पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१७५

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पर्वतनदिनी २८८४ पर्वसंधि विशेष-चाणक्य के मत से पर्वतदुर्ग सब दुर्गों से उत्तम अपनी सेना के चारो ओर पहाड खडे हो जाते थे। जिससे होता है। शत्रु का प्रभजनास्त्र रुक जाता था। पर्ववनदिनी-शा स्त्री॰ [ स० पर्वतनन्दिनी ] पार्वती । उ०—सुत पवति-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ] चट्टान । पर्वत की शिला (को०] मैं न जायो राम सो यह कह्यो पर्वतनदिनी । पर्वतिया -सज्ञा पुं॰ [सं० पर्यंत + हिं० इया (प्रत्य॰) ] नेपालियों केशव (शब्द०)। की एक जाति । पर्वतपति-मज्ञा पु० [सं०] हिमालय । पर्वतराज [को॰] । पर्वतिया--सज्ञा पुं० १ एक प्रकार का कद्दू । २ एक प्रकार पर्वतपाटी-शा सी० [सं०] पर्वत श्रेणी। गिरिश्रेणी । पर्वत- का तिल । शृखला। उ०—यह है अलमोडे का वसत खिल पसी निखिल पर्वती- वि० [सं० पर्वत + ई (प्रत्य॰)] १ पहाडी । पहाड- पर्वतपाटी। --- युगात, पृ०६ । सबधी । २ पहाडो पर रहनेवाला । ३. पहाडो पर पैदा पर्वतमाला-संज्ञा स्त्री० [म०] पर्वतो को शृखला । पहाडो का होनेवाला। सिलसिला जो दूर तक फैला रहता है। उ०-हिंदुस्तान पर्वतीय-वि० [स०] १ पहाडी । पहाड सबधी । २ पहाड पर के उत्तर मे, उत्तरपच्छिम और उत्तरपूरब में, मध्य हिंद रहने या बसनेवाला । ३ पहाड पर पैदा होनेवाला । मे और पच्छिम में तमाम कोकन और मलावार तट पर जो पर्वतमालाएँ हैं, उन्होने सभ्यता पर एक और प्रभाव डाला पर्वतृण-सहा पुं० [ स०] एक प्रकार का तृण जो औषध के काम है।-हिंदु० सभ्यता, पृ० १४ । मे आता है। तृणाढ्य । पर्वतमोचा-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] पहाडी केला । पर्वतेश्वर--सचा पु० [सं०] हिमालय । पर्वतराज-मा पुं० [सं०] १ बहुत बडा पहाड । पर्वतोद्भव-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ पारा । २ शिंगरफ । २ हिमालय पर्वत । पर्वतोद्भूत-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] अबरक । पर्वतवासिनी-सञ्ज्ञा सी० [स०] १ छोटी जटामासी । २ पवतोर्मि- सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की मछली। काली का एक नाम । ३ गायत्री। पर्वधि-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] चद्रमा । पर्वतवासी-वि०, सञ्ज्ञा पुं० [ म० पर्वतवासिन् ] पर्वत पर रहनेवाला पर्वपुष्पिका, पर्वपुष्पो-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ नागदती नामक क्षुप । पर्वतीय [को०] । २ रामदूता तुलसी। पर्वतश्रेणो–सशा मी० [म०] दे० 'पर्वतमाला' [को०] । पर्वपूर्णता-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ किसी उत्सव या त्यौहार का सपन्न पर्वतस्थ-वि० [म० ] पहाड पर स्थित [को०] । होना । २ उत्सव या त्यौहार को तैयारी [को०] । पर्वतात्मज-राशा पुं० [सं०] पर्वत का पुत्र । मैनाक [को०) । पर्वभाग-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] मरिणबध । कलाई (को०] । पर्वतात्मजा-सशा सी० [सं०] दुर्गा । पर्वभेद-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सघिभग नामक रोग का एक भेद । पर्वताधारा-सशा पी० [सं० ] पृथ्वी । पर्वमल--सशा पुं० [सं०] चतुर्दशी और अमावस्या तथा चतुर्दशी और पर्वतारि-संज्ञा पुं० [सं०] इद्र । पूर्णिमा का सधिकाल [को०] । विशेप-कहते हैं, इद्र ने एक बार पहाडो के पर काट डाले पर्व मला--संज्ञा स्त्री॰ [स०] सफेद दूब । थे। इसी से उनका यह नाम पडा। दे० 'पर्वत' शब्द का पर्वयोनि-सज्ञा पुं॰ [स०] वह वनस्पति आदि जिसमें गांठ हो । जैसे, विशेष। ऊँख, नरसल। पर्वतारोहो-वि॰ [ सं० पर्वतारोहिन् ] पहाड़ पर चढनेवाला । किसी पर्वर-सज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'परवल'। कार्य से पर्वत पर चढ़नेवाला। परिश-संशा स्त्री॰ [फा० ] पालन पोषण । पालना पोसना । यौ०- पर्वतारोही दल। पर्वरीण-सज्ञा पुं० [स०] १ पर्व । २ मृतक । मुर्दा । ३ अभिमान । पर्वताशय-सशा पुं० [सं०] मेघ । वादल । घमड । ४ वायु (को०)। ५ दे० 'पर्परीण' (को०) । पर्वताश्रय-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ शरभ नाम का एक जानवर । पर्वरुह-मज्ञा पुं॰ [ सं०] अनार । २ वह जो पर्वत पर रहता हो। पर्वतीय [को०)। पर्ववल्ली-सज्ञा स्त्री॰ [स०] दूब । दूर्वा । पर्वताश्रयी-वि० [म० पर्यंताश्रयिन् ] पहाड पर रहनेवाला। पर्वसधि-मञा पुं॰ [ स० पर्नसन्धि ] १ पूणिमा अथवा अमावस्या पहाडी किो०] । और प्रतिपदा के बीच का समय । वह समय जब पूर्णिमा पर्वतासन-तज्ञा पुं॰ [सं०] एक प्रकार का प्रासन । वैठने को एक अथवा अमावस्या का प्रत हो चुका हो और प्रतिपदा का मुद्रा [को०] । प्रारभ होता हो। २ सूर्य अथवा चद्रमा को ग्रहण लगने पर्वतास्त्र-स पुं० [ स०] प्राचीन काल का एक अस्म जिसके फेंकते का समय । वह समय जब सूर्य अथवा चद्रमा ग्रस्त हो । ही शत्रु को सेना पर बडे बडे पत्थर बरसने लगते थे, अथवा ३ घुटने पर का जोड।