पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२३४

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HO हृद्दाह हृष्टतनूरह हृद्दाह-सज्ञा पुं० [सं० ] हृदय का दाह । हृदय की जलन [को॰] । हृव्यथा--समा खी० [सं०] १ हृदय की पीडा । मनोव्यथा । हृद्देश-~-सज्ञा पुं॰ [ स० ] हृत्प्रदेश । हृदय का क्षेत्र । वक्षस्थल को । २ हृदय का क्षोभ या व्यग्रता । २ हृद्रव-सज्ञा पुं० [सं०] १ हृदय का द्रवीभूत होना । २ हृदय हृवरण-सरा पुं० [ म.] १ हृदय का घाव या जन्म । या कलेजे की धडकन [को०] । हृदय का काँटा या शूल। हृद्द्वार-सज्ञा पुं० [सं०] हृदयरूपी द्वार । हृन्यरूपी दरवाजा [को०] । हृल्लास--समा पुं० [ ] १ हिकका । हिचकी। २ हृदय का क्षोभ या शोक । मन की व्यग्रता [को०] । हृद्धाम-सज्ञा पुं० [ स० हृद + धामन् ] हृदयरूपी घर। हृदय का स्थान । उ०--अधकार का अलसित अचल अब द्रुत प्रोढेगा हृल्लामक-स ० [ स०] दे० 'हृल्लास' । ससार । दिखलाई देगा जग श्याम तृपित ले रहा मम हृल्लेख--सज्ञा पुं० [सं०] १ चिंतन । तर्क । अनुशोचन । २ ज्ञान । हृद्धाम । -वीणा, पृ० २६ । बुद्धि [को॰] । हृद्य'- वि[सं०] १ हृदय का। हार्दिक । भीतरी । २ हृदय हल्लेखा - सद्या सी० [सं०] १ उत्सुकता । औत्सुक्य । उत्कठा । को रुचनेवाला। अच्छा लगनेवाला । ३ सु दर । लुभावना । २ दुख । शोक । ३ एक वीजमन्न । ह्रीम् [को०] । ४ हृदय को शीतल करनेवाला। हृदय को हितकारी । ५ हृपि' --मझा मो. [ स०] १ हपं। पानद । प्रमनता। २ काति । खाने मे अच्छा । सुस्वादु । स्वादिष्ट । जायकेदार। ६ चमक । दमक। अनुक्ल (को०) । ७ प्रिय । प्यारा (को॰) । हृपि -सशा पु० असत्यशील या झूठा आदमी । हृद्य'-सज्ञा पुं० १ कपित्थ। कैथ। २ शत्रु को वशीभूत करने हृपित- वि० [सं०] १ प्रानदयुक्त। प्रसन्न । हर्पित । २ रोमाच- का एक मत्र । ३ सफेद जीरा । ४ दही। ५ मधु । महुए युक्न । जिसके शरीर के रोएं खडे हो । ३ वर्मयुक्त । वमिन । की शराब । ६ विल्व वृक्ष (को०)। ७ अष्टवर्ग मे गिनाई हुई ४ नूतन । ताजा । नवीन । ५ प्राश्चर्ययुक्त । चकित । वृद्धि नाम की अोपधि (ो ।८ दालचीनी। दारचीनी (को०)। विस्मित । ६ प्रतिहत । कुठिन । धारहीन । भोयग । ७ नमित । हृद्यगध-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० हृद्यगन्ध ] १ वेल का पेड या फल । प्रणत । ८ भग्नाश । हताश [को०] । २ सोचर नमक। हपी 1-सज्ञा ० [सं०] अग्नि और सोम [को०] । हृद्यगध- वि० सुगधित । सुगधयक्त । खुशबूदार [को०] । हपीक--सज्ञा पुं० [सं०] इद्रिय । हृद्यगधक-सज्ञा पुं० [सं० हृद्यगन्धक ] सौवर्चल लवण (को०] । यो०- हृषीकेश । हृद्यगधा-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] बडे फूलो की जूही जिसकी सुगध हृषीकनाथ-सज्ञा पुं० [सं०] १ हपोकेश । विष्ण । २ श्रीकृष्ण । मोहक होती है को०] । हृषीकपति-सशा पुं० [सं०] हृषीकनाथ । विष्णु फिो०] । हृद्यगधि -सज्ञा मी० [सं० हृद्यगन्धि ] छोटा जीरा (को॰] । हृपीकेश -सज्ञा पुं० [सं०] १ विष्ण, का एक नाम । २ श्रीकृष्ण। हृद्यत्व-मज्ञा स्त्री॰ [ स० ] हृद्य अर्थात् रुचिकर, स्वीकरणीय या ३ इद्रियो का स्वामी । परमात्मा (को। ४ इद्रियो का प्रिय होने का भाव । अनुकूलता । प्रियता । मचालनकर्ता। मन (को०) । ५ पूम का महीना । ६ हरिद्वार हृद्यता--सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'हृद्यता' (को०] । के पास एक तीर्थस्थान । हृद्याशु-सज्ञा पुं० [सं०] चद्रमा । हृषीकेश्वर--सज्ञा पुं० [सं०] वह जो इद्रियो का स्वामी हो। विष्ण हृद्या-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ अष्टवर्ग की वृद्धि नामक ओषधि या या श्रीकृष्ण (को॰] । जडी। २ अजा । बकरी। हषु'--वि० [सं०] १ हर्षित होनेवाला । प्रसन्न । २ झूठ बोलनेवाला। हृद्रुज्-सञ्ज्ञा पुं० [40] १ २० 'हृद्रोग' । २ हृदय की व्याधि, शूल या हृषु'- सज्ञा पुं० १ अग्नि । २ सूर्य । ३ चद्र । पीडा [को०; हृष्ट--वि० [सं०] १ हपित । अत्यत प्रसन्न । आनदयुक्त। हृद्रोग-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ कुभ राशि । २ शोक । दुख । सताप । ३ प्रेम । ४ हृदय की व्याधि । उ०--वात पित्त यौ०--हृष्टपुष्ट । हृष्टतुष्ट । कफ युक्त हृद्र ग को त्रिदोप का हृद्रोग कहते हैं । --माधव०, २ खडा । उठा हुग्रा (रोयाँ) ३ उकठा हुआ । पृ० १७०। हुआ । ४ अाश्चर्यान्वित । आश्चर्ययुक्त । विस्मित (को०)। यौ०-- हृद्रोगवरी = अर्जुन नाम का वृक्ष । ५ प्रतिहत । कुठित । भोथरा [को०] । हृवटक-सज्ञा पुं० [स० हृद्वण्टक ] जठर । कुक्षि [को०)। हृष्टचित्त, हृष्ट चेतन-वि० [सं०] आनदयुक्त । प्रमन्नहृदय [को०] । हृद्वर्ती-वि० [ सं० हृदवर्तिन् ] हृदय मे स्थित । हृदयवर्ती [को०] । हृष्ट चेता--वि० [ स० हृष्टचेतस् ] प्रसन्नहृदय । हृष्टचित्त [को॰] । हृद्विदु -सज्ञा पुं० [स० हृद्वि दु] केंद्रबिंदु । मध्यविंदु । उ० हृष्टतनु-वि० [सं० ) प्रसन्नवदन । हर्पित। रोमाचित (को०] । मानो सवका हृद्विदु वही है ।--सुनीता, पृ० १८७ । हृप्टतनूरह-वि. [सं०] रे माचयुवत । रोमाचित [को०) । कडा पडा