पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१०४

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पनिहा' २८१३ पन्नगरे TO पनिहा-वि० [हिं० पानी + हा (प्रत्य॰) ] १ पानी में रहनेवाला पर प्राय शरवत तैयार समझा जाता है। यह प्राय सुबह जैसे, पनिहा साप । २. जिसमे पानी मिला हो। पनमेल । पीया जाता है। जैसे, पनिहा दुग्ध । ३. पानी सबधी । जल सबधी। पनुश्रा २- वि० [हिं० पानी ] जिसमें अधिक पानी मिल गया पनिहा-सञ्ज्ञा पुं० दे० 'पनुप्रा । हो। फीका। पनिहा- ज्ञा पु० [ स० प्रणिधा ] वह जो चोरी आदि का पता पनुवा-वि० [हिं० पन ( = पानी)+उवाँ (प्रत्य॰)] फीका । पनु । लगाता हो । जासूस । भेदिया। उ०—लालन लहि पाएं दुरे उ०-पनुवा रगन मेजि निवौरे । गाढो रग अछत जिमि चोरी सौह क र न । सीस चढ़े पनिहा प्रगट कहैं पुकारे नैन । चोरै। रग देइ तुरतै न निचोरै। रस रसरी पर टांग देरेरे। बिहारी (शब्द०)। -देवस्वामी (शब्द०)। पनिहार-शा पुं० [हिं० पानी + हारा (प्रत्य)] [ स्त्री० पनिहारी] पनेथी-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० पन ( == पानी) + एथी ] पानी लगाकर 'पनहरा'। उ०—(क) आकाशे अवदा कुना पाताले पोई हुई रोटी । मोटी रोटी। पनिहार । -कवीर ( शब्द०)। ( ख ) जस पनिहारी पनेरी-मञ्ज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] दे० 'पनीरी' । घरे सिर गागर सुणि न टरे बतरावत सबसे ।-धरम०, पनेरी-सशा पु० [हिं० पन (पान = )+एरी (प्रत्य॰)] पान बेचने- पृ०७५। वाला तँवोली। पनी@+-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पणी ] प्रण करनेवाला। प्रतिज्ञा करने- पनेहड़ी-सञ्ज्ञा की० [हिं० ] दे० 'पनहडा' । वाला। उ०-वाह पगार उदार सिरोमनि नतपालक पावन पनेहरा-सज्ञा पु० [हिं० ] दे० 'पनहरा' । पनी । सुमन वरषि रघुपति गुन गावत हरषि देव दुदुभि पनैला-मज्ञा पु० [हिं० मनीला ( = एक प्रकार का सन )] एक हनी ।-तुलसी (शब्द०)। प्रकार का गाढा, चिकना और चमकीला कपडा जो प्राय पनीर-सञ्ज्ञा पुं॰ [फा०] १ फाडकर जमाया हुआ दूध । छेना। गरम कपडो के नीचे अस्तर देने के काम आता है। विशेष-इसे बनाने के लिये पहले दूध को फाड लेते हैं। फिर विशेष-जिस पौधे के रेशे से यह कपडा बुना जाता है वह छेने मे नमक और मिर्च मिलाकर साँचे मे भर देते हैं जिससे फिलीपाइन द्वीपपुंज मे होता है। मनीला इस द्वीपपुज की उसकी चकत्तियाँ बन जाती हैं। राजधानी है । सभवत वहाँ से चालान किए जाने के कारण पहले रेशे ने और फिर उससे बुने जानेवाले कपडे ने मनीला मुहा०-पनीर चटाना = काम निकालने के लिये किसी की खुशामद करना । हत्थे चढाने के लिये किसी को परचाना । नाम पाया है। पनीर जमाना = (१) ऐसी बात करना जिससे आगे चलकर पनोती सज्ञा स्त्री० [म० पर्वन् ( = विशेप अवस्था), हिं० पन+योती बहुत से काम निकलें। (२) किसी वस्तु पर अधिकार करने (प्रत्य॰)] अवस्था । जैसे, वालापन, युवापन । उ०-आयुष्य के लिये कोई पारभिक कार्य करना । को चारो पनोतियो में प्रभु को भूलकर माया के जाल में फैस रहे तो क्या यही तुम्हारी बुद्धि है। -सु दर ग्र० २ वह दही जिसका पानी निचोड लिया गया हो। (भू०), भा० १, पृ० ४६ । पनीरी-सक्षा स्त्री॰ [ देश० ] १ फूल, पत्तों के वे छोटे पौधे जो दूसरी जगह ले जाकर रोपने के लिये लगाए गए हो। फूल पनौ-मचा पुं० [हिं० पन (= पान)+श्रोआ (प्रत्य॰)] एक पकवान जो पान के पत्ते को बेसन या चौरीठे में लपेटकर घी पत्तों के वेहन । या तेल में तलने से बनता है। क्रि० प्र०-जमाना। पनौटी-पशा ग्री० [हिं० पन ( = पान) + श्रौटी (प्रत्य॰)] पान २ वह क्यारी जिसमे पनीरी जमाई गई हो। वेहन की क्यारी। रखने की पिटारी। बांस की फट्टियो का बुना हुआ पानदान । ३ गलगल नीबू के फांको के ऊपर का गूदा । बेलहरा। पनीला--वि० [हिं० पानी+इला (प्रत्य॰)] [वि॰ स्त्री० पनीली ] पन्न'-वि० [सं०] १ गिरा हुआ । पटा हुया । २ नष्ट । गत । जिसमे पानी हो । पानी मिला हुमा । जलयुक्त । पन्न'-सञ्ज्ञा पुं०१ रेंगना। सरकते हुए चलना। २ नीचे की ओर पनुओं'-सज्ञा पुं० [हिं० पन (= पानी) + उभा (प्रत्य०) ] वह जाना । अघोगमन। शरवत जो गुड के कडाहे से पाग निकाल लेने के पीछे उसे यौ०--पन्नग। घोकर तैयार किया जाता है। गुड के कडाहे की घोवन का पन्नई--वि० [हि पन्ना + ई (प्रत्य॰) ] पन्ने के रग का। जिसका शरवत । पनियाँ। रंग पन्ने का सा हो। विशेष-पाग निकाल लेने के पश्चात् कहाहे में तीन चार घड़े पन्नग'-सज्ञा पुं० [सं०] [खी० पन्नगी] १ सर्प । साँप । २ पद्माख । पानी छोड़ देते हैं। फिर काहे को उससे अच्छी तरह ३ एक बूटी। घोकर थोडी देर तक उसे गरमाते हैं। उबलना प्रारभ होने पन्नग@-सशा पु० [हिं० पन्ना ] पन्ना । मरकत । १-१२