पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२४९

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बाजी। होढ' ५५६१ होना अर त टरत न वर परे दई मरक मनु मैन । होडा होडी वढि होता-मज्ञा स्त्री० [सं०] १ स्तवन । स्तुति । २ यज्ञ में आहूत देवता। चले चितु चतुराई नैन । - बिहारी र०, पृ० ४ । २ शर्त । ३ यज्ञ । ४ अाह्वान । पुकार । बुलाना । ५ होता के सहायक का स्थान [को०)। होढ-वि० [स.] चुराया हुअा। चोरी का । यौ०-होनाचामस् = दे० 'होतृचमस्' । होत्राशासी = होता का होढर--सञ्चा पुं० चुराई हुई वस्तु । चोरी का माल (को॰] । सहायक । होतृक । होता -सज्ञा श्री० [हि होना या भूति] १ पास मे धन होने की दशा। होत्रिय' -सज्ञा पुं० [म.] होता के सहायक का कार्य या स्थान । दे० पाढयता । सपन्नता। उ०- -(क) होत की जोत है। (ख) 'होत्रीय' (को०।। होत का वाप अनहोत की माँ । २ वित्त । सामर्थ्य । धन की होत्रिय:--वि० दे० 'होत्रीय'२ । योग्यता । मकदूर । समाई। होत्री --सज्ञा स्त्री० [स०] यजमान रूप मे शिव की मूर्ति । शिव की होतवान-सना पुं० [८० भवितव्य] वह जो होने को हो। होनेवाला । आठ मूर्तियो मे एक । उ०-जिसको कर्ता ने सृष्टि के आदि होनहार । उ०-कहाँ जैत कहँ सूर प्रथि, जिन गहे गौरी साह । मे रचा अर्थात् जल, और जो विधिपूर्वक दिए हव्य को लेता है होतब मिट न जगत मै, किज्जिय चिंता काह । -ह० रासो, अर्थात् अग्नि, और जो यज्ञ करता है अर्थात् होती .. पृ० ११६॥ इन पाठ मूर्तियो मे जो ईश प्रत्यक्ष है अर्थात् महादेव जी सोई होतव्य-मज्ञा पुं० [सं० भवितव्य] दे० 'होतब' । रक्षा करे ।-शकुतला, पृ०३ । होतव्यता-सज्ञा स्त्री० [म० भवितव्यता] होनेवाली वात । वह वात होत्री --सज्ञा पुं० [म० होनिन् | हवन करनेवाला [को०] । जिसका होना ध्रुव हो । होनहार । उ०- जैसी हो होतव्यता, होत्रीय - -सज्ञा पुं० [सं०] १ होता जो हवन करता हे । २ देवताओ वैसी उपज बुद्धि । के उद्देश्य से हवन करनेवाला ऋत्विक् । ३ यज्ञ स्थल । यज्ञ होतर--वि० [सं० भवितव्य] होने लायक । होने के योग्य । उ०- मडप [को०] । ये रसवाद भले न भावते करियै वही होइ जो होतर । होत्रीय-वि० होता से सवध रखनेवाला । होता सवधी। -प्रानंदघन प्रिय नई घमंड सो देत दरवरयो डोलत अजी होत्वा-सशा पुं० [सं० होत्वन्] यज्ञ करनेवाला व्यक्ति । यज्ञकर्ता [को०] । अजोनर | -घनानद०, पृ० ३६० । होनहार'-वि० [हिं० होना + हारा (प्रत्य॰)] १ जो होनेवाला है । होतव्य-वि० [सं०] जो हवन करने योग्य हो । हवनीय [को०] । जो अवश्य होगा। जो होने को है । भावी । २ जिसके बढने होता--सञ्ज्ञा पुं० [सं० होत] [स्त्री० होती] यज्ञ में आहुति देनेवाला । या श्रेष्ठ होने की आशा हो अच्छे लक्षणोवाला। जिसमे भावी मन पढकर यज्ञकुड मे हवन की सामग्री डालनेवाला। उन्नति के विह्न हो । जैसे,--होनहार लडका । उ०--होनहार विशेप--यह चार प्रधान ऋत्विजो मे है जो ऋग्वेद के मन विरवान के होत चीकने पात । पढता और देवतानो का आह्वान करता है। इसके तीन पुरुष होनहार--सज्ञा पुं०, स्त्री० वह बात जो होने की हो। वह बात जो या सहायक मैदावरुण, अच्छावाक् और ग्रावस्तुत् । अवश्य हो । वह बात जिसका होना दैवी विधान मे निश्चित २ यज्ञकर्ता । यज्ञ करनेवाला (को०] । ३ अग्नि का एक नाम हो । होनी । भवितव्यता । उ०--हमपर कीजत रोख काल- (को०) । ४ शिव । शकर (को॰) । गति जानि न जाई । होनहार ह रहै मिट मेटी न मिटाई । होतृक-सञ्ज्ञा पुं० [स०] यज्ञ मे होता की सहायता करने वाला व्यक्ति । होनहार है रहै मोह मद सवको छूट । होय तिनूका बज्र, होता का सहायक। बज्र तिनका हूँ टूट ।-केशव (शब्द॰) । होतृकर्म- होना-क्रि० अ० [स०/भू> भवन, प्रा० होण] १ प्रधान सत्तार्थक --सञ्ज्ञा पुं० [स० होतृकर्मन्] यज्ञ मे होता का कार्य [को॰] । क्रिया । अस्तित्व रखना । कही विद्यमान रहना। उपस्थित या होतृचमस्-सञ्ज्ञा पु० [सं०] नुवा अादि पात्र जिनका प्रयोग होता यज्ञ मौजूद रहना । जैसे,—उसका होना न होना बराबर है। (ख) के समय करता है किो०)। ससार मे ऐसा कोई नही है । उ०-गगन हुता, नहिं महि हुती, होतृप्रवर -सज्ञा पुं० [स०] होता का वरण । होता का चुनाव [को०] । हुते चद नही सूर ।-जायसी (शब्द॰) । होतृपदन- -सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] होता का आसन । होता के बैठने का विशेष-शुद्ध सत्ता के अर्थ मे इस क्रिया का प्रयोग साधारण रूप स्थान (को०)। 'होना' के अतिरिक्त केवल सामान्य कालो मे ही होता है । जैसे,- होतृसदन-सज्ञा पुं० [म.] दे० 'होतृपदन' (को॰] । वह है, मै था, वे होगे । और कालो मे प्रयुक्त होने पर यह क्रिया होन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ वह वस्तु जो यज्ञ मे हवन करने के उपयुक्त विकार, निर्माण, घटना, अनुष्ठान आदि का अर्थ देती है। हो। जैसे, घृतादि । २ होम की सामग्री । हवि । ३ यज्ञ। हिंदी मे यह क्रिया बडे महत्व की है, क्योकि खडी बोली मे सब हवन [को०] । क्रियाओ के अधिकतर 'काल' इसी क्रिया की सहायता से बनते होत्रक-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'होतृक' (को॰] । है। कालनिर्माण मे यह सहायक क्रिया का काम देती है।