परिपर २०५६ परिपूरणीय परिपर-वज्ञा पु० [म०] टेढ़ा मेढ़ा चक्करदार रास्ता [को०] । परिपार्श्व-सज्ञा पुं० [सं०] पावं बगल । परिपरी-मश पुं० [सं० परिपरिन् ] शत्रु । विपक्ष । प्रतिद्वद्वी (फो०] । परिपालक-वि० [म०] परिपालन करनेवाला (को०] । परिपवन --मज्ञा पुं० [सं०] १ अनाज प्रोसाना । भूसे और अन्न परिपालन - सशा पुं० [सं०] १ रक्षा करना। बचाना । २ रक्षा । को अलग करने की क्रिया। प्रोसाई। २ अन्न प्रोसाने की बचाव । संचिया । हलिया (को०)। परिपालना-क्रि० स० [मं० परिपालन] रक्षा करना । बचाना । परिपाडिमा-सशा श्री० [म० परिपायिडमन् ] अधिक श्वेतता या उ.-बससि सदा हम कहूँ परिपालय । -मानस, ७।३४ । पीलापन [को०। परिपालना-सशा नी० [सं०] २० 'परिपालन' [को०)। परिपाडु-पि० [म० परिपाण्ड] १ बहुत हलका पीला। सफेदी परिपालनीय-वि० [म०] परिपालन या रक्षण के योग्य (को॰) । लिए हुए पीला। २ दुर्बल । कृश । क्षीण । परिपालयिता-संज्ञा पुं० [म० परिपालयित ] वह जो परिपालन परिपाडुर-वि० [म० परिपारादुर] दे० 'परिपाहु' [को०] । करे [को०)। परिपाक - सज्ञा पु० [मं०] १ पकने का भाव । पकना या पकाया परिपालयिपा-पशा मी० [सं०] परिपालन की इच्छा [को०)। जाना।२ पचने का भाव । पचना। पचाया जाना। ३ परिपाल्य-वि० [सं०] जो रक्षा या पालन करने के योग्य हो। प्रौढता । पूर्णता । परिणति (बुद्धि अनुभव आदि के लिये) । परिपिग-वि० [सं० परिपिग ] लाली से युक्त भूरा। प्रत्यत पिंग ४ बहुदर्शिता । तजुर्बेकारी। ५ कुशलता। निपुणता । वर्ण का (को। प्रवीणता। उस्तादी। ६ कर्मफल । विपाक । परिणाम। परिपिंजर-वि० [स० परिपिञ्जर] हलके लाल रंग का । पिंगलवणं । फल । नतीजा। परिपिच्छ-गज्ञा पु० [सं०] प्राचीन काल का एक प्राभूषण जो मोर परिपाकिनी-मशा मी० [मं०] निसोथ । की पूंछ के परोसे वनता था। परिपाचन - ज्ञा पुं० [म०] १ अच्छी तरह पचना । भली भांति परिपिष्टक-सा पु० [सं०] सीसा । पचना । २ वह जो पूरी तरह से पच जाय । परिपीडन-सञ्ज्ञा पुं॰ [ नं० परिपीढन ][वि. परिपीडित ] १ प्रत्यत परिपाचना-शा सी० [सं०] किसी पदार्थ को पूर्ण पक्व अवस्था पीडा पहुंचाना या देना। २ पीसना । ३ अनिष्ट करना । में लाना। परिपीवर-वि० [सं०] प्रति मोटा । बहुत मोटा या तगड़ा । परिपाचित-वि० [सं०] १ पूर्णत पकाया हुमा । २ भूना हुमा । परिपुटन--संज्ञा पुं० [स०] १ छिनका या वोकला अलग करना । परिपाटल-वि० [सं०] जिसका रग पीलपन लिए लाल हो। जर्दी २ सपुटन [को०] । लिए हुए लाल रंग का। परिपुष्करा-सशा स्त्री० [स०] गोंडुव ककडी । गोहुवा । परिपाटलित-वि० [सं०] पीले और लाल रंग में रंगा हुआ। जो परिपुष्ट-वि० [म०] १ जिसका पोषण भली भांति किया गया हो । पीला और लाल रग मिलाकर रंगा गया हो। सम्यक् रीति से पोषित । २ जिसकी वृद्धि पूर्ण रीति से पुष्ट परिपाटि-ज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'परिपाटी'। हुई हो । खूप हृष्ट पुष्ट । पूर्ण पुष्ट । परिपाटी-पज्ञा स्त्री० [स०] १ क्रम । श्रेणी। सिलसिला । २ प्रणाली। रीति । शैली। तरीका । चाल । ढग। ३ प्रक- परिपूजन-पज्ञा पुं० [मं०] सम्यक् प्रकार से पूजन या उपासना । गणित । ४. पद्धति । गैति । चाल । नियम । संप्रदाय । परिपूजा--मशा स्त्री० [सं०] विधिवत् पूजन [को०] । उ०-(क) जेतिक हरि अवतार सवै पूरण करि जाने । परिपूजित–वि० [म०] विधिवत् पूजित । सविधि पूजाप्राप्त [को०) । परिपाटी ध्वज विजय सदृश भागवत बखाने । -नाभाजी परिपूत-वि० [म०] अति पवित्र । (शब्द०) । (ख) पाटी सी है परिपाटी कवित्त की ताकौं परिपूत - सझा पु० ऐसा अन्न जिसकी भूसी या छिलका अलग कर त्रिधा विधि बुद्धि बनाई। -भिखारी० ग्र०, भा० २, लिया गया हो । घाँटा हुआ अन्न । पृ० २५०। परिपूरक-व० [सं०] १ परिपूर्ण कर देनेवाला। भर देनेवाला । परिपाठ-सझा पुं० [स०] १ बार बार सविस्तार (वेद) पाठ लबालब कर देनेवाला । २ समृद्धिवर्ता । धनधान्य से करना। २ विशद या विस्तृत उल्लेख [को०)। भरनेवाला । ३ सपूर्ण। परिपार-मज्ञा स्त्री॰ [स० पालि या परिपाटी] मर्यादा। उ०- परिपूरण'—सशा पुं० [म०] परिपूर्ण करना। भरना। २ पूर्ण या अरे परेखौ को करे तुही बिलोकि बिचारि । किहिं नर पूरा करना [को०] । विहिं सर गग्विय खरै बढ़े परिपारि । -विहारी (शब्द॰) । परिपूरण—वि० [स० परिपूर्ण] दे० 'परिपूर्ण'। उ०-खुल खुल परिपारना-क्रि० स० [सं० परिपालना] प्रतिपालन करना। नव इच्छाएं, फैलाती जीवन के दल । गा गा प्राणो का निर्वाह करना। उ०-भूल्यो चूक्यो होई सो, लोज्यो सत मधुकर, पीता मधुरस परिपूरण । -गु जन, पृ० १६ । सत्रारि । गीति राधिका रमन की प्रीति रीशि परिपारि ।- परिपूरणीय-वि० [सं०] परिपूर्ण करने योग्य । परिपूरित करने ग्रजन०, पृ०११ । लायक [को०] । ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१४७
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