पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/७०

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स्लीपर ५३८२ स्वकिया जिसपर कपोज करने के लिये कुछ लिखा जाय । जैसे,—उनकी स्व सरिता-सका श्री० [स० म्य सरिता] गगा। तीन स्लिपो मे एक पेज मैटर निकलता है । (कपोजीटर)। स्व सिधु-सहा ग्नी० [सं० स्व मिन्धु ] स्वनंदी । गगा (को॰] । स्लीपर--सज्ञा पु० [अ० स्लिपर] एक प्रकार की जूती जो एडी की स्व सुदरी -सपा स्री० [सं० म्व मुन्दरी] अप्मग । ओर से खुली होती है । चट्टी। स्व स्यदन--सया पुं० [मं० स्वस्यन्दन] उद्ग्य (को॰] । यौ०-फुल स्लीपर = स्लीपर के आकार का एक प्रकार का स्व स्रवती-सहा स्त्री० [स० म्ब सवन्ती] गगा [को०) : जूता जो पीछे एडी की ओर भी साधारण जूतो की भाँति वद रहता है। स्व'-सा पुं० [मं० [व] १ अपना ग्राप । निज । यात्म । २ विष्णु स्लीपर----सज्ञा पु० [अ०] १ लकडी का वह चौपहल लवा टुकडा का एक नाम । ३ माई बधु । गोती। सनधी । ज्ञाति । ४ घन । या धरन जो प्राय रेल की पटरियो के नीचे विछी रहती है। दौलत। जैसे,---निम्ब = निधन | ५ यात्मा । ६ गणित में २ रेल का वह डब्बा जिसमे अतिरिक्त शुल्क देने पर यात्रियो धन राशि (को०)। ७ ग्रह (को०)। ८ प्रकृति | स्वभाव (को०)। के शयन करने की व्यवस्था रहती है। रेलवे विभाग द्वारा स्वर-- वि० १ अपना। निज का । जैसे,--स्वदेश, स्वगज्य, म्बजाति । उसका शायिका या शयनयान नामकरण किया गया उ०--वृ द वृद गोपिका, चली स्वसाज साजिवर मद मद है (आधुनिक)। हाम है, लजावै हस गति को।--लल्लू ० (शब्द०)।२ स्लेज-सबा स्त्री० [अ०] एक प्रकार की विना पहिए की गादी जो प्राकृतिक । नैसर्गिक (को०) । ३ जो अपने कुटु व या कबीले बर्फ पर घसिटती हुई चलती है। का हो (को०)। स्लेट -सज्ञा स्त्री० [अ०] १ एक प्रकार के चिकने पत्थर की चाकोर यौ०-स्वकाय । स्वकाल = ठीक ममय । स्वगुप्त । चौरस पतली पटरी जिसपर प्रारभिक श्रेणियो के विद्यार्थी स्वकपन--सज्ञा पुं॰ [स० स्वकम्पन] वायु । हवा । अक्षर और अक लिखकर अभ्यास करते है। जो हाय या कपडे स्वकवला-सक्षा मी० [स० म्वकम्बला] गफडेयपुराण में वर्णित एक से पोछने अथवा पानी से धोने से मिट जाता है । नदी का नाम। विशेष-आजकल टीन पर भी समेट पत्थर के चणं को जमा करके वच्चो के लिखने की पूर्वोक्त पटरी बनाई जाती है। स्वक'-वि० [०] स्वय का । अपना । व्यक्तिगत । निजी [को०] । स्वक-संशा पुं० १ सगी। साथी । दोस्न । मिन । २ निजी धन- २ एक विशेष प्रकार का पत्थर जिससे उक्त पटरी बनाई जाती है। दौलत [को०] । स्लेसम अग-सज्ञा पुं० [सं० श्लेप्मा + अङ्ग] लसूडे का वृक्ष। (डि०) । स्वकरण-एमा पु० [सं०] १ कौटिल्य के अनुसार किमी वन्नु पर स्लो'-वि० [अ०] १ धीमी चाल से चलनेवाला । मदगति । जैसे,- अपना स्वत्व जताना । दावा करना । २. किसी स्त्री को अपना स्लो पैसेंजर । २ सुस्त । काहिल । बनाना । विवाह करना । स्लो-सञ्ज्ञा पुं० घडी की चाल का मद या धीमा होना। स्नोथ--सज्ञा पुं० [अ०] एक प्रकार का बहुत सुस्त जानवर । स्वकरण भाव-सा पुं० [सं०] किसी वस्तु पर विना अपना स्वत्व सिद्ध किए अधिकार करना । विना हक साबित किए विशेष—यह दक्षिण अमेरिका के जगलो मे पाया जाता है। इसके दाँत बहुत कम होते हैं और प्राय कटीले नहीं होते। कब्जा करना। किसी किसी के तो विल्कुल दाँत ही नही होते । यह पेडो की स्वकरण विशुद्ध-सशा पुं० [स०] वह पदार्थ जिसपर किसी व्यक्ति का स्वत्व न हो। पत्तियां खाकर गुजारा करता है। जब तक पेड की सब पत्तियाँ नही खा लेता, तब तक उस पेड से नही उतरता । यह हिंसक स्वकर्म-सशा पुं० [स• स्वकर्मन्] अपना कर्तव्य । अपना काम [को०] | जतु नही है। पर यदि कोई इसपर आक्रमण करे तो यह यी०-स्वकर्मकृत् = अपना काम करनेवाला । वह जो स्यतन अपने नाखूनो से अपनी रक्षा कर सकता है। रूप से अपना काम करता हो। स्वग?--सज्ञा पुं० [स० स्वङ्ग] १ आलिंगन । २ वह जिसका शरीर स्वकर्मा--वि० [स० स्वकमन्] अपना कर्तव्य पूर्ण करनेवाला [को] । सु दर हो । अच्छे अगोवाला [को॰] । स्वकर्मी--वि० [स० स्वकर्मिन्] केवल अपने ही काम से मतलब स्वजन--सचा पुं० [स० स्वजन आलिंगन । भेटना [को०)। रखनेवाला। स्वार्थी । खुदगरज । स्वत--वि० [स० स्व] १ जिसका प्रत या परिणाम शुभद हो। स्वकामी-वि० [स० स्वकामिन्] १ अपना स्वाय देखनेवाला । मत- २ शुभ । मागलिक [को०। लवी । २ अपने इच्छानुसार आचरण करनेवाला (को०] । स्व-सज्ञा पु० [सं०] स्वर्ग । स्वकार्य-सज्ञा पुं० [सं०] अपना या निज का काम । व्यक्तिगत काम | स्व पति-सञ्ज्ञा पुं० [स०। स्वर्ग का स्वामी-इद्र [को०] । निजी काम। स्व पथ--सज्ञा पुं॰ [स०] (स्वर्ग का मार्ग) मृत्यु । स्वकाल--सपा पुं० [स०] ठीक समय । उपयुक्त काल । स्व पाल-सधा पुं० [स०] स्वर्ग का रक्षण करनेवाला । स्वकिया@---सधा सी० [सं० स्वकीया] दे० 'स्वकीया'। उ०-हे स्व पृष्ठ-सक्षा पुं० [सं०] कई सामो के काम । सखि पौरन के जे पिया । वात सुनहिं स्वाकया परिकिया।- स्व साद--समा ५० [स०] देवता, जिनका स्वर्लोक तिवास है। नद० ग्र०, पृ० १५७ ।