पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/८७

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स्वर्णग्रीवा स्वर्ण भूमि स्वर्णग्रीवा-मझा स्त्री० [स०] कालिका पुराण के अनुसार एक नदी स्वर्णनिभ:--वि० सोने जैसा । सोने के ममान । का नाम जो नाटकशैल के पूर्वी भाग में निकली हुई और गगा स्वर्णपक्ष--मझा पु० [स०] गरुट । के समान पवित्र कही गई है। स्वर्णपत्र--सज्ञा पु० [सं०] सोने का पत्तर या तवक । स्वर्णचूड, स्वर्णचूडक--सा पु० [म० स्वर्णचूड़, स्वर्णच्डक] १ स्वर्णपत्री-सज्ञा बी० [म०] स्वर्णमखी। सोनामुखी । सनाय । नीलकंठ नामक पक्षी। २ कुक्कुट । मुर्गा (को॰) । स्वर्णपद्मा सज्ञा स्त्री॰ [स०] स्वर्गगा । मदाकिनी । स्वर्णचूल---मक्षा पु० दे० 'स्वर्णचूड' । स्वर्णपणी- स्वर्णज'-वि० [स०] १ मोने से उत्पन । २ सोने से बना हुआ । f-सज्ञा स्त्री० [म०, पोलो जीवती। स्वर्णज स्वर्णपर्पटी-शा स्त्री॰ [म.] वैद्यक में एक प्रसिद्ध श्रीपधजो सग्रहणी --सज्ञा पु० १ वग नाम की धातु । रागा। २ सोनामक्खी। रोग के लिये सबसे अधिक गुणकारी मानी जाती है । स्वर्णजयती--सज्ञा स्त्री॰ [म० स्वर्ण + जयन्ती] किसी विशिष्ट व्यक्ति, विशेप-इसके बनाने के लिये एक तोले सोने को पहले पाठ तोले सस्था, शासन या किसी महत्त्वपूर्ण घटना आदि के जीवन के पचासवे वर्ष मनाया जानेवाला उत्सव । पारे मे भली भाति खग्ल करते है और तब उसमे पाठ तोले गधक मिनाकर उसकी कजली तैयार करते है। इसके सेवन के विशेष-यह शब्द अग्ग्रेजी के 'गोल्डेन जुबिली' शब्द का अनुवाद है समय रोगी को इतना अधिक दूध पिलाया जाता है जितना वह तथा इसका प्रयोग और व्यवहार भी अग्रेजो के शासनकाल से पी सकता है। सबद्ध प्रतीत होता है। स्वर्णजातिका-सक्षा स्त्री० [म०] पोली चमेली । स्वर्णपाटक--सज्ञा पु० [म०] माहागा, जिमय मिलाने से सोना गल जाता है। स्वर्णजाती--सजा सी० [म०] दे० 'स्वरणजातिका'। स्वर्णजीवतिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० स्वर्णजीवन्तिका) दे० 'स्वर्णजीवती' । स्वर्णपारेवत--मझा पृ० [स०] बडा पारेवा । स्वर्णजीवती-सचा स्त्री० [स० स्वरणजीवन्ती] पीली जीवती । स्वर्णपुख-लशा पु० [स० स्वण पुटख] वह वाण जिसके पिछले भाग मे स्वरिणम पख लगा हो। स्वर्णजीवा--सज्ञा सी० [सं०] पीली जीवती । स्वर्णजीवी'—सज्ञा पुं० [८० स्वर्णजीविन्] वह जो मोने के आभूषण स्वर्णपुष्प--सञ्ज्ञा पुं० [म.] १ पारग्वध । अमलतास । २ नपा। स्वर्णपुरी-- 1--सज्ञा श्री० [म०] सोन की नगरी । लका को०] । आदि बनाकर जीविका निर्वाह करता हो । सुनार। चपक । ३ बबूल । कीकर। ४ कपित्थ। कैथ। ५ सफेद स्वर्णजीवी'-सज्ञा स्रो० [सं०] पीलो जीवती । सुनहली जीवती [को०] । स्वर्णजूही-पशा स्त्री० [सं० स्वर्णयूथिका, प्रा० जूहिया] पीली जूही। स्वर्णपुप्पा [---मञ्ज्ञा स्त्री [म०] १ कलिहारी । नागली । २ सातला नाम स्वर्णतीर्थ F-~-सज्ञा पु० [स०] पुराणानुसार एक प्राचीन तीर्य का नाम । का यूहर। ३ मढासिगी। ४ सोनुली। विशेप दे० 'स्वर्ण ली । स्वर्णद--वि० [स०] १ स्वर्ण या सोना देनेवाता। २. स्वर्ण या ५ स्वरण केतकी। सोना दान करनेवाला। स्वर्णपुष्पिका-सज्ञा स्त्री॰ [म०] पीलो चमेली [को०] । स्वर्णद-मज्ञा पु० वृश्चिकाली। वरहटा । स्वर्णपुष्पी-- सज्ञा स्त्री॰ [म०] १ स्वर्ण केतकी । पीला केवडा । २ स्वर्णदा-सज्ञा स्त्री० [स०] बरहटा। वृश्चिकाली (को०] । सात ना नाम का यूहड । ३ अमलतास । आरग्वध । स्वर्णदामा--सज्ञा स्री० [स०] एक देवी (को०] । स्वर्णप्रतिकृति- --सज्ञा स्त्री॰ [स०] दे० 'स्वरणप्रतिमा' । स्वर्णदी-भज्ञा स्त्री० [स०] १ मदाकिनी । स्वर्गगा । २ वृश्चिकाली। स्वर्णप्रतिमा-सज्ञा स्त्री॰ [१०] सोने की प्रतिमा या मूर्ति । वरहटा । ३ कामारया के पास की एक नदी का नाम । स्वर्णप्रस्थ-सज्ञा पु० [सं०] :शानुमार जबूद्वीप के एक उपद्वीप का स्वर्णदीधिति--सज्ञा पु० [म०] अग्नि । स्वर्णदुग्धा, स्वर्णदुग्धी-सज्ञा स्त्री० [स०] स्वर्णक्षीरी। सत्यानाशी। स्वर्णफल-सचा पु० [स०] धतूरा । भरांड। स्वर्णफला-मझा स्त्री॰ [स०] स्वर्णकदली। चपा केला। स्वर्णद्रु- सज्ञा पु० [स०] पारग्वध । अमलतास । स्वर्णद्वीप-सज्ञा पुं० [स०] एक द्वीप का नाम जिसे आजकल सुमात्रा स्वर्णवधक-मशा पु० [स०स्वर्णबन्धक] दे० 'स्वर्ण वध' । स्वर्णवध--संज्ञा पु० [८० स्वर्णवन्धक सोना वधक रखना (को०] । कहते है। स्वर्णधातु-ज्ञा पुं० [पु०] १ सुवर्ण। सोना। २ स्वर्णगैरिक। स्वर्णवणिक्-सशा पु० [म०] एक जाति । स्वर्णकार । सोनार (को॰) । सोनागेरू। स्वर्णवीज--बशा पु० [स०] धतूरे का बीज । स्वर्णनाभ--संज्ञा पु॰ [स०] १ एक प्रकार का शालगाम। २ एक स्वर्णभाक्, स्वर्णभाज्--Hश पु० [२०] मूर्य । प्रकार का अस्त्रमन (को०)। स्वर्णभूमि-- 1-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ वह स्थान जहाँ सब प्रकार के सुख स्वर्णनिभ-सा पुं० [स०] सोनागेरू । स्वणगरिक । हो । बहुत उत्तम भूमि । २ दारचीनी। गुडत्वक् । कुम्हडा। पेठा। नाम।