पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२०७

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हिरनाकुश हिरिस' हिरनाकुश-संज्ञा पुं० [म० हिरण्यकशिपु] दे० 'हिरण्यकशिपु' । २ न रह जाना। अभाव होना । उ०—गुन ना हिरानो गुनगाहक उ०-हिरनाकुश वा हिरनाक्ष राऊ । कीन्ह सेवा बहु शभू हिरानो है।-(शब्द०)। ठाऊ।-कबीर सा०, पृ० २६ । संयो॰ क्रि०-जाना। हिरनाकुस-सज्ञा पु० [म० हिरण्यकशिपु] दे० 'हिरण्यकशिपु' । ३ मिटना । दूर होना। उ० - लखि गोपिन को प्रेम भुलायो । ऊधो उ०-हिरनाकुस प्री क्स को गयो दुहुन को राज ।--गिरधर को सब जान हिरायो।—सूर (शब्द०)। ४ आश्चर्य से अपने (शब्द॰) । को भूल जाना । हक्का बक्का होना । दग रह जाना । अत्यत हिरनाक्ष --सशा पु० [स० हिरण्याक्ष] दे० 'हिरण्याक्ष' । उ० हिरनाकुश चकित होना । उ०-सोभा को सघन वन मेरो घनश्याम नित, वा हिरनाक्ष राऊ । कीन्ह सेवा बहु शभू ठाऊ ।--कवीर सा०, प० नई नई रूचि तन हेरत हिराइऐ।--केशव ग्र०, भा०१, पृ० ६० । ५ अपने को भूल जाना। आपा खोना । उ०-जी कहि श्राप २६ । हिराइ न कोई । ती लहि हेरत पाव न सोई ।--जायसी हिरनी ----सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० हिरन + ई (जी. प्रत्य॰)] हरिण की मादा । (शब्द०)। मृगी। हिरनौटा-संज्ञा पुं० [स० हरिणपोत] हिरन का बच्चा । मृगशावक । हिराना-क्रि०स० १ भूल जाना । ध्यान मे न रहना । उ०--विकल हिरफत-मज्ञा स्त्री० [अ० हिरफत] १ व्यवसाय । पेशा । व्यापार । भई तन दसा हिरानी |--सूर (शब्द॰) । २ भूली हुई वस्तु को खोजने में मदद करना । ढुंढवाना। २ हाथ की कारीगरी। दस्तकारी । ३ हुनर । कलाकौशल । ४ चतुराई । चालाकी । ५ चालवाजी । धूर्तता। हिराना-क्रि० स० [हिं० हिलाना (= प्रवेश करना और कराना)] खेतो मे भेड, बकरी, गाय आदि चौपाए रखना या रखवाना जिसमे हिरफ़तवाज--वि० [अ० हिरफत + फा० वाज] चालबाज । धूर्त । उनकी ले डी या गोबर से खेत मे खाद हो जाय । हिरफती-वि० [फा० हिरफती] धूर्त । वचक । चालबाज [को॰] । हिरमजी- -सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० हिरमजी] १ लाल रंग की एक प्रकार की हिरावल--सज्ञा पुं० [तु० हरावल] दे० 'हरावल' । मिट्टी, जिससे कपडे, दीवार आदि रंगते है । २ एक फूल जो हिरास'--सना स्त्री॰ [फा०] १ भय । वास । २ नैराश्य । नाउम्मेदी। लाल होता है । ३ रक्त वर्ण । लाल रग [को०] । ३ रज । खेद । खिन्नता । हिरमिजी-- 1--सज्ञा स्त्री॰ [फा० हिरमिजी] दे० 'हिरमजी' । हिरास-वि० [फा० हिरासा] १ निराश । नाउम्मेद । हताश । २ उदासीन । खिन्न । हिरवा - सज्ञा पुं० [स० हीरक दे० 'हीरा' । हिरवा चाय-सज्ञा स्त्री० [हि० हीरा + चाय] एक प्रकार की सुगधित हिरासत --सच्चा स्त्री० [अ०] १ ऐसी स्थिति जिसमे कोई मनुष्य इधर घास जिसकी जड मे से नीबू की सी मुगध अाती है और जिससे उधर भाग न सके। पहरा। चौकी । २ कैद । नजरबदी। तेल बनता है । मुहा० हिरासत मे करना कैद करना । पहरे के अदर करना । हिरस-संज्ञा स्त्री० [अ० हिस] दे० 'हिर्स'। सिपाहियो के पहरे मे देना। हिरसिया-वि० [अ० हिर्स, हिं० हिरस + इया] १ हिर्स करनेवाला। हिरासॉ--वि० [फा०] १ निराश । नाउम्मेद । २ हिम्मत हारा हुआ। पस्त । ३ उदासीन । खिन्न । उ०--तूं कादिर दरियाव जिहावन, मै हिरसिया हुसियार।-रै० बानी, पू० २८ । २ ईर्ष्यालु । हिरिंग- सज्ञा पुं० [सं० ह्री] मन का वीजाक्षर । ह्री। हिरसी --वि० [अ० हिर्स, हि० हिरस + ई] १ हिरिस करनेवाला । (क) हिरिंग जाप तासु मुख गाजा लछमी शिव प्राधारा है। ईर्ष्यालु । २. लोभी । लालची। उ०-इष्टी स्वाँगी बहु मिले कबीर० श०, भा० १, पृ० ५६ । (ख) पचम अकास मे हिरसी मिले अनत ।-सतवानी०, भा० १, पृ० १२६ । विश्नु विराजे । लछमी सहित सिंघासन गाजे । हिरिंग वैकुठ भक्त समाजे । जिन भक्तन कारज सारा है ।-कवीर० श०, हिरा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] रक्तनाडी या शिरा । हिरात-सज्ञा पु० [फा०] अफगानिस्तान के उत्तरी भाग मे स्थित एक हिरिव-सक्षा पुं० [देश॰] तलया। पल्बल [को०] । भा० १, पृ० ६१॥ हिराती-वि० [देश० या फा० हिरात] हिरात नामक स्थान का। हिरिमथ---सधा पुं० [• हरिमन्थ ] एक प्रकार का चना । दे, अफगानिस्तान के उत्तर मे- स्थित हिरात नगर सवधी । जैसे,-- 'हरिमथ' (को॰] । हिराती घोडा । हिरिली-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का कद [को० । हिराती'-सञ्ज्ञा पुं० एक जाति का घोडा जिसका डीलडौल औसत दर्जे हिरिवग-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] लगुड । लाठी [को॰] । का और हाथ पैर दोहरे होते हैं। यह गरमी मे नही थकता । हिरिस'-सञ्ज्ञा पुं० [देश॰] एक प्रकार का छोटा वृक्ष । हिराना-क्रि० अ० [सं० हरण] १ खो जाना। गायव होना । गुम विशेष--यह वृक्ष अवध, राजपूताना, पजाब और सिंध मे पाया होना । उ-तीन पाप मेरे, तेरे तीर पर मैया अब, मिलत जाता है । इसकी छाल भूरे रंग की होती है। इसकी पत्तियां न हेरे इत, कित धौ हिराने है ।-पद्माकर न०, पृ० २७२ । पांच छह अगुल लवी और जड की ओर गोलाकार होती हैं। उ०- नगर का नाम ।