पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२१५

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. 1 हीनरीमा ५५३७ हीयाँ विशेप--यह वास्तव मे रमविरोध ही है, जैसा केशव के इस हीनाग--वि० [स० हीनाङ्ग] १ जिसका कोई अग न हो । खडित उदाहरण से प्रकट होता है--'दै दधि, 'दीनो उधार हो केशव,' अगवाला । जैसे,—लूला, लँगडा इत्यादि । २ जो सर्वांगपूर्ण 'दान कहा जव मोल ले खैहें'। 'दीने विना तो गई, जुगई 'न गई, न हो । अधूरा । नामुकम्मल । न गई घर ही फिरि जैहै' । 'गो हितु वैर कियो' 'कब हो हितु वरु हीनागी. १-सज्ञा स्त्री० [स० हीनाङ्गी] १ वह स्त्री जिसका कोई अग किए वरु नीकी कै रहे'। 'वैरु के गोरस वेचहुगी' 'अहो वेन्यो हीन हो न वेच्यो ती ढारि न देह"। इस प्रश्नोत्तर मे जो रोपभरी कहा- विशेप--हीनागी और अधिकागी कन्या का वरण स्मृतिकारो ने सुनी है, वह शृगार रस की पोपक नही है । दोषपूर्ण कहा है। इससे पति का विनाश और उसका शीलनाश हीनरोमा-वि० [स० हीनरोमन्] केशहीन । खल्वाट । गजा (को॰] । होता हे। होनलोमा---वि० [सं० हीनलोमन्] केशहीन । खल्वाट । २ छोटी पिपीलिका । छोटी च्यूटी (को०] । हीनवर्ग-वि०, मशा पु० [स०] दे० 'होनवर्ण' । हीनाशु--वि० [सं०] जो किरणो से रहित या हीन हो (को०] । हीनवर्ण -सज्ञा पुं० [स०] नीच जाति का वर्ण । शूद्र वर्ण । हीना-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० हिना] मेहदी । दे० 'हिना' । उ०-लोनिये का हीनवर्ण:--वि० १ हीन वर्ण या जाति का। २ निम्न श्रेणी का। निम्न वर्ग का । लोन गिरा दूना हुआ। तेली का तेल गिरा हीना हुआ ।- दक्खिनी०, पृ. ४६६ । हीनवाद-सज्ञा पुं० [सं०] १ मिथ्या तर्क । फजूल की वहस । २ कमजोर दलील। ३ मिथ्या साक्ष्य । झूठी गवाही जिसमे हीनापहीन--सज्ञा पु० [स०] जुरमाने के साथ हरजाना । अर्थदड पूर्वापर विरोध हो। सहित हानि की पूर्ति । हीनवादी'--सञ्ज्ञा पुं० [स० हीनवादिन] [बी० हीनवादिनी] १ वह विशेष-कौटिल्य के अनुसार ज्ञात होता है कि चद्रगुप्त के समय जिसका लाया हुआ अभियोग गिर गया हो । वह जिसका दावा मे यदि राजकीय कारखाने मे जुलाहे कम सूत या कपडे बनाते खारिज हो गया हो। वह जो मुकदमा हार जाय। २ परस्पर थे तो उन्हे 'हीनापहीन' देना पडता था। विरोधी कथन करनेवाला साक्षी । खिलाफ वयान करने- हीनार्थ--वि० [स०] १ जिसका कार्य सिद्ध न हुआ हो । विफल । २ वाला गवाह। जिसे लाभ न हुआ हो। हीनवादी-वि० १. परस्पर विरोधी या असगत वातें कहनेवाला । २ दोपपूर्ण या असगत गवाही देनेवाला। ३ जो बोल न हीनित-वि० [स०] १ रहित । वचित। २ वियुक्त । विच्छिन्न । ३ कम किया हुआ। घटाया हुअा [को०] । पाता हो। मूक । गूंगा । ४ जो वाद मे पराजित हो । वाद मे हारा हुअा [को०] । हीनोपमा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] काव्य मे वह उपमा जिसमे वडे उपमेय के लिये छोटा उपमान लाया जाय । बडे की छोटे से उपमा। हीनवीर्य-सज्ञा पुं० [सं०] हीनवल । कमजोर । हीनसख्य-वि० [स०] असामाजिक तत्वो या क्षुद्र लोगो से दोस्ती हीमालइ@-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० हिमालय] दे० 'हिमालय' । उ०-जे करनेवाला । जिसके मित्र निम्न कोटि के हो (को०] । नर उलग ईण महूरत जाई । आवरण का साँसा पडई। जाणि हीनसधि--सच्चा स्री० [स० हीनसन्धि] अपने से निम्न श्रेणी के या हिमालइ राजा गलीया हो जाई ।--वी० रासो०, पृ० ४८ । दुष्ट राजा के साथ किया गया समझौता [को०] । हीमिया- सशा स्त्री० [अ०] इद्रजाल । माया । जादू (को०] । हीनसामत-सञ्ज्ञा पु० [सं० हीनसामन्त] सामतो से रहित अथवा हीय-सहा पु० [स० हृदय] दे० 'हिय' । उ०- कवि मतिराम ढिग अधिकारच्युत नरेश । वह राजा जो राज्याधिकार च्युत वैठे मानभावनजू दुहुँन के हीय अरविंद मोद सरसै ।-मति० कर दिया गया हो (को०] । ग्र०, पृ० २८४॥ हीनसेवा-सशा स्त्री० [स०] अपने से निम्न कोटि के लोगो की चाकरी। हीयडा, हीयणा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० हृदय+अप० डा (प्रत्य०), अप० नीचो की सेवा । टहल [को०] । हिअड] दे॰ 'हियरा'। उ०-(क) राव कहइ सुणि राज- हीनहयात'-सज्ञा पुं० [अ०] जीवनकाल । वह समय जिसमे कोई कुमार । दूमनी काई हीयडइ वरनारि ।-बी० रासो, पृ० ३६ । जीता रहा हो। (ख) चीर सभाल्या नुं पीवइ नीर । जाणे हीयणइ हरणी। मुहा०-हीनहयात मे= जीवनकाल मे। जिंदगी मे । जीते जी। हणी।-वी० रासो, पृ० ६१ । हीनहयात'-अव्य०१ जब तक जीवन रहे तब तक । जब तक कोई हीयरा --सञ्ज्ञा पुं० [स० हृदय, अप० हिअड] दे० 'हियरा' । जीता रहे तब तक । जिंदगी भर । जिंदगी भर तक के लिये। जैसे,--हीनहयात मुआफी। हीयाg-सज्ञा पु० [स० हृदय प्रा० हिअय, हिअ] दे० 'हिया'। उ०-~- हीनयाती-वि० [अ०] जीवन भर के लिये प्राप्त । (क) काँई कहैसी सासरइ । गाँव न उतरयो हीया थी एक । यौ०-हीनहयाती काश्त = वह जमीन जिसपर जीवन भर किसी -बी० रासो, पृ० २४ । (ख) चुप रही ऊधो सिर काहे लेत का अधिकार रहे। हीनयाती काश्तकार = वह काश्तकार तूदो अरे, हीयो दुख रूधो सूधो बूधो तेरे घर को ।- ब्रज० जिसका जीवन भर जमीन पर अधिकार मान्य हो। ग्र०, पृ० १३१ । । 1