पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१८८

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पवित पवनबाण सेवक जाके लषन से पवनपूत रनधीर । —तुलसी० ग्रं०, ३ गार्हपत्य अग्नि। ४ चद्रमा का एक नाम । ५ ज्योतिष्टोम यज्ञ मे गाया जानेवाला एक प्रकार का स्तोत्र । पृ०६०। पवनबाण-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] वह वाण जिसके चलाने से हवा वेग पवर-सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'पंवरि' । से चलने लगे। पवन अस्त्र । पवर-वि० [स० प्रवर ] दे० 'प्रवर' । पवनमुक्-सज्ञा पुं॰ [ स० पवनभुज् ] सर्प । साँप [को०] । पवरिया-सञ्ज्ञा पु० [हिं० ] दे० 'पौरिया' । पवनवाहन-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] अग्नि । पवरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'पॅवरि'। पवनव्याधि'-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] वायुरोग । पवर्ग-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] वर्णमाला का पांचवां वर्ग जिसमें प, फ, पवनव्याधि-सञ्ज्ञा पु० [स०] श्रीकृष्ण के सखा उद्धव का ब, भ, म ये पाँच अक्षर हैं । वर्णमाला मे से लेकर म तक एक नाम। के प्रक्षर। पवनसंघात-सञ्ज्ञा पु० [सं० पवनसङ्घात ] दो ओर से वायु का पवाड़ा-सज्ञा पुं॰ [दे०] 'पंवाडा' । पाकर आपस मे जोर मे टकराना जो दुर्भिक्ष और दूसरे पार-तज्ञा पु० [ देश०] १ पमार । पवाड । चकवड । २ क्षत्रियो राजा के आक्रमण का लक्षण माना जाता है। की एक शाखाविशेष । दे० 'परमार'। पवनसुत-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ हनुमान् । २. भीमसेन । पवारना -क्रि० स० [ स० प्रवारण ] १ फेंकना। गिराना । २ पवना-सञ्ज्ञा पु० [ देश०] झरना। पौना। दे० 'झरना'२। खेत मे छितराकर वीज वोना । पवनात्मज-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ हनुमान् । २ भीमसेन । पवाँरा–सञ्चा पुं० [ स० प्रवाद ] » 'पंवाहा' । ३ अग्नि । पवाई-सचा स्त्री० [हिं० पाव+याई (स्वा० प्रत्य॰)] १ एक फर्द पवनाल-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] पुनेरा नाम का धान्य । जूता । एक पैर का जूता । २ चक्की का एक पाट । पवनाश-सञ्ज्ञा पु० [ स० ] साप। पवाका-संज्ञा स्त्री॰ [स०] ववडर । तीब्र पवनचक्र [को०] । पवनाशन-सज्ञा पु० [स०] सर्प । भुजग । पवाड़ा-सज्ञा पुं॰ [स० प्रकार ] भांति । तरह । उ०—भाजे कोई पवनाशनाश-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ गरुड । २ मोर । रे भिडि भारथ, साम्हौं सूरा सत जिणि हारे। दुही पवाड पवनाशी-सशा पुं० [सं० पवनाशिन् ] १ वह जो हवा खाकर सुजस ताहरौं, के मरसी के मारे ।-सु दर, मं०, भा॰ २, पृ०८८४ रहता हो। २ सांप। पवनान-सज्ञा पुं॰ [ स०] पुराणानुसार एक प्रकार का प्रस्त्र । कहते पवाड़-सञ्ज्ञा पु० [देश॰] चकवड । हैं, इसके चलाने से बहुत तेज हवा चलने लगती थी। पवाड़ा-सञ्ज्ञा पुं० [ स० प्रवाद ] दे० 'पवाडा'। पवाना-क्रि० स० [हिं० पाना ( = भोजन करना) का सकर्मक रूप] पवनाहत-वि० [सं०] वात रोगी । वात रोग से पीडित [को॰] । १ खिलाना। भोजन कराना। उ०-सहित प्रीति ते अशन पवनि-वि० [स० पावन] पवित्र करनेवाली । पावनी। पावन । बनावै । परसि दूरि ते ताहि पवावै। -रघुनाथ (शब्द०)। पवित्र । उ०-सुवन सुख करनि, भव सरिता तरनि, गावत २ प्राप्त कराना। तुलसिदास कीरति पनि ।—तुलसी (शब्द॰) । पवार-सञ्ज्ञा पुं॰ [हिं० ] दे० 'परमार'। पवनी -सज्ञा स्त्री० [हिं० पाना ( = प्राप्त करना)] गावो मे रहनेवाली वह छोटी प्रजा या नीच जाति जो अपने निर्वाह पधारना-क्रि० स० [ स० प्रवारण ] दे० 'पारना' । उ०-या ही के लिये क्षत्रियो, ब्राह्मणो अथवा गाँव के दूसरे रहनेवालो से नर देही को प्राण छोड देते कैसे जारि वार करिके पवार नियमित रूप से कुछ पाती है। जैसे, नाक, बारी, भाट, दीजियतु है ।-ठाकुर०, पृ० ३७ । घोबी, चमार, चुडिहारी आदि । पवारा-मज्ञा पु० [सं० प्रवाद ] दे॰ 'पवाडा'।-उ० - कहूँ वाच पवनी-सञ्ज्ञा सी० [हिं० ] दे॰ 'पौना' । कई पेखन होई। कहूँ पवारा गावत कोई । माधवानल०, पवनेष्ट-मशा पु० [ स०] बकायन । पृ० २०५। पवनोंवुज–सञ्चा पुं० [सं० पवनोम्बुज ] फालसा । पधारी-सञ्ज्ञा स्त्री० [?] नलिका नामक गधद्रव्य । पवन-सञ्ज्ञा पुं० [स० पवन ] दे० 'पवन' । उ०—वहै सीत पवि-सञ्ज्ञा पु० [ स०] १ वच्च । २ विजली । गाज । ३ वाक्य । मद सुगध पवन्न । -ह. रासो, पृ० ३६ । ४ वाण या भाला की नोक (को०)। ५ तीर । वाण पवमान-पञ्चा पु० [सं०] १ पवन । वायु । समीर । उ०-छोर (को०)। ६ अग्नि । ७ थूहर । सेहुँड । ८ मार्ग। रास्ता । वही भूतल नदी, त्रिविध चले पवमान । हेमवती सुत (डिं०)। ६ चक्का या पहिए का टायर (को०)। जाइया जाहिर सकल जहान । -प० रासो, पृ० १३ । २ पवित-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] मिर्च । स्वाहा देवी के गर्भ से उत्पन्न अग्नि के एक पुत्र का नाम । पवित-वि० पवित्र । शुद्ध ।