पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१३०

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परसन २८३५ परसौहाँ परसन -वि॰ [ स० प्रसन्न ] प्रसन्न । खुश। पानदित । उ० परसाना-क्रि० स० [हिं० परसना ] भोजन आदि बटवाना । तबहिं असीस दई परसन ह सकल होहु तुव कामा ।-सूर भोजन का सामान सामने रखवाना। उ०-महर गोप सब (शब्द०)। ही मिल बैठे पनवारे परसाए।-सूर (शब्द०)। परसना-क्रि० स० [सं० स्पर्शन ] १ छूना । स्पर्श करना । परसामान्य-सज्ञा पुं॰ [सं०] गुण-कर्म-समवेत सत्ता (जनदर्शन) । २छुलाना । स्पर्श कराना । उ०-साधन हीन दीन निज परसाल'–मव्य० [सं० पर+फा० साल ] १ गत वर्ष । पिछले प्रघ बस शिला भई मुनि नारी। गृह ते गवनि परसि पद साल । २ आगामी वर्ष । अगले साल । पावन घोर ताप तें तारी।-तुलसी (शब्द॰) । परसाल-मञ्जा स्त्री॰ [हिं० पानी+सार ] एक प्रकार की घास परसना-क्रि० स० [स० परिवेक्षण ] भोज्य पदार्थ किसी के जो पानी मे पैदा होती है । इसे पससारी भी कहते हैं । सामने रखना। परोसना परसिद्ध-वि० [स० प्रसिद्ध ] दे० 'प्रसिद्ध' । विशेष-इस क्रिया का प्रयोग भोजन और भोजन करनेवाले दोनो परसिद्धि-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० प्रसिद्धि ] दे० प्रसिद्धि' । के लिये होता है। जैसे, खाना परसना, किसी को परसना । परसिया-सञ्ज्ञा श्री० [सं० परशु, हि परसा ] हँसिया । संयो॰ क्रि०-देना। लेना। परसी-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की छोटी मछली जो नदियो परसनि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० स्पर्शन ] स्पर्श का भाव या स्थिति । मे होती है। उ०-कुचन की परसनि नीवी करसनि । सुखन की बरसनि परसीया-सञ्ज्ञा पुं० [ देश० ] एक पेड जिसकी लकडी से मेज, कुरसी मन की सरसनि । नद० ग्र०, पृ० ३२२ । इत्यादि बनाई जाती है और जो मदरास और गुजरात मे परसन्न-वि० [स० प्रसन्न ] दे० 'प्रसन्न' । उ०-पाहन पखान बहुतायत से होता है। इसकी लडकी स्याह सरस और जे करहि सेव । परसन्न होहि मन चाहि देव ।-रसरतन, मजबूत होती है। पृ०५५। परसु-सञ्चा पुं॰ [ स० परशु ] दे० 'परशु' । परसन्नता -सञ्चा स्त्री॰ [ स० प्रसन्नता ] दे० 'प्रसन्नता'। यौ०-परसुधर = परशुधर । उ०-पथ परशुधर प्रागमनु समय परसपखान-सञ्ज्ञा पुं० [सं० स्पर्श +पापाण ] पारस पत्थर । सोच सब काहु । दे०-तुलसी ग्र०, पृ० ७१ । परसुराम = स्पर्श मरिण। उ०-रूपवत घनवत सभागे। परसपखान 'परशुराम' । उ०-परसुराम पितु अग्या राखी । पोरि तिन्ह लागे।-जायसी (शब्द०)। -मानस, २।१७४। परसपर-क्रि० वि० [सं० परस्पर ] दे० 'परस्पर'। उ०-(क) परसूक्ष्म-सक्षा पु० [ स०] एक सूक्ष्म परिमाण जो आठ परमाणुमो मुनि रघुबीर परसपर नवही।-मानस, २ । १०८ । (ख) के बराबर माना गया है। मोहन लखि छवि परसपर चचल चख चित चोर । मजु परस्त-वि०, सञ्चा पु० [सं० प्रसूत ] दे० 'प्रसूत' । मालती कुज मैं विहरत नदकिसोर ।-स० सप्तक, पृ० ३४३ । परसेद-सज्ञा पुं० [ स० प्रस्वेद ] दे० 'प्रस्वेद' । उ०-घटि घटि परसराम-सज्ञा पुं० [सं० परशुराम ] दे० 'परशुराम'। उ०- गोपी टि घटि कान्ह । घटि घटि राम अमर प्रस्थान । ऋषि जामदग्नि सुत परसराम, हनि क्षत्रि सकल द्विज तेज गगा जमना अतर वेद । सुरसती नीर बहै परसेद । -दादू०, धाम । ह. रासो, पृ०७। पृ०६७६ । परसर्ग-सज्ञा पुं॰ [सं०] किसी शब्द के आगे जुडनेवाला प्रत्यय । परसों-अव्य० [स० परश्व ] १. गत दिन से पहले दिन । बीते परसवर्ण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पर या उत्तरवर्ती वर्ण के समान वर्ण । हुए कल से एक दिन पहले । जैसे,—मैं परसो वहाँ गया था । परसा'-सज्ञा पुं० [सं० परशु ] फरसा । परशु । तब्बर । कुल्हाडा। २ आगामी दिन से आगे के दिन । आनेवाले कल से एक कुठार। दिन आगे । जैसे,—वह परसों जायगा। परसार-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० परसना ] एक मनुष्य के खाने भर का परसोतम-सञ्ज्ञा पु० [ स० पुरुषोचम ] दे० 'पुरुषोत्तम' । भोजन जो पात्र मे रखकर दिया जाय । पत्तल । परसोच-सज्ञा पुं॰ [म० पुरुपोचम] दे॰ 'पुरुषोत्तम' । उ०- परसादा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्रसाद ] दे॰ 'प्रसाद' । उ०—तुम प्रात समें श्रीवल्लभ सुत के बदन कमल को दरसन कीजे । परसाद विखाद नयन जल काजरे मोर उपकारे।- तीन लोक बंदित, परसोत्तम, उपमा कहा जो पटतर दीजै । विद्यापति, पृ० १११ । नद० ग्र०, पृ० ३२५ । परसादो-सच्चा स्त्री० [हिं० परसाद+ई (प्रत्य॰) ] दे० 'प्रसाद' । परसोर-सञ्ज्ञा पुं० [देश॰] एक प्रकार का घान जो अगहन में तैयार उ०-उन भाखा कढिया परसादी। इन कढाव हलुवे की होता है। बांधी।-घट०, पृ० २६० । परसौहाँल+-वि० [स० स्पर्श, हि० परस+श्रीहाँ (प्रत्य॰)] परसाना-क्रि० स० [हिं० परसना ] छुलाना। स्पर्श स्पर्श करनेवाला । छूनेवाला । उ०-तिथ तरसौहे मुनि किए कराना । उ०-सुरसरि जव भुव ऊपर पावै । उनको अपनो करि सरसौंहैं नेह । घर परसौहैं ह रहे झर बरसौंहैं मेह । जन परसावै। सूर (शब्द०)। -बिहारी (शब्द०)।