पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१६९

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परोलक्ष २८७८ पर्णकार मुहा०-परोन मिलाना = भेदिया बनाना । अपनी तरफ माँगे निन उठि कोस राजा बीर ।-पोद्दार अभि० प्र०, मिलाना। पृ०६३० । परोलक्ष-वि० [म०] लाख से अधिक । लक्षाधिक । परौसिना-मज्ञा स्त्री० [हिं० पड़ोसिन ] दे० 'पडोसिन' । उ०- परोवर-क्रि० वि० [सं०] १ ऊपर से नीचे तक । २ हाथोहाथ । औरन सो बतरावत, मो तन चितवत, चतुर परोसिन देखि एक हाथ से दूसरे हाथ मे । ३ परपरया । लगातार [को० । देखि मुसिक्यात |-नद प्र०, पृ० ३५८ । परोवरीण-वि० [सं०] श्रेष्ठ तथा साधारण से युक्त। अच्छा पट-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ एक प्रकार का वगला । २ अनुताप । बुग (को०)। परिताप । पश्चात्ताप (को॰) । परोवरीयस-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] १ ईश्वर । परमारमा। २ परमा- पर्कटी- सज्ञा स्त्री० [सं०] १ पाकर वृक्ष । प्लक्ष । २ ताजी नद (को०] । मुगरी (को०)। परोष्टि-संज्ञा स्त्री० [सं०] तेलचट्टा नाम का कीडा [को॰] । पर्कटो-मज्ञा स्त्री॰ [ स० पर्कट ] पर्कट वगले की मादा । परोष्णी-सशा स्त्री० [सं०] १ तेलचट्टा नाम का कीडा । २ पुगणा नुसार काश्मीर देश की एक नदी। रावी नदी का एक नाम । पर्कार-सज्ञा पुं० [फा० परफार ] २० 'परकार'। परुष्णी। पर्काल-ज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'परकार'। परोस-सज्ञा पु० [हिं० पड़ोस ] दे० 'पडोस'। उ०-पिय मोर पर्काला-मज्ञा पु० [हिं० ] दे० 'परकाला'। प्राएल पान परोस । -विद्यापति, पृ० ५५३ । पर्गना-संज्ञा पुं॰ [ फा० परगना ] दे० 'परगना' । परोसना-क्रि० स० [सं० परिवेपण] खाने के लिये किसी के सामने पर्चा-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'परचा' । तरह तरह के भोजन रखना । परसना । परसना' । पर्चाना - क्रि० स० [हिं० परचना ] दे० 'परचाना' । परोसा-सझा पु० [हिं० परोसना ] एक मनुष्य के खाने भर पर्चुन - सझा पु० [हिं० ] दे० 'परचून' । का भोजन जो थाली या पत्तल पर लगाकर कही भेजा पनिया-सज्ञा पु० [ हिं० प^न + इया (प्रत्य॰) ] दे० 'परचूनी' । जाता है। पर्चुनी-मज्ञा सी० [हिं० पर्चुन + ई (प्रत्य॰) ] दे० 'परचूनी' । परोसिनी-सज्ञा स्त्री॰ [ हिं० पड़ोस ] दे॰ 'पडोसिन' । उ०- पा-सशा पुं० [हिं० परछा ] द० 'परछा' । तब बहू की सास को परोसिनिन व ही, जो तुम्हारी बहू को पर्ज-सज्ञा पी० [हिं० परज ] दे० परुज' । पांव पाछौ नाही।-दो सो वावन०, भा॰ २, पृ०३ । पर्जकल - सज्ञा पुं॰ [ स० पर्यक ] दे० 'पर्यक' । परोसी-सञ्चा पु० [हिपड़ोसी ] दे० 'पडोसी'। परोसैया-सज्ञा पु० [हिं० परोसना + ऐया ( प्रत्य० ) ] खाने के पर्जनी-सज्ञा स्ला० [सं० ] दारुहल्दी । लिये भोजन सामने रखनेवाला। वह जो भोजन परसता हो। पर्जन्य-सज्ञा पु० [सं०] १ वादन । मेघ । २ विष्णु । ३ इद्र । परोहन-सज्ञा पुं॰ [ स० प्ररोहण ] वह जिसपर सवार होकर यात्रा ४ सूर्य (को०)। ५ मेघगर्जन (को०। । ६ वर्षा (को० । . की जाय। वह जिसपर कोई सवार हो, या कोई चीज कश्यप ऋषि की स्त्री के एक पुत्र का नाम जिसकी गिनती लादी जाय । जैसे, घोडा, बैल, रथ, गाडी आदि। उ०- गधों मे होती है। पार परोहन तो चले, तुम खेवहु सिरजनहार । भवसागर में यौ०- पर्जन्यपत्नी = जिसका पति पर्जन्य हो। शची। पर्जन्य- इचिहै तुम्ह विन प्राण भघार ।-दादू०, पृ० ४७१ । सूक्त = ऋग्वेदोक्त एक सूक्त जिसमें पर्जन्य का वणन है । परोहा-सज्ञा पुं॰ [ देश॰] चमडे का घडा थैला जिससे किसान कुप्रो पर्जन्या-सज्ञा स्त्री॰ [ सं०] दारुहल्दी । से पानी निकालकर खेत सींचते हैं । पुर । मोट । चरस । पर्ण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ पत्ता । पत्र । परौं -सज्ञा पु० [हिं० परसों ] दे० 'परसो' । यौ०-पर्णकुटी । पर्णशाला। परौंठा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] [ स्त्री० परौठी] दे० 'परांठा'। २ ताबूल। पान । परौका - सज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] वह भेड जो पूरी जवान होने पर भी यौ०-पर्णलता। पर्णवीटिका । वच्चा न दे। वांझ भेड। ३ पलास का पेड। ४. पक्ष । पाख। सैना। पख (को०)। ५ परौता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] वह चादर या कपडा जिससे अनाज बाण का पख । तीर का पख (को०)। बरसाते समय हवा करते हैं । इसे 'परती' भी कहते हैं । पर्णक-मक्षा पु० [सं०] एक ऋषि का नाम जो पाणकि गोत्र के क्रि० प्र०-लेना। प्रवर्तक थे। परौती-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० पदती ] दे० 'पडती'। पर्णकपूर-पज्ञा पु० [सं० पर्णकर्पूर ] पान कपूर । परौसा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'पड़ोस' । उ०-सुनि सुनि रे ममरथ पर्णकार-पज्ञा पु० [सं०] पान वेचनेवाली एक जाति जो तबोली साहिब ननद परोसि न राखिए । सोई, सोइ देखे, सोई सोई या बरई कहलाती है।