पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/३०

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1 स्तोकतमम् ५३४२ स्त्रीक्षेत्र स्तोकतमस्-वि० [स०] कुछ कुछ काला । श्यामल [को०] । स्तौभ--वि० [म०] १ स्तोभ सवधी । स्तोभ का। २ जो प्रसन्नता से चित्लाता या नारे लगाता हो (को०) । स्तोकनन-वि० [स०] [वि॰ स्त्री० स्तोकनम्रा] थोडा भुका हुआ [को॰] । स्ताभिक'- वि० [स०] स्तोभयुवत । जिसमे तौभ हो । स्तोकपाडुर वि० [म० स्तोकपाण्डुर] कुछ कुछ पीला । पीतम्भ निरो०] । स्तोतक-सज्ञा पु० [स०] १ पहा । चातक । २ वछनाग विप । स्तौभिकर-सहा पु० सामवेद की सहिता का द्वितीय ग्रश (को०। वत्सनाग विप। स्त्यान'--वि० [स०] १ घना । २ कटा । कठोर । ३ चिकना। म्तोतव्य-वि० [स०] स्तव या स्तुति के योग्य । स्तुत्य । स्निग्ध । ४ शब्द या व्वनि करनेवाला। ५ पुजीभूत । राशीभूत। स्तोता-नि० [स० स्तोत] स्तुति करनेवाला । उपासना करनेवाला । जमा हुआ (को०)। ६ मृदु । कोमल (को०)। प्रार्थना करनेवाला। स्त्यान'- मचा पु० १ घनापन । घनत्व। २ प्रतिध्वनि। आवाज । आलस्य । अकर्मण्यता। ४ सत्कर्म मे चित्त का न लगना। स्तोता-सपा पु० विष्णु का एक नाम । ५ अमृत । ६ मार्दव । कोमलता। स्निग्धता(को०)। स्तोत्र-मचा पु० [म०१ किसी देवता का छदोबद्ध स्वरूपकथन या गुणकीर्तन । स्तव । स्तुति । जैसे,—महिम्नस्तोत्र । २ स्तुति- त्यानद्धि स० स्त्री० [म०] वह निद्रा जिसमे वासुदेव का प्राधा वल होता है । जिसे यह निद्रा होती है, वह उठकर कुछ काम करके परक रचना, छद या श्लोक । ३ प्रशसा । प्रशस्ति (को॰) । फिर लेट जाता है और इस प्रकार वास्तव मे सोता हुआ भी स्तोत्राह-वि० [सं०] स्तवन या स्तुति का पात्र । स्तुन्य । स्तनीय । काम करता है, पर काम की उसे सुध नही रहती। (जैन)। स्तोत्रिय-वि० [स०] मनोन सबधी । स्तोत्न का । स्त्यायन--स० पुं० [स०] जनसमूह । भीड । मजमा । स्तोत्रिय-सपा पुं० एक प्रकार का पद्य । स्तोत्र का पद्य (को०] । स्त्येन-सज्ञा पु० [स०] १ चोर । डाकू । २ अमृत । सुधा । स्तोत्रिया-सचा खौ० [म०] दे० 'स्तोत्रिय'। स्त्यैन'-सा पु० [स. चोर । डाकू। स्तोत्रीय-वि० [सं०] दे० 'स्तोत्रिय" स्त्यैन--वि० थाडा । कम । अल्प। स्तोत्र-सचा पु० [म०] १ सामवेद का एक अग । २ जड या निरचेप्ट स्त्रियम्मन्य--वि० [म०] जो अपने को स्त्री माने या समझ । करना । स्तभन । ३, तिरस्कार करना। उपेक्षा करना। अवज्ञा स्त्रीद्रिय-सज्ञा ली० [स० स्त्रीन्द्रिय] योनि । भग [को।। करना। ४ रोकना । वाधा खडी करना (को०)। ५ विराम । स्त्री---सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ नागे। औरत । जैसे,-लज्जाशीलता स्त्री यति (को०)। ६ सूक्त । प्रशस्ति (को०)। ६ सनिविष्ट वस्तु जाति का आभूपरण है। २ पत्नी । जोरु । जैसे,—वह अपनी (को०)। ७ अगो की निश्चेष्टता । जडता। स्त्री और बाल बच्चो के साथ पाया है । ३ मादा । जैसे,-स्त्री स्तोभित-वि० [स०] १ जिसकी स्तुति की गई हो। स्तुति किया पशु । ४ सफेद च्यू टी । ५ प्रियगु लता। ६. एक वृत्त का नाम हुया । २ जिसका जयजयकार किया गया हो । जिसमे दो गुरु होत हें । उसका दूसरा नाम 'कामा' है । उ०- स्तोमर--सञ्ज्ञा पुं॰ [म०] १ स्तुति । प्राथना । २ यज्ञ । ३ एक प्रकार गगा धावो कामा पावो। ७ व्याकरण मे स्त्रीलिंग या स्त्रीलिंग- का यज्ञ । ४ यज्ञकारी। यज्ञ करनेवाला। ५ समूह । राशि । वोधक कोई शब्द (को०)। ६ दस धन्वतर अर्थात् चालीस हाथ की एक माप । ७ मस्तक । स्त्री--सज्ञा स्त्री॰ [स. स्तरी] दे॰ 'इस्तिरी' । सिर । ८ धन । दौलत । ६ अनाज । शस्य । १० एक प्रकार स्त्रीकरण-सञ्ज्ञा पुं० [स०] सभोग । मैथुन । की इंट । ११ लोहे की नोकवाला डडा या सोटा । १२ बडी माता । विशाल राशि (को०)। १३ दूसरे को किराए पर मकान स्त्रीकाम-वि० [म०] १ स्त्री की कामना या इच्छा करनेवाला । जिसे औरत की ख्वाहिश हो । २ स्त्रीसभोग का इच्छुक (को०) । देना (को०) । १४ सोम का दिन । सोम दिवस (को० । स्त्रीकार्य--सशा पु० [स०] १ स्त्रियो का व्यवसाय । २ स्त्रियो की स्तोम-वि० टेढा । वत्र । सेवा। अत पुर की सेवा (को०] । स्तोमक्षार-सज्ञा पुं० [स०] साबुन (को॰] । स्त्री कितव-सा पु० [स०] स्त्रियो को फुसलाने, बहकाने या धोखा स्तोमचिति-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [म०] यज्ञविशेप मे प्रयुक्त स्तोम नाम की देनेवाला पुरुप (को०)। ईटो की जोडाई या चुना जाना [को०। मन्त्रीकुसुम-सञ्ज्ञा पु० [स०] स्त्रियो का मासिक धर्म। रजोधर्म [को०] । स्तोमायन-सझा पुं० [सं०] यज्ञ मे वलि दिया जानेवाला पशु । स्त्रीकृत--सचा पु० स०] वह कार्य प्रादि जो स्त्री द्वारा किया गया स्तोमीय-वि० [स०] स्तोम सवधी। स्तोम का। हो। २ नभोग । मैथुन । यौनसबध (को॰) । स्तोम्य--वि० [म०] स्तुति के योग्य । प्रार्थना के योग्य । स्तुत्य । स्त्रीकोश-मचा पु० [स०] १ खड्ग । कटार । २ छुरा (को०) । स्तौविक-सज्ञा पु० [स०] १ अस्थि, नख, केश अादि स्मृतिचिह्न स्त्रीक्षीर-सञ्ज्ञा पु० [स०] स्त्री के स्तन का दूध । जो स्तूप के नीचे सरक्षित हो। वुद्धद्रव्य । २ वह मार्जनी जो स्त्रीक्षेत्र-सञ्ज्ञा पु० [स०] सम या युग्म सख्यक राशियाँ । जैसे दूसरी, जैन यति अपने पास रखते हैं। चौथी, छठी प्रादि (को०)। .