पर्यायोक्ति पर पव पर्यायोक्ति-वशा ग्री० [ म० ] वह शब्दालकार जिसमें कोई वात पर्युक्षण- सज्ञा पुं० [सं०] श्राद्ध, होम या पूजा प्रादि के समय यों ही साफ साफ न कहकर कुछ दूसरी वचनरचना या घुमाव अथवा कोई मत्र पढकर चारो ओर जल छिडकना । फिगव से कही जाय, अथवा जिसमें किसी रमणीय मिस या पर्युक्षणी-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० ] वह पात्र जिससे पर्युक्षण का जल व्याज से कार्यसाधन किए जाने का वर्णन हो। जैसे, ( क ) छिडका जाय । लोभ लगे हरि रूप के करी सांट जुरि जाय । हौं इन वेची पर्युत्थान-सञ्ज्ञा पुं० [ म० ] उठना । उत्थान । खहा होना [को०] । वीचही लोयन बुरी बलाय ।-विहारी (शब्द॰) । यहाँ यह पर्युत्सुक-वि० [स० ] १ व्याकुल । उद्विग्न । २. दुखयुक्त । दुःखी । न कहकर कि में कृष्ण के प्रेम से फंसी हूं यह कहा गया है खिन्न । ३ वहुत उत्सुक । अत्यत उत्कठित (को०] । कि इन प्रांखो ने मुझे कृष्ण के हाथ वेच दिया। (ख) भ्रमर कोविल माल रसाल पै, करत मजुल शब्द रसाल हैं। वन पयुत्सुकत्व-सज्ञा पुं॰ [ स० ] पर्युत्सुक होने का भाव । दु ख [को०] । प्रभा वह देखन जात हौं, तुम दोक तब लौ इत ही रही। पर्यु दचन-सज्ञा पुं॰ [स० पर्युदञ्चन] १ उद्धार । युक्ति । २ कर्ज । यहाँ नायक और नायिका को अवसर देने के लिये सखी बहाने ऋण [को०] । से टल जाती है। पर्युदय - सञ्ज्ञा पु० [ स० ] सूर्योदय समीप होने का समय । पर्यारिणी-सज्ञा स्त्री० [म०] रोगग्रस्त गाय । वह गौ जो व्याधिग्रस्त पर्युदस्त-वि० [ स० ] १ निपिद्ध। २ चारो मोर फेंका हुमा । हो [को॰] । ३ अलग किया हुआ [को०] पर्यालो-प्रव्य० [म.] हिंमन । हिंसा (को॰] । पर्युदास-सञ्चा पुं० [ स० ] १ प्रपवाद । २ निषेध [को०] । विशेप-सस्कृत की कृ, भू और अस् धातु के साथ यह व्यवहृत पर्युपस्थान-शा पु० [ सं० ] सेवा । अर्चा । सुश्रूषा । टहल [को०] । होती है । जैसे, पर्याली कृत्य अर्थात् हिंसा करके । पर्युपासक--सज्ञा पुं॰ [ स०] पर्युपासन करनेवाला। सेवा करने- पर्यालोचन-सज्ञा पु० [ म०] अच्छी तरह देखभाल । समीक्षा । वाला । उपासक । सेवक । सम्यक् विवेचन। पर्युपासन-पज्ञा पुं० [ म०] १ सेवा। उपासना । अर्चना । २ पर्यालोचना--सञ्ज्ञा सी० [सं०] किसी वस्तु की पूरी देखभाल । प्रतिमुख सघि के तेरह अगो मे से एक। किसी को क्रुद्ध देखकर उसे पसन्न करने के लिये अनुनय विनय करना। समीक्षा । पूरी जांच पड़ताल । (नाट्यशास्त्र) । पर्यालोचित-पि० [ मं०] जिसका पर्यालोचन किया गया हो। पर्युषण -सञ्ज्ञा पु० [ स०] जैनियो के अनुसार तीर्थंकरो की सेवा विवेचित । समीक्षित [को०] । या पूजा। पर्यावर्त-सज्ञा पुं॰ [ मं०] १ पाना। लौटना । वापस पाना । २. पर्युषित-वि० [सं०] १ एक दिन पहले का। जो ताजा न हो। ससार मे विचारपूर्वक जन्मग्रहण। ससार में फिर से पाकर बासी (फूल या भोजन के लिये)। २ नीरस । विरस (को॰) । जनमना। ३ मूर्ख । अज्ञ । मूढ़ (को०) । ४ व्यर्थ । निरर्थक । पर्यावर्तन-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ एक नरक का नाम । २ दे० निसार (को०)। 'पर्यावर्त' [को०)। यौ०-पर्युपितभोजी = पर्युपित भोजन करनेवाला । वासी या पर्यावलोकन-रशा पुं० [सं०] पूर्ण रूप से निरीक्षण । अच्छी तरह नीरस अन्न खानेवाला । पर्युपितवाक्य = शब्द या वाक्य जो से देखना भालना। पूर्णत समझना या जानना । उ०- अनियत या शिथिल हो। अपवर ने तत्कालीन परिस्थितियों का भली प्रकार पर्याव- पहण -सञ्चा पुं० [स० ] अग्नि के चारो ओर जल का लोकन कर लिया था ।-प्रकवरी०, पृ० १२ । मार्जन (को० । पर्याविल-वि० [म०] अत्यत प्राविल । गंदला । कीचड भरा [को०] । पर्येषण -सज्ञा पुं० [सं०] १ अन्वेपण । छानवीन । खोज । २ उपा- सना । सेवा। पूजा (को०) । ३ वर्षाकाल व्यतीत करना। पर्यावृत-वि० [सं०] माच्छादित । ढंका हुआ [को०] । वर्षाऋतु बिताना ( वौद्ध)। पर्यास-सग पुं० [सं०] १. पतन । गिरना। २. मार डालना । पर्येष्टि-संज्ञा स्त्री॰ [स०] अन्वेपण । खोज । तलाश । पूछताछ [को०] । वघ । ३ नाश । ४ चारो ओर घूमना । चक्कर देना । परि- क्रमण (फो०) । ५ विपरीत क्रम । विपरीत स्थिति (को॰) । पर्व-सशा [ सं० पर्वन् ] १ धर्म, पुण्यकार्य अथवा उत्सव आदि करने का समय । पुण्यकाल । पर्यासन- पुं० [ स०] १. किसी को घेरकर बैठना। चारो विशेप-पुराणानुसार चतुर्दशी, अष्टमी, अमावास्या, पूर्णिमा भोर वैठना । २ चारो ओर घूमना । परिक्रमा करना । दे० और सक्राति ये सव पर्व हैं । पर्व के दिन स्त्रीप्रसग करना 'पर्यास' । ३. नाश । ध्वस (को०) । अथवा माम, मछली आदि खाना निपिद्ध है । जो ये सब पर्याहार-सा पुं० [सं०] १ घट। घडा। २ कांवर । वहंगी । काम करता है, कहते हैं, वह विसमूत्र भोजन नामक नरक जूमा । ३ वहन करना । ढोना । ४ वोझ । भार । ५ अन्न में जाता है। पर्व के दिन उपवास, नदीस्नान, श्राद्ध, दान संग्रह (को०)। पौर जप आदि करना चाहिए।
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