परमाणु २८३२ परमातमी . का नाम परमाणु रखा गया है। न्याय और वैशेषिक के पोटासियम, प्रजन, पारा, हसताल, तथा कुछ गैस हैं, जैसे, मत से इन्ही परमारगुत्रों के सयोग से पृथ्वी आदि द्रव्यों की आक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन प्रादि । इन्हीं मूल भूतो उत्पत्ति हुई है जिसका क्रम प्रशस्तपाद भाष्य में इस प्रकार के अनुसार परमाणु प्राधुनिक रसायन में माने जाते हैं। लिखा गया है। पहले समझा जाता था कि ये भविभाज्य हैं। अब इनके जब जीवो के वर्मकल के भोग का समय आता है तब महेश्वर भी टुकडे कर दिए गए हैं। की उस भोग के अनुकूल सृष्टि करने की इच्छा होती है । परमाणुबम-सज्ञा पुं० [स० परमाणु + S० बम ] यूरेनियम तथा इस इच्छा के अनुसार जीवो के अदृष्ट के वल से वायु पर और परमाणु पो को तोडकर बनाया गया एक महाविध्वसक मारणुप्रो मे चलन उत्पन्न होता है। इस चलन से उन पर- वम जिसका निर्माण सबसे पहले अमेरिका ने द्वितीय महायुद्ध मारणुप्रो मे परस्पर सयोग होता है। दो दो परमाणुओं के समय किया जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगगे के मिलने से द्वयरणुक' उत्पन्न होते हैं। तीन द्वयणुक पर अमेरिका ने इसे छोडा जिससे पूरा नगर और पावादी मिलने से 'प्रसरेणु'। चार घणुक मिलने से 'चतुरणुक' समाप्त हो गई। इत्यादि उत्पन्न हो जाते हैं। इस प्रकार एक महान् वायु परमाणुवाद-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] न्याय और वैशे पिक का यह सिद्धात उत्पन्न होता है। उसी वायु मे जल परमाणुमो के परस्पर कि परमाणु पो से जगत् की सृष्टि हुई है। सयोग से जलद्ववणुक जलसे रणु आदि की योजना विशेष-वैशेषिक और न्याय दोनो पृथ्वी प्रादि चार महाभूतों होते होते महान् जलनिधि उत्पन्न होता है। इस जलनिधि की उत्पत्ति चार प्रकार के परमाणुभो के योग से मानते हैं मे पृथ्वी परमारों के सयोग से द्वयणुकादि क्रम से महा- (दे० परमाणु ) । जिस परमारणु मे जो गुण होते हैं वे पृथ्वी उत्पन्न होती है। उसी जलनिधि मे तेजस् परमाणुमो उससे बने हुए पदार्थों मे भी होते हैं। पृथ्वी, वायु इत्यादि के परस्पर सयोग से महान तेजोराशि की उत्पत्ति होती है । के परमाणुप्रो के योग से बने हुए पदार्थ जो नाना रूप रग इसी क्रम से चारो महाभूत उत्पन्न होते है। यही संक्षेप मे और प्राकृति के होते हैं, वह इस कारण कि भिन्न भिन्न भूतो वैशेषिको का परमारणुवाद है। द्वयणुकों या त्रसरेणुको का सन्निवेश और संघटन तरह तरह परमाणु अत्यत सूक्ष्म और केवल अनु मेय है। प्रत 'तामृत' का होता है । दूसरी बात यह है कि तेज के सवध से वस्तुभो नाम के एक नवीन ग्रथ मे जो यह लिखा गया है कि सूय के गुणो मे फेरफार हो जाता है। जैसे, कच्चा घडा पकाए की पाती हुई किरणो की बीच जो धूल के करण दिखाई जाने पर लाल हो जाता है। इसके सबंध में वैशेपिकों की पडते हैं उनके छठे भाग को परमाणु कहते हैं, वह प्रामाणिक यह धारणा है कि प्राव में जाकर अग्नि के प्रभाव से घडे के नही है। वैशेषिको का सिद्धात है कि कारण गुणपूर्वक ही टुकडे टुकडे हो जाते हैं, अर्थात् उसके परमाणु अलग अलग कार्य के गुण होते हैं, प्रत जैसे गुण परमाणु में होगे वैसे ही हो जाते हैं । अलग होने पर प्रत्येक परमारण तेज के योग से गुण उनसे बनी हुई वस्तुप्रो में होगे । जैसे, गध, गुरुत्व प्रादि रग बदलकर लाल हो जाता है। फिर जब सब अणु जुडकर जिस प्रकार पृथ्वी परमाणु मे रहते हैं उसी प्रकार सव पार्थिव फिर घडे के रूप मे हो जाते हैं तब घडे का रग लाल निकल वस्तुत्रों में होते हैं। पाता है। वैशेषिक कहते हैं कि वे मे जाकर घडे का एक आधुनिक रसायन और भौतिक वा भूत विज्ञान द्वारा प्राचीनो वार नष्ट होकर फिर बन जाना इतने सूक्ष्म काल मे होता की मूलभूत और परमाणुसवधी धारणा का बहुत कुछ निरा- है कि हम लोग देख नहीं सकते। इसी विलक्षण मत को करण हो गया है। प्राचीन लोग पचमहाभूत मानते थे, 'पीलुपाक मत' कहते हैं । नैयायिको का मत इस विषय मे जिनमे से अाकाश को छोड शेष चार भूतो के अनुसार चार ऐसा नहीं हैं । वे कहते हैं कि इस प्रकार अदृश्य नाश पौर उत्पत्ति मानने की कोई आवश्यकता नहीं, क्योकि सब प्रकार के परमाणु भी उन्हे मानने पडे थे। पर इन चार भूतो मे से अव तीन तो कई मूल भूतो के योग से बने पाए वस्तुप्रो मे परमाणुमो या द्वयणको का सयोग इस प्रकार गए हैं । जैसे, जल दो गेसो ( वायु से भी सूक्ष्म भूत ) के का रहता है कि उनके बीच बीच मे कुछ अवकाश रह जाता योग से वना सिद्ध हुप्रा । इसी प्रकार वायु मे भी भिन्न गैसो है। इसी भवकाश में भरकर अग्नि का तेज अणुओं का रग का सयोग विश्लेपण द्वारा बदलता है । वेदांत में नैयायिकों और वैशेषिको के परमाणु- पाया गया। वाद का खडन किया गया है। उसे विज्ञान भूत नही मानता केवल भूत की शक्ति ( गति शक्ति) का एक सा मानता है। ताप से परिमाण परमाणुवादी-सञ्ज्ञा पु० [सं० परमाणुवादिन् ] परमाणपो के (तौल) की वृद्धि नहीं होती। ठठे लोहे का जो वजन रहेगा योग से सृष्टि की उत्पत्ति माननेवाला । सृष्टि की उत्पत्ति के सवध मे न्याय और वैशेषिक का मत माननेवाला । वही उसे तपाने पर भी रहेगा। प्रस्तु, आधुनिक रसायन- शास्त्र में शताधिक मूल भूत माने गए हैं, जिनमे से कुछ तो परमातमा-मञ्ज्ञा पुं॰ [सं० परमात्मा ] दे० 'परमात्मा' । उ०- घातुएँ हैं जैसे ताँवा, सोना, लोहा, सीसा, चाँदी, रांगा, (क) काटि के ब्राह्मन मस्तक को, यह मापने को परमातमा जस्ता, कुछ और खनिज हैं, जैसे, गधक, फासफरस, माने ।-पोद्दार अभि० न०, पृ० ४६१ । (ख) करत फिरत रहा तेज,
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