की सेवा शुश्रूषा। परिघात २८४८ परिचारिणी परिघात-सा पुं० [३०] १ हत्या। हनन । मार डालना। २ वह निज कर गृह परिचरजा करई । रामचद्र पास अनुसरई । अस्त्र जिसमे किसी की हत्या की जा सकती हो। ३ उल्लघन -मानस, ७। २४ । करना (को०)। ४ लोहे की गदा या मुद्गर (को०)। ५ नष्ट परिचरण-सज्ञा पुं० [स०] [वि० परिचरणीय, परिचरितव्य ] १ करना (को०)। सेवा करना या सेवा । परिचर्या । खिदमत । टहल । २ परिघातन -सज्ञा पु० [ म०] 'परिघात' [को०] । भ्रमण । चक्रमण (को०)। परिघातो-वि• [ म० परिघातिन् ] १ परिघात करनेवाला । हत्या परिचरणीय-१० [सं०] १ परिचरण के योग्य । भ्रमण के योग्य । कारी। मार डालनेवाला। २ उल्लघन करनेवाला (को०)। २ सेवा के योग्य [को०] । ३ नष्ट करनेवाला (को०)। परिचरत-पशा ग्मी० [हिं०] प्रलय । कयामत । परिघृष्ट-वि० [ स०] अत्यन घपित । अच्छी तरह घृष्ट को०] । परिचरितव्य-वि० [स०] दे० 'परिचरणीय' [को०] । परिघृष्टिक-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] एक प्रकार का वानप्रस्थ [को०] । परिचरिता-सशा पुं० [सं० परिचरित ] सेवक । सेवा करनेवाला । परिघोष-मद्धा पु० [सं०] १ मेघगर्जन । बादल का गरजना । २ शुश्रूषाकारी। शब्द । पावाज । ३ अनुचित कथन । अनुपयुक्त वात (को॰) । परिचरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] दासी । सेविका । लौंडी। परिचना-सज्ञा स्त्री॰ [स०] एक प्राचीन नगरी का नाम । परिचर्जा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० परिचर्या ] दे० 'परिचर्या' । परिचाल-वि० [सं० प्रचण्ड ] दे० 'प्रचड' । उ०-अजरा परि परिचर्मण्य-सज्ञा पुं० [सं०] चमडे का वना हुया फीता [को॰] । अजमेर माल बघव परिचढ । अस्त वस्त अरु चर्म टक लम्भ परिचर्या -सज्ञा स्त्री० [स०] १ सेवा । टहल । खिदमद । २ रोगी नन हड्ड।-पृ० रा०, १६६८। परिचना-क्रि० स० [हिं० परचना ] दे० 'परचना'। परिचायक-सञ्ज्ञा पुं० [म०] १ परिचय करानेवाला। जान पहचान परिचपल-वि० [म.] अति चचल । जो किसी समय स्थिर न करानेवाला । २ सूचित करनेवाला । जतानेवाला। रहे । जो हर समय हिलता हुलता या घूमता फिरता रहे । परिचाय्य-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ यज्ञ की अग्नि । २ यज्ञकुड । परिचय-मुज्ञा पु०म०] १ किसी विषय या वस्तु के सबध की परिचार-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] १ मेवा । टहल । खिदमत । २ सेवक । प्राप्त की हुई अथवा मिली हुई जानकारी । ज्ञान । अभिज्ञता। टहलुमा। उ०—तजि कुलगामि को निसक होय क्यों न करे वेगि मृगनैनी अनुक पा परिचार पै। -मोहन०, विशेष जानकारी। जैसे-थोडे दिनो से मुझे भी उनके स्वभाव का परिचय हो गया है । २ प्रमाण । लक्षण । जैसे,- पृ० १०३ । ३ वह स्थान जो टहलने या घूमने फिरने के लिये निर्दिष्ट हो। उस पद पर थोडे ही दिनो तक रहनर उन्होंने अपनी योग्यता का अच्छा परिचय दिया था। ३ किसी व्यक्ति के नामघाम परिचारक-सज्ञा ० [सं०] १ सेवक । नौकर । भृत्य । टहलुआ। या गुणकर्म प्रादि के सबध की जानकारी । जैसे,—मुझे २. वह जो किसी रोगी की सेवा करने पर नियुक्त हो। आपका परिचय नहीं मिला। शुश्रूषाकारी। ३ वह जो देवमदिर आदि का कार्य अथवा प्रवध करता हो। क्रि० प्र०-कराना । देना ।-दिलाना 1-पाना।- मिलना ।- होना। परिचारण-सज्ञा पुं० [सं०] [ वि० परिचारी, परिचार्य ] १ सेवा करना । टहल या खिदमत करना । सेवकाई। खिदमतगारी । ४ जान पहचान । जैसे, यहाँ तो बहुत से आदमियो के साथ २ सहवास करना । सग करना या रहना। आपका परिचय है। ५ अभ्यास । मश्क । ६ हठयोग मे नाद की चार अवस्थाप्रो में से तीसरी अवस्था । ७ इकट्ठा परिचारनाल-क्रि० स० [स० परिचारण ] सेवा करना । खिदमत करना। करना । एकत्र करना । जमा करना (को०)। परिचय करुणा- सञ्चा बी० [सं०] बढना हुआ प्रेम । प्रवधित परिचारि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० परिचारिका ] सेविका । टहलवी। उ०-हौ भई तुम परिचारि, नाथ तुम भए हमारे ।-नद० करुणा (को०] । न०, पृ० २७५ । परिचयपत्र-मशा पु-[स०] किसी की पूरी जानकारी देनेवाला पत्र । परिचारिक-मञ्च पुं० [स०] [ली० परिचारिका ] सेवक । खिदमत- परिचर-सज्ञा पुं० [सं०] १. सेवक । खिदमतगार । टहलुमा । २ गार । ८० 'परिचारक'। रोगी की सेवा करनेवाला । शुश्रूषाकारी । ३ वह सैनिक जो परिचारिका सञ्चा सी० [सं०] दासी । सेविका । मजदूरनी। उ०- रथ पर शत्रु के प्रहार से उसकी रक्षा करने के लिये वैठाया जेहि सहसन परिचारिका राखत हाहिं हाथ । -भारतेंदु जाता था। ४ दडनायक । नेनापति । परिधिस्थ । ५ प्रग- ग्र०, भा०१, पृ० ३०७ । रक्षक सैनिक (को०) । ६ प्रादर । अभ्यर्थना । सत्कार (को॰) । परिचारिणी-सञ्ज्ञा सी० [स०] दे० 'परिचारिका'। उ०-मां से परिचर- वि० भ्रमणशील । चल । गतिशील (को०] । पूछने पर उसने यही कहा कि अपने यौवन मे परिचारिणी के परिचरजा-सञ्चा यी [ सै० परिचर्या ] दे० 'परिचर्या' । उ० रूप मे मैं बहुत स्थानो मे विचरी। -स० दरिया, १० ६० । 1
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१३९
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