर वरावर में पहुंच जाना पेंच आदि में कुशलता। शरीर, बल और दावे पेंच आदि या जा पडना। अपनी सेना को बढ़ाते हुए विपक्ष की सेना का अभ्यास । जैसे,—मुकाविला पड़ने पर सारी पहलवानी के या नगर के दाहने या वाएं पहुंच जाना। शत्रु की सेना निकल जायगी। या नगर पर एक ओर से आक्रमण कर देना। जैसे,—साय- पहलवी-सशा पुं० [फा०] दे० 'पह्नवी' । १०-जैसे पश्चिमी की काल से कुछ पहले ही उसने शाही फौज का पहल जा दवाया। क्रमश पुरानी पारसी पहलवी वा वर्तमान फारसी और पश्तो (२) मपनी सेना के एक पहलू को कुछ पीछे रखते मोर आदि है। -प्रेमघन०, भा०२, पृ० ३७७ । दूसरे को आगे करते हुए, चढ़ाई में आगे बढ़ना। एक पहलू पहला'-~-वि० [सं० प्रथम, प्रा० पहिलो ] [स्त्री० पहली ] जो क्रम को दवाते और दूसरे को उभारते हुए आगे बढना । पहलू के विचार से प्रादि में हो । किसी क्रम ( देश या काल ) में घचाना = (१) मुठ भेड बचाते हुए निकल जाना। क्तराकर
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१९९
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