परशुराम २८३८ परसन ऋचीक ने एक चार प्रसन्न होकर अपनी स्त्री और सास के के पौत्र परापगुने परमुगम से महा कि 'अभी जो यश हमा लिये दो चरु प्रस्तुत किए और सत्यवती मे यहा कि 'इम पर था उसमें न जाने गितो प्रतापी राजा घाए थे, पापने पृथ्वी को तुम खाना। इससे तुम्हे परम शात और तेजस्वी पुत्र गो जो क्षत्रियविहीन करने की प्रतिज्ञा यी थी यह सय व्यर्प उत्पन्न होगा। इस दूसरे चरु को अपनी माता को दे देना । पी' परशुराम इनपर ऋद होकर फिर पिपले भौर जो इससे उन्हे अत्यत वीर और प्रवल पुत्र उत्पन्न होगा जो गव दात्रिय बने थे 7 गवा चाल बनी सहिन गहार राजापो को जीतेगा। पर भूल से गत्यवती ने अपनी माता दिया। गभरती स्त्रियो ने की गठिनता से घर पर वाला चरु खा लिया और गाघि की स्त्री, सत्यवती की माता ट्रिपर अपगी रक्षा की। त्रियों का नाम पर परशुगम ने सत्यवती का चरु खाया । जव चीक फो यह पता चला ने प्रश्नमेश पिया पौर उमगे गारी पृथ्वी राज्यप को दान तव उन्होने सत्यवती से कहा-'यह तो उलटा हो गया। दे दी । पृथ्वी क्षत्रियो गे पा रहित न हो जाय इन प्रमि- तुम्हारे गर्म से प्रभ जो वालक उत्पन्न होगा यह वसा पूर प्राय गे मध्यप ने पशुगम में रहा पर यह पृथ्वी हमारी और प्रचड क्षात्रतेज से युक्त होगा और तुम्हारी माता के हो पुको पब तुम दक्षिण समुद्र की मोर पसे जामो'। गर्म से जो पुत्र होगा वह प्ररम शात, तपस्वी और ग्राहाण परसुगम ने ऐसा ही पिया। के गुणो से युक्त होगा' । सत्यवती ने बहुत विनती की फि वात्मीकि रामायण में निगा है गिजर रामचंद्र मेरा पुत्र ऐसा न हो, मेरा पौत्र हो तो हो। महाभारत के शिव ा धनुष तोर नीता से न्याहार लौट रहे थे तब वनपर्व में यही कथा कुछ दूसरे प्रकार से है । परशुगम ने उना गम्ता रोरा चौर वैष्णय पनु उनमे कुछ दिनों में सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि की उत्पत्ति हुई हाथ में देकर पहा पि र धनुष तो तुमने मोटा पय इस जो रूप और स्वाध्याय मे अद्वितीय हुए और जिन्होंने वैष्णर पाप को पटायो । यदि हार याण चा गुकोगे सो समस्त वेद, वेदाग का तथा धनुर्वेद का अध्ययन किया । मैं तुम्हारे नाप गुर गरूँगा'। राम पनप पर यारा पदापर प्रसेनजित् राजा की कन्या रेणुका ने उनया विवाह हुप्रा । गोले 'योगो पब इन बाण से मैं तुम्हारी गति का प्रवरोध रेणुका के गर्भ से पांच पुत्र हुए-गमन्यार, सुपेण, यगु, गया तप मे अजित तुम्हारे लोको पाहण यर' । परश- विश्वावसु और राम या परशुराम । इसके प्रागे वनपर्व में राम ने रततेज और चकित होकर यहा 'मैंने सारी पृथ्वी कथा इस प्रकार है। एक दिन रेणुका स्नान करने के लिये पश्यप को दान में दे दी है, इनसे में रात को पृथ्वी पर नदी में गई थी। वहां उसने राजा चित्ररथ को अपनी स्त्री नही सोता । मेरी गति या अवरोध न फगे, लोकों या के साथ जलमीठा करते देसा और कामवासना मे उद्विग्न हरण कर मो॥ होकर घर आई। जमदग्नि उसकी यह दशा देख बहन युपित परशुवन-मग पुं० [१०] एक नरक का नाम जिसके पेटी के हुए और उन्होंने अपने चार पुत्रो को एक एक करके रेणका पत्तं परशु का मी तीती धार के है। के वध की आज्ञा दी, पर स्नेहवश किसी से ऐसा न हो नका। परश्वध-ससा पुं० [ 10 ] परश । तबर । फुठार। पुल्हाडी। इतने में परशुराम पाए। परशुराम ने प्राज्ञा पाते ही माता परसग-मा० [० प्रसा] स्त्री-पुरुष-सयोग। मैयुन । दे। का सिर काट डाला। इसपर जमदग्नि ने प्रसन्न होपर वर 'प्रसग' । ३०-दार विन सिंग वानरहित निसग भयो, मांगने के लिये कहा । परशुराम वोले-'पहले तो मेरी माता जा भगो दायन दुते परसग में 1-हम्मीर, पृ० ५४ । को जिला दीजिए और फिर यह पर दीजिए कि मैं परमायु परसज्ञक- पुं० [ म०] मात्मा [फो०] । प्राप्त करूं और युद्ध में मेरे नामने कोई न ठहर सगे.'। जग- परससा--१० सी० [ म०प्रशसा ] दे० 'प्रशा'। दग्नि ने ऐसा ही किया। एक दिन राजा कार्तवीर्य सहस्रार्जुन परस'-श पुं० [म. म्पर्श ] चूना । सूने को प्रिया या भाव । जमदग्नि के पाश्रम पर पाया । पाश्रम पर रेणुका को स्पर्श । उ०-दरस पररा मजन पर पाना । हरे पाप कह वेद छोड और कोई न था। कार्तवीर्य प्राथम के पेट पौषो फो पुराना ।-तुलसी (शब्द०)। उजाड होमधेनु का बछडा लेकर चल दिया। परशुराम ने यह सुना तव वे तुरत दौडे और जाकर कार्तवीर्य परस-सा पुं॰ [ मे० परश ] पारस पत्थर । स्पर्श मरिण । उ०- की सहस्र भुजाओं को फरसे से काट डाला । सहस्रार्जुन उ०-गुजा ग्रहे परस मनि सोई।-मानस, ७।४। के कुटु वियो और माथियो ने एक दिन पाकर जमदग्नि से यो०-परसपखान । परसमनि । बदला लिया और उन्हें वाणो से मार डाला । परशुराम ने परस'-सशा पुं० [ मे० परशु, हिं० फरसा ] फरसा । परशु। जैसे, प्राश्रम पर आकर जव यह देखा तब पहले तो वहृत विलाप परसपर, परसराम । किया, फिर सपूर्ण क्षत्रियों के नाश की प्रतिज्ञा की। उन्होंने परसधरा-वज्ञा पुं० [सं० परशुधर, हिं० परसुधर] दे० 'परशुराम'। शस्त्र लेकर सहस्रार्जुन के पुत्र पौत्रादि का वध करपे क्रमश. उ.-विधि करी परनघर, वोलि ठोर। जजमान किया सारे क्षत्रियों का नाश किया। परशुराम की इस करता भृगुकुल सुमौर ।-ह० रासो, पृ० ११ । पर ब्राह्मण समाज मे उनकी निंदा होने लगी और परशुराम परसन-मज्ञा पुं० [ सं० स्पर्शन] १ ना। छूने का काम दया से खिन्न हो वन मे चले गए। एक दिन विश्वामित्र २ छूने का भाव। माकर
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१२९
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