हिंदी शब्दसागर प प-हिंदी वर्णमाला मे स्पर्श व्यजनो के अतिम वर्ग का पहला वर्ण । पंकजनाभ-मशा पु० [सं० पक्जनाभ ] विष्णु [को०)। इसका उच्चारण ओठ से होता है इसलिये शिक्षा में इसे पंकजराग-सज्ञा पु० [ न० पक्कजराग ] पद्मराग मणि । उ०- प्रोण्ठ्य वर्ण कहा गया है। इसके उच्चारण मे · दोनो' अोठ परिजन सहित राय रानिन कियो मज्जन प्रेम प्रयाग । मिलते हैं इसलिये यह स्पर्श वर्ण है। इसके उच्चारण में तुलसी फल चार को ताके मनि मरकत पकज राग। शिक्षा के अनुसार विवार, श्वास, घोष और अल्पप्राण नामक —तुलसी (शब्द०)। प्रयत्न लगते हैं। पकजवाटिका-संशा स्त्री॰ [ स० पहजवाटिका ] तेरह अक्षरो का एक पंक-पञ्चा पु० [स० पक्क] १. कोचड । कोच । वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में एक भगण, एक नगण, दो यौ०-पंकज । पंकरह । जगण और अत मे एक लघु होता है। इसे एकावली और २ पानी के साथ मिला हुआ पोतने योग्य पदार्थ । लेप । उ०- कजावली भी कहते हैं । जैसे,—श्री रघुवर तुम हो जगनायक । श्याम अग च दन को आमा नागरि केसरि अग। मलयज देखहु दशरथ को सुखदायक । सोदर सहित पिता पदपावन । पक कुमकुमा मिलिक जल जमुना इक रग ।—सूर (शब्द०) वदन किय तव ही मनभावन ।-केशव (शब्द॰) । ३. पाप (को०) । ४ वहा परिमाण । घनी राशि (को॰) । पंकजात सञ्चा पु० [स० पङ्कजात ] कमल । पककर्वट-सज्ञा पु० [ पककर्वट ] जलयुक्त कीचड [को० । पंकजासन-सज्ञा पुं० [स० पक्कजासन ] ब्रह्मा । पंकफीर-सज्ञा पुं॰ [ म० पक्कीर ] टिटिहरी नाम की चिडिया । पंकजित्-तमा पु० [ म० पक्वजित् ] गरुड़ के एक पुत्र का नाम । पंकक्रीड़-वि० [सं० पक्कक्रीड ] कीचड मे खेलनेवाला । पकजिनी- सज्ञा स्त्री० [सं० पङ्कजिनी ] १. पद्माकर । कमलाकर । पंककीड़- सज्ञा पुं० सूअर । २. कमलिनी। कमलवृक्ष । पंकक्रीडनक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पङ्कक्रीडनक ] दे० 'पंकफ्रीड' । पंकण-संज्ञा पुं॰ [ स० पङ्कण ] चाडाल का निवासस्थान [को०] । पंकगड़क-शा पु० [ पक्कगडक ] एक प्रकार की छोटी मछली । पंकत-मज्ञा स्त्री० [स० पढिक्त ] दे० 'पक्ति' । उ०—(क) बक पंकग्राह-ससा पुं० [ म० पङ्कमाह ] मगर । पकत रद नीर, गरजण गाज पिछोण। बाँकी० ग्र०, भा० १, पृ० १७ । (ख) च डीसूल पार जात मराला पकता पंकचर-मज्ञा पुं० [अ० पंक्चर ] छेद । छिद्र । पंचर । उ०—हमें चगी।-रघु०, रू०, पृ० २४६ । न चहिए डनलप टायर, पकचर ले शैतान समाल । -बदन०, पकदिग्ध-वि० [सं० पङ्कदिग्ध ] पंकयुक्त । जिसपर मिट्टी पोती पृ०१४५ । गई हो [को॰] । पंकच्छिद-मज्ञा पुं० [म० पहच्छिद ] एक प्रकार का वृक्ष । निर्मली [को०] । पंकदिग्धशरीर-मशा पु० [म, पकदिग्धशरीर] ए. दानव का नाम । पंकज'-वि० [ म० पङ्कज ] कीचड मे उत्पन्न होनेवाला । पकदिग्धाग'-वि० [सं० पङ्कदिग्धा ] वह जिसके अगो पर कीचड पंकज-मश पुं०१ कमल । का लेप किया गया हो [को०) । यौ०-पकज वन = (१) कमल का वन । उ०-तू भूल न गे पंकदिग्यांग'-सज्ञा पुं॰ [स० पङ्कदिग्धाङ्ग] कार्तिकेय के एक अनुचर पकजवन मे, जीवन के इस सूनेपन मे, प्रो प्यार पुलक से का नाम । भरी ढुलक ।-लहर, पृ०२। पंकधूम-सज्ञा पुं॰ [ म० पङ्कधूम ] जैनियो के एक नरक का नाम । सारस पक्षी (को०)। पंकपर्पटी-सञ्ज्ञा सी० [स० पङ्कपर्पटी] सौराष्ट्र मृत्तिका। गोपीचंदन । पंकजजन्मा-सबा पु० [म० परजजन्मन् ] ब्रह्मा, जो कमल से 'पकप्रभा-सशा पुं० [ म० पङ्कप्रभा ] कीचड से भरे हुए एक नरक उद्भत हैं [को०)। का नाम । पंकजन्म-सज्ञा पुं० [स० पङ्कजन्मन् ] कमल [को०] । पकभाक-वि० [सं० पक्कभाज् ] १८ड मे हवा हुमा । पविल [को०] । पंकजन्मा-सञ्ज्ञा पुं० [ स० पङ्कजन्मन् ] कमल । पकभारक-गि [स० पकभारक ] कीचवाला। पक्लि। जिसमे पकजन्मा-वि० [स० पछजजन्मन् ] कीचड से पैदा होनेवाला [को०] । कीचड मरा हो [को०] ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१६
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