पविता 2086 पशु पविता-१० [सं० पवित्] शुद्ध करने वाला । पवित्र करने वाला को] । जिनके विषय में लोगो का विश्वास था कि ये स्त्रियों का गर्भ पविताई -३० जी० [१० पवित्रता] शुद्धि । सफाई । पवित्रता । गिरा देते हैं। पवित्वरी-वि[ स० पवित्र ] दे॰ 'पवित्र'। पवीर-सगा पुं० [सं०] १ हल की फाल । २ शस्त्र । हथियार । पवित्र'-वि० [ स०] १ जो गदा मैला या खराव न हो। शुद्ध । ३ वच । पवि। निर्मल। साफ । पवेरना-क्रि० स० [हिं० पवारना] छितराकर वीज वोना । पवित्र--सज्ञा पुं० [सं०] १ मेंह। वारिश । वर्षा । २ कुशा। पवेरा-मशा पुं० [हिं० पवेरना ] वह बोआई जिसमें हाथ से ३ तांबा । ४ जल । ५ दुध । ६ घर्षण । रगड । ७ अर्घा । छितरा या फेंककर वीज बोया जाय । अर्घपात्र । ८ यज्ञोपवीत । जनेऊ । ६ घी। १० शहद । ११ पव्य-सचा पुं० [म.] यज्ञपात्र । कुशा की बनी हुई पवित्री जिसे श्राद्धादि में अंगुलियो में पन्वय-पशा पुं० [सं० पर्वत, प्रा० पव्यय ] पर्यत । पहाड । पहनते हैं। १२ विष्णु । १३ महादेव । १४ तिल का उ०-घरे कर पन्वय गोप सहाय, परे जलवार तडित पौधा। १५ पुष जीवा का वृक्ष । १६ कार्तिकेय का निहाय । पृ० रा०,२। ३६२ । एक नाम। पवित्रफ-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ कुशा। २ दौने का पेड। ३. गूलर पशम-सज्ञा जी० [फा० पश्म ] १ बहुत बढ़िया और मुलायम का पेड। ४ पीपल का पेड । ५ जाला । ६ चलनी जिससे कन जो प्राय पजाव, कश्मीर और तिब्बत की वकग्यिो से प्रांटा आदि चालकर साफ करते हैं (को०)। ७ क्षत्रिय का उतरता है और जिससे बढ़िया दुगाले और पशमीने बनते हैं । यज्ञोपवीत। विशेप-कश्मीर, तिब्बत और नेपाल प्रादि ठठे देशो की पवित्रता-सञ्चा सी० [सं०] पवित्र या शुद्ध होने का भाव । शुद्धि । वकरियो में उनके रोएँ के नीचे की तह मे और एक प्रकार के स्वच्छता । पावनता । सफाई। पाकीजगी। बहुत मुलायम, चिकने वारीक रोएँ होते हैं जिन्हें पशम पवित्रधान्य-सज्ञा पुं॰ [स०] जो । यव । कहते हैं। इसका मूल्प बहुत अधिक होता है और प्राय पवित्रपाणि-वि० [सं०] १ हाथ में कुश रखनेवाला। २ पवित्र बढिया दुशाले, चादरें और जामेवार प्रादि वनाने मे इसका हाथोवाला को। उपयोग होता है । विशेष-दे० 'कन' । पवित्रवति–सचा स्त्री० [सं०] क्रौंच द्वीप की एक वनस्पति । २ पुरुष या स्त्री की मूत्रंद्रिय पर के वाल । उपस्थ पर के बाल । शप्प । झांट। पवित्रा--सञ्चा स्त्री० [सं०] १. तुलसी । २ एक नदी का नाम । ३ हलदी । ४ अश्वत्थ । पीपल । ५ रेशम के दानो की वनी मुहा०-पशम उखाड़ना = (१) व्यर्थ समय नष्ट करना । (२) हुई रेशमी माला जो कुछ धार्मिक कृत्यो के समय पहनी जाती फुछ भी हानि या कष्ट न पहुंचा सकना । पशम न उखड़ना = है। ६ श्रावण के शुक्ल पक्ष की एकादशी । (१) कुछ भी काम न हो सकना। (२) कुछ भी कप्ट या हानि न होना । पशम पर मारना = विलकुल तुच्छ समझना। पवित्रात्मा-वि० [सं० पवित्रात्मन् ] जिसकी प्रात्मा पवित्र हो। पशम न समझना = कुछ भी न समझना। पशम के बराबर शुद्ध अन्त करणवाला । शुद्धात्मा । भी न समझना। पवित्रारोपण-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] श्रावण शुक्ल १२ को होनेवाला ३ बहुत ही तुच्छ वस्तु । वैष्णवो का एक उत्सव जिसमे भगवान् श्रीकृष्ण को सोने, पशमोना-सचा पुं० [फा० पश्मीनह ] १ दे० 'पशम' । २ पशम चांदी, तांबे या सूत आदि का यज्ञोपवीत पहनाया जाता है । का बना हुमा कपडा या चादर थादि । पवित्रारोहण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] दे० 'पवित्रारोपण'। पशव्य'-वि० [सं०] १ पशु सबंधी । २ पशु के लिये हितकर । ३ पवित्राश-सचा पुं० [सं०] सन का बना हुआ होरा, जो प्राचीन काल नृशस । कर । पशुतापूर्ण [को०] । में बहुत पवित्र माना जाता था। पविनित-वि० [स०] शुद्ध किया हुआ । निर्मल किया हुश्रा । पशव्य-सज्ञा पुं० १ गोष्ठ । गोवाट । अडार। २ पशुसमूह [को०] । पवित्री-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पवित्र ( = कुश ) ] कुश का बना हुमा पशु-सज्ञा पुं० [सं०] १ लांगूलविशिष्ट चतुष्पद जतु । चार पैरों से एक प्रकार का छल्ला जो कमंकाह के समय अनामिका में चलनेवाला कोई जतु जिसके शरीर का भार खडे होने पर पैरो पहिना जाता है। पर रहता हो । रेंगनेवाले, उहनेवाले, जल मे रहनेवाले जीवो पवित्री-वि० [सं० पविनिन् ] १ पवित्र करनेवाला। २ पवित्र । तथा मनुष्यो को छोड कोई जानवर। जैसे, कुत्ता, बिल्ली, शुद्ध [को०] । घोडा, ऊँट, बैल, हाथी, हिरन, गीदड, लोमडी, बंदर इत्यादि । पविद-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] एक ऋषि का नाम । पविधर-सचा पुं० [स०] वज्र धारण करनेवाले, इद्र । विशेष-भाषारत्न में लोम और लांगूल ( रोएँ और पूछ ) वाले जतु पशु कहे गए हैं । अमरकोश में पशु शब्द के अंतर्गत पवीनव-सचा पुं० [सं०] अथर्ववेद के अनुसार एक प्रकार के असुर इन जतुनो के नाम पाए हैं-सिंह, वाघ, लकडवग्घा (चरग),
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१८९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।