पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

स्कंदजित् ५३३२ स्कधदेश स्कदजित-सज्ञा पु० [स० स्कन्दजित्] स्कद को जीतनेवाले-विष्ण, स्कदापस्मारी-वि० [सं० स्कन्दापस्मारिन्] स्कदापस्मार ग्रह या रोग का एक नाम। मे प्रात्रात । जिसपर स्कदपम्मार ग्रह का आक्रमण हुआ हो। स्कदता-सशा स्त्री॰ [म० स्कन्दता] म्कद का भाव या धर्म । स्कदित-वि० [स० स्कन्दित] निकला हुअा। गिरा हुअा। भडा हुआ। स्खलित । पतित । उ०---स्क दित भव हर वीरज या तै। स्कद स्कदत्व-मज्ञा पुं० [म० स्कन्दत्व । दे० 'स्कदता' । नाम देवन दिय तातै ।--पद्माकर (शब्द॰) । स्कदन-मज्ञा पुं० [स० स्कन्दन] [वि० स्कदित, स्कदनीय] ३ कोठा साफ होना। रेचन । २ सोखना। शोपण। ३ जाना। स्कदी-वि० [स० स्कन्दिन्] १ वहनेवाला। २ गिरनेवाला। पतन- ४ निकलना । वहना। गिरना। ५ स्खलन । पतन । ६ खून शील। ३ जम जानेवाला (को०)। ४ फूटनेवाला । स्फुटित का जमना। होने या चिटकनेवाला (को०) । ५ उछलनेवाला । कूदनेवाला । स्कदपुत्र-मज्ञा पुं० [सं० स्कन्दपुत्र] स्कद का पुत्र--तस्कर। चोर। स्कदेश्वर तीर्थ-सञ्ज्ञा पु० [स० स्कन्देश्वर तीर्थ] एक तीर्थ का 'क्षेमेट' के मलदेवचरित, "विशाखदत्त' के मुद्राराक्षस आदि नाम (को०] । कृतियो मे तस्करो के उपाम्य स्कद कहे गए हैं, अत चोरो को स्कदोपनिषद्-- ---सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० स्कन्दोपनिपत्] एक उपनिपद् का नाम । स्कदपुन कहा गया है। स्कदोल'—वि० [स० स्कन्दोल] ठढा । शीतल । सर्द । स्कदपुर-मज्ञा पुं० [स० स्कन्दरपुर] राजतरगिणी मे उल्लिखित स्कदोल-सधा पुं० ठढक । शीतलता। एक प्राचीन नगर का नाम। स्कध--सज्ञा पु० [स० स्कन्ध] १ कथा । मोढा । उ०-घट वहन मे स्कदपुराण-सज्ञा पुं० [सं० स्कन्दपुराण] अठारह पुराणो मे से एक स्कन्ध नत थे और करतल नाल | -शकु०, पृ०७ । २ वक्ष प्रसिद्ध पुराण। की पेडी या तने का वह भाग जहाँ से ऊपर चलकर डालियाँ विशेप-इम पुराण के अतर्गत सनत्कुमार सहिता, सूत सहिता, निकलती है। काड। प्रकाड । दड। ३ डाल । शाखा। शकर सहिता, वैष्णव सहिता, ब्राह्म सहिता और सौर सहिता ४ समूह । गरोह । झड । ५ सेना का अग । व्यूह। ६ ग्रथ नामक छह सहिताएँ तथा माहेश्वर खड, वैष्णव खड, ब्रह्म खड, का विभाग जिसमे कोई पूरा प्रसग हो। खड। जैसे,--भागवत काशी खड, रेवा खड, तापी खड और प्रभास खड नामक का दशम स्कध । ७ मार्ग । पथ । ८ शरीर । देह । ६ राजा। सात खड तथा कितने ही माहात्म्य आदि माने जाते हैं। इनमे १० वह वस्तु जिसका राज्याभिषेक मे उपयोग हो । जैसे,- से काशी खड ही सबसे अधिक प्रचलित और प्रसिद्ध है। जल, छत्र आदि। ११ मुनि । आचार्य । १२ युद्ध । सग्राम । स्कदफला-सज्ञा स्त्री० [स० स्कन्दफला] खजूर । खजुर वृक्ष । १३ सधि। राजीनामा। १४ क्क पक्षी। सफेद चील । स्कदमाता--सज्ञा स्त्री॰ [स० स्कदमातृ] स्कद की माता, दुर्गा । १५ महाभारत के अनुसार एक नाग का नाम । १६ प्रार्या छद स्कदरेश्वर तीर्थ-सज्ञा पु० [म० स्कन्दरेश्वर तीथ] एक प्राचीन तीर्थ का एक भेद । १७ बौद्धो के अनुसार रूप, वेदना, विज्ञान, सज्ञा और सस्कार ये पांचो पदाथ। वौद्ध लोग इन पाँचो स्कधो के का नाम। अतिरिक्त पृथक् आत्मा स्वीकार नहीं करते । १८ दर्शनशास्त्र स्कदविशाख-मज्ञा पुं० [स० स्कन्दविशाख] शिव का एक नाम । के अनुसार शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गध ये पाँच विपय । स्कदपष्ठी--सज्ञा झी० [म० स्कन्दपष्ठी] १ चैत सुदी छठ जो कार्तिकेय १६ किसी वडी डाल से निकली हुई शाखा (को०) । २० अश। के देवसेनापति पद पर अभिपिक्त होने की तिथि मानी विभाग। खड (को०)। २१ जैनो के अनुसार पिंड (को०)। २२ मानवीय ज्ञान की कोई शाखा या विभाग (को०)। बोझा विशेप-वागह पुराण मे लिखा है कि इस दिन जो लोग व्रत रह- ढोनेवाले बैलो के ककुद की ऊँचाई की समता (को०) । कर स्कद की पूजा करते है, उनकी मनस्कामना सिद्ध होती है। स्कधक-सज्ञा पु० [स० स्कन्धक] प्रार्या गीत या खधा नामक छद का २ कातिक या अगहन सुदी छठ । गुहपष्ठी। ३ तत्त्र के अनुसार एक नाम। एक देवी का नाम जो स्क्द की भार्या कही गई है। स्कधचाप-सज्ञा पु० [म० स्कन्धचाप] वहँगी जिसपर कहार वोझा स्कदाशक--सज्ञा पु० [स० स्कन्दाशक] पारा। पारद । ढोते है। विहगिका। विणेप-कहते हैं, शिव जी के वीय से पारे की उत्पत्ति हुई है, स्कधज'---सञ्ज्ञा पुं० [म० स्कन्ध ज] १ सलई । शल्लकी वृक्ष । २ वड । इसी से इसे म्कदाशक या शिवाशक कहते बट वृक्ष। स्कदापस्मार--सज्ञा पु० [स० स्कन्दापस्मार] एक वालग्रह या रोग। स्कधज--वि० स्कध से निकलने या पैदा होनेवाला। विशेप-इस रोग से बालक अचेत हो जाता है और उसके मुंह स्कधतरु--सज्ञा पुं० [स० स्कन्धतरु] नारियल का पेड । नारिकेल वृक्ष । से फेन निकला करता है। चैतन्य होने पर वह पैर पटकता और स्कधदेश-सज्ञा पुं० [स० स्कन्ध देश] १ कधा । मोढा । २ पेड का बार वार जंभाई लेता है। उसके शरीर से खून और पीव की तना या धड । ३ हाथी की गरदन जिसपर महावत वैठता है। सी दुर्गध पाती है। जाती है। प्रासन।