पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२१९

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हुंकारी ५५३१ हुकूमत वीग । कहनेवाला यह समझे कि श्रोता उसकी कहानी को सुन रहा है। हुअासना-सज्ञा पुं० [सं हुताशन, प्रा० हुअासन] अग्नि । प्राग । उ०--सुनि सुत एक कथा कही प्यारी। कमलनन मन आनंद उ०-तसु नदन भोगीसराम वर भोग पुरदर । हूस हासन उपज्यौ, चतुर सिरोमनि देत हुँकारी।-सूर०, १०। १६८ । जिते कति कुसुमा उहँ सुदर |--कोति०, पृ०३२ । हुँकारी भरना = दे० 'हुँकारी देना' । उ०--कहत वात हरि कछू हुक'---सज्ञा पुं० [अ०] १ कॅ टिया । टेढी कील । २ दो वस्तुओं को न समुझत झूठहिं भरत हुँकारी। सूरदास प्रभु के गुन तुरतहिं एक मे जोडने का झुका हुअा काटा । अंकुसी । अंकुडी। ३ नाव बिसरि गई नँदनारी। -सूर०, १०।१६७ । मे वह लकडी जिसमे डांडे को ठहरा या फंसाकर चलाते है । हुंकारी-- २--सज्ञा श्री० [स० हुण्डि ( = राशि) + कारी] घुमाव के साथ हुक' -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का दर्द जो प्राय पीठ मे किसी झकी लकीर जो अक के आगे रुपया या रक्म सूचित करने के स्थान की नस पर होता है । लिये लगा दी जाती है। विकारी । जैसे,--१), । क्रि० प्र०--पडना । विशेप-मुद्रा की दशमलव पद्धति अपनाने के कारण अव इसका हुकना'-सञ्ज्ञा पुं० [देश॰] एक पक्षी जो 'सोहन चिडिया' के नाम से प्रचलन कम हो गया है । अव इसकी जगह विन्दु से काम लिया प्रसिद्ध है। जाता है । जैसे--, १३) की जगह अब १२५ लिखा जाता है । हुकना-क्रि० स० [देश॰] भूल जाना । विस्मृत होना । हुंडार--सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० हुण्ड ( = भेड ) + अरि ( = शत्रु)] भेडिया । हुकना'-- क्रि०स० वार या निशाना चूकना । लक्ष्य या निशाने से भ्रष्ट होना या चूकना । खाली जाना । हुँडावन-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० हुडी] १ हुडी की दस्तूरी। २ हुडी की दर। हुकना --सज्ञा पुं० [अ० हुक्नह] वत्ती या पिचकारी जो पाखाना पाने हुँत--प्रत्य० [प्रा० विभक्ति 'हितो' ] १ पुरानी हिंदी की पचमी के लिये दी जाती है। स्नेहवस्ति [को०] । और तृतीया की विभक्ति । से। उ०—(क) तेहि वदि हुँत हुकम-सञ्ज्ञा पुं० [अ० हुक्म] आदेश । दे० 'हुक्म' । उ० -(क)तव छुट जो पावा |--जायसी (शब्द॰) । (ख) जव हुँत कहिगा भैरव भूवाल वीरवर । कीन हुकम कालीय उच कर।-पृ०रा०, पखि सँदेसी । —जायसी (शब्द॰) । (ग) तव हुँत तुम बिनु ६।१६३। (ख) तव पात्साह ने वाही समं यह हुकम कर्यो, जो रहै न जीऊ !--जायसी (शब्द०)।२ लिये । निमित्त । वास्ते। वा वैरागी को मो पास अब ही ले आयो।-दो सो वावन० खातिर । उ०-तुम हुँत मॅडप गइउँ परदेसी ।—जायसी भा०१, पृ० ११६ । (शब्द॰) । ३ द्वारा । जरिये से । उ०—-उन्ह हुँत देख पाएउ हुकम्मg-सञ्ज्ञा पुं० [अ० हुक्म] आदेश । आज्ञा । हुक्म । उ०—कियो दरस गोसाई केर।-जायसी (शब्द)। तब मार हुकम्म सु हेरि । उठी सिसिरौ तव प्रायसु फेरि ।- हुँति 1-प्रत्य [प्रा० हितो] लिये | निमित्त । वास्ते । खातिर । भोर ह. रासो, पृ०२३ । से । उ०-सासु ससुर सन मोरि हुँति विनय करवि परि हुकरना-क्रि० अ० [सं० हुकरण] दे० 'हुकरना', 'हुंकारना' । पायें । मोर सोचु जनि करिश्र कछु मैं वन सुखी सुभायें । हुकर पुकर--सज्ञा पी० [अनु॰] १ कलेजे की धडकन। दिल की -मानस, २९८1 कंपकंपी। हृत्कप । घबराहट । अधीरता । हुँते-प्रत्य० प्रा० हितो] दे० 'क्त' । मुहा०--कलेजा हुकर पुकर करना = (१) भय या आशका से हृदय हुँमसा १-सज्ञा स्त्री॰ [स० ऊष्म, हिं० मस] हवा बद होने के कारण मे कंपपी या अशाति होना । डर या घबराहट से दिल धडकना। होनेवाली बरसात की गरमी । उ०-थी खूनी वरसात, प्राण (२)भय या घवराहट होना । चित्त अधीर होना । भी घुटने लगे हुँमस मे । अंग्रेजी साम्राज्य फ्रास मे वढा रहा बल २ किसी काम के करने मे पागा पीछा करना या हिचकना। कस मे ।--हसमाला, पृ०४० । हुकहुक-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] हिक्का । हिचकी [को०] । हुँमसार २--सज्ञा स्त्री० [अनु॰] दे० 'हुसम' । हुकारना-कि० अ० [सं० हुड्वरण] दे० 'हुंकारना' । हुँमसना --त्रि ० अ० [अनु॰] दे० 'हुमसन'। हु--अव्य [वैदिक म० उप ( = और आगे,) प्रा० उत्र, हिं०] हुकुमसज्ञा पुं० [अ० हुक्म] दे० 'हुक्म'। उ०-पुदकारी हुकुम कहलो का अपनेवो जोए परा रिहा।-कीर्ति०, पृ०४२ । अतिरेक सूचक शब्द । कथित के अतिरिक्त और भी । जैसे,- हुकुर पुकुर --मा स्त्री॰ [अनु॰] दे० 'हुकर पुकर' । रामहु = राम भी। हमहु = हम भी । उ०—हम कहब अब हुकुर हुकुर--सशा खी० [अनु॰] दुर्वलता, रोग आदि मे श्वास का ठकुरसुहाती ।—तुलसी (शब्द॰) । स्पदन । जल्दी जल्दी सांस चलने की धडकन । हुआँप -अव्य० [हिं० वहाँ, उहाँ] दे० 'वहाँ' । क्रि० प्र०—करना ।—होना । हु ---सक्षा पुं० [अनु॰] गीदडो के बोलने का शब्द । हुकूक-सपा पुं० [अ० हुकूक] 'हक' का बहुवचनात स्प । हुयाना+--क्रि०अ० [अनु० हुमा] 'हुआं हुआँ' करना । गीदडो का -हकढुकूक । वोलना । उ०—जवुक निकर कटक्कट कट्टहिं । खाहि, हुअाहि, हुकूमत-सदा सी० [अ०] १ अधीनता मे रखने की क्रिया या भाव । अधाहि दपट्टहि । —तुलसी (शब्द॰) । आज्ञा में रखने का भाव । प्रभृत्व । शामन । प्राधिपत्य । अधिकार। हिं० श० ११-२६ यो-