पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१५३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जाय। परियार २८६२ परिवत्सरीख उ०-दुहु लोह कढि परियार ते सार धार में श्रम्मि भर । अपने स्थान पर चला पाना। इसे अग्रेजी में लाइग्रेशन -पृ० रा०, २५॥ ४५६ । (Libration) कहते हैं। परियार-वि० [स० परारि ] पूर्वतर वर्ष । वर्तमान से तीसरा परिनघु-वि० [सं०] १ अत्यत छोटा या हलका । २, प्रत्यत शीघ्र पूर्व या बाद का वर्ष । जैसे,—(क) परियार साल चुनाव पचने के कारण प्रति लघु पाक । हुआ था । (ख) परियार माल फिर सूर्यग्रहण लगेगा। परिलिखन-सा पुं० [म०] १. रगड या घिसकर किसी चीज का यौ०-पर परियार। खुरदरापन दूर करना । २ चिकना और चमकदार करना। परियोग्य-मज्ञा पुं० [सं०] वेद की एक शाखा । पालिश करना। परिरंधित-वि० [सं० परिरन्धित ] १ नष्ट किया हुआ । २. चुटैल । परिलिखित-वि० [सं०] रेखा से घिरा हुमा। जो किसी धेरे या चोट पहुंचाया हुआ (को०)। दायरे के बीच मे हो । रेखा या वृत्त से परिवेष्टित । परिरंभ-सशा पुं० [ सं० परिरम्भ ] [ वि० परिरभित, परिरमी] परिलुप्त - वि० [०] १ नाशप्राप्त । नष्ट । विनष्ट। २ जिसकी परिजोढ-वि० [स० परिलीट ] भनी मांति चाटा हुमा [को॰] । गले से गला या छाती से छाती लगाकर मिलना । पालिंगन । क्षति या अपकार किया गया हो। क्षतिग्रस्त । अपकृत । परिरभण-ज्ञा पुं॰ [ स० परिरम्भण ] दे० 'परिरभ'। ३ लुप्त। परिरमन-सञ्ज्ञा पुं० [सं० परिरम्भण ] दे० 'परिरभण'। उ० यो०-परिलुप्तसत :- चेतनारहित । सशाहीन । अचेत । सकल सुगध अंग अंग भरि भोरी, पीय नृतत मुसकेन मुख परिलून-वि० [२०] पूर्णत छिन्न या फाटा हुआ [को०) । मोरी, परिरमन रस रोरी।-पोद्दार अमि० ग्र०, पृ० १८६ । परिलेख'-शा पुं० [सं०] १. चित्र का स्थूल रूप जिसमें केवल परिरभना-क्रि० स० [सं० परिरम्भ + हिं० ना (प्रत्य॰)] परि रेबाएं हो, रग न भरा गया हो । ढाँचा। खाका । २ चित्र । रमण करना । आलिंगन करना । गले लगाना । उ०-तुव तसवीर । ३ कूची या कलम जिससे रेखा या चित्र खींचा तन परिमल परसि जव गवनत धीर समीर । तारह वहु सन मान करि परिरमत बलबीर ।-नदास ( शब्द०)। परिलेख-सज्ञा पुं० [हिं०] उल्लेख । शब्दों द्वारा अंकन या वर्णन । परिरक्षण-सज्ञा पुं० [स०] १ सब प्रकार या सव भोर से रक्षा उ.-तेरे प्रेम को परिलेग्व तो प्रेम की टकसार होयगो करना । २ पालन । रक्षण | निभाना (को०)। ३ देखभाल और उत्तम प्रेमिन को छोडि पौर काहू को समझ ही में न या बचाव (को०)। पावैगो।-भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ४६५ । परिरक्षणीय-वि० [सं०] अच्छी तरह रक्षा करने के योग्य [को॰] । परिलेखन-राशा पुं० [म.]विसी वस्तु के चारो पोर रेखाएँ बनाना। परिरक्ष्य-वि० [स०] दे० 'परिरक्षणीय' (को०] । परिलेखना-क्रि० स० [सं० परिलेख+हिं० ना (प्रत्य॰)] परिरक्षित-वि० [सं०] १ जिसकी पूर्णत रक्षा या देखभाल की समझना । मानना। सयाल करना। उ०-पो बेइ समुद गई हो। २ पूरी तरह निभाया हुआ या पालन किया प्रेम कर देखा। तेइ यह समुद वुद परिलेखा।-बायसी हुमा [को॰] । (शब्द०)। परिरक्षिता-वि० [सं० परिरक्षित ] पूरी तरह से देखभाल या रक्षा परिलेही-सज्ञा पुं० [ मं० परिहिन् ] कान का एक रोग, जिसमें करनेवाला [को०] । कफ और रुधिर के प्रकोप से कान की लोलक पर छोटी परिरक्षी-वि० [सं० परिरहिन् ] दे० 'परिरक्षिता'। छोटी फु सियाँ निकल पाती हैं और उनमे जलन होती है। परिलोप-सञ्ज्ञा पुं० [०] १ क्षति । हानि । २ उपेक्षण । उपेक्षा । परिरथ्य-संशा स्त्री॰ [सं०] रथ का एक प्रग। ३ विलोप । नाश । परिरथ्या-सक्षा पुं० [सं०] चौडा रास्ता । सडक । परिलोलित-वि० [सं०] हिलता हुमा । कपित । परिरब्ध-वि० [सं०] प्रालिंगित [को॰] । परिवचन-सञ्ज्ञा पुं० [सं० परिवञ्चन] धोखा देना । छलना । परिराटी-वि० [स० परिराटिन् ] चिल्लानेवाला या रट लगाने- परिवचना-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० परिनञ्चना] दे० 'परिवचन' [को०] । वाला (को०)। परिरोध-सशा पुं० [सं०] रुकावट । अडगा । अवरोध । परिवश-सा पुं० [म.] घोखा । छल । प्रतारण । परिवकता-नशा स्त्री॰ [सं०] १. गोलाकार वेदी या गवं। २ एक परिक्षघ-सचा पुं० [सं० परिलङ्घ] फलांग या छलांग मारना। स्थान का नाम (को०)। कूद या उछलकर लौच जाना। परिवत्सर-सहा पुं० [सं०] १ ज्योतिष के पांच विशेष सवत्सरों में परिलघन-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० परिलड घन] दे० 'परिलघ' । से एक । इसका अधिपति सूर्य होता है। २ एक समस्त वर्ष । परिलषन-सचा पुं० [सं० परिलम्बन] भाचक्र का २७° विषुवद् रेखा एक पूरा साल। से एक ओर हिंडोले की तरह जाकर फिर लौट आना परिवत्सरीण-वि० [सं०] जिसका सवध सारे वर्ष से हो। जो पूरे और इसी प्रकार दूसरी ओर २७° तक की पेंग लेकर पुनः वर्ष भर रहे । समस्त वव्यापी । समस्त वर्षसवधी। -