पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१९६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 हिवार ५५०८ हिक्का' हिँवार-सञ्ज्ञा पुं० [ सं० हिमालय] १ हिम । बर्फ । पाला । २ हिकदाg--वि० [प० ] एक या प्रधान (परमात्मा) । उ०--विौं हिमालय पर्वत। सभो डूरि करि अदर विया न पाइ। दादू रता किदा, मन मुहा०—हिंवार पडना = (१) बर्फ गिरना। (२) बहुत सर्दी मोहब्बत लाइ ।-दादू०, पृ० ६५ । पडना । बहुत जाडा होना । हिकमत-सञ्ज्ञा स्री० [अ०] १ विद्या । तन्वज्ञान । उ०--धर्मराय हिवारैल-सञ्ज्ञा पुं० [स० हिमालय] हिमालय पर्वत । उ.--केचित को हिकमत दीन्हां ।-कीर मा०, पृ० ८१८ । २ कला- जाइ हिवारै सीझे। मन की मूठि तहाँ अति रीझे। -सुदर० कौशल । निर्माण की गुद्धि । कोई चीज बनाने या निकालने ग्र०, भा० १, पृ० ६३ । की अक्ल । जैसे--हिामते चीन, हुज्जते बगाल । ३ कार्य हिवालेg-सशा पुं० [स० हिमालय ] दे० 'हिवारै'। उ०--को सिद्ध करने की युक्ति । तदबीर । उपाय । जैसे-उमके हाथ सीझ जाइ हिवाल । इद्रिय अपनी नहि गाल ।-सुदर० से रुपया निकालने की तुम्ही कोई हिकमत मोचो । ग्र०, भा० १, पृ० १४७ । क्रि० प्र०—करना ।-निकालना ।-गाना । हिँसना -क्रि० अ० [अनु० हिनहिन ] दे० 'हीसना' । उ०- ४ चतुराई का ढग । चाल । पालिसी । जैसे,—ऐगे मौके पर हिंसहि तुरग चिकार हाथी । सोभै हक हक मिलि साथी। हिकमत से काम लेना चाहिए । ५ किफायत। ६ हकीम का -हि० क० का०, पृ० २२४ । काम या पेशा । हकीमी। वैद्यक । ७ मल्लाही । (लश०) । हि'. --एक पुरानी विभक्ति जिसका प्रयोग पहले तो सव कारको मे होता था, पर पीछे कर्म और सप्रदाय मे ही ('को' के अर्थ मे) यौ०-हिकमते अमली = यूटनीति । चतुराई । हिकमते इलाही रह गया। जैसे-रामहि प्रेम समेत लखि सखिन्ह समीप ईश्वरेच्छा । बोलाइ । —मानस, ११२५५ । हिकमति-सशा स्त्री० [अ० हिकमत] ३० हिकमत' । उ०- विशेप-पाली मे तृतीया और पचमी की विभक्ति के रूप मे करि सलाम सुरजन तब, वीग खायो कोपि । श्राप (य) भवन 'हि' का व्यवहार मिलता है। पीछे प्राकृतो मे सवध के हिकमति रची, स्वामि धर्म सब लोपि ।--४० रासो, पृ० ११४ । लिये भी विकल्प से अपादान की विभक्ति आने लगी और हिकमती-वि० [अ० हिकमत] १ कार्यसाधन की युक्ति निकालनेवाला' सव कारको का काम कभी कभी सबध की विभक्ति से ही तदवीर सोचनेवाला। उपाय निकालनेवाला । कार्यपटु । २ चलाया जाने लगा । 'रासो' आदि की पुरानी हिदी मे 'ह' चतुर । चालाक । ३ किफायती । रूप मे भी यह विभक्ति मिलती है। अपभ्रश मे 'हो' और 'हे' हिकलाना--क्रि० अ० [हिं०] दे० 'हकलाना' । रूप सवध विभक्ति के मिलते हैं। यह 'हि' या 'ह' विभक्ति सस्कृत के 'भिस्' या 'भ्यस्' से निकली जान पडती है । हिकायत -सञ्ज्ञा स्त्री० [अ०] कथा । कहानी । प्रसग । हि -अव्य० दे० 'ही' । उ०-हरि कर पिचका निरखि तियन के हिकारत-सक्षा स्रो[अ० हकारत] उपेक्षा । अपमान । तिरस्कार । नैना छवि हि ठराई ।--नद० ग्र०, पृ० ३८१ । उ.- सिलिया ने हिकारत के साथ कहा-विरादरी मे क्यो हिप-सज्ञा पुं० [प्रा० स० हृत्, प्रा०, अप० हिअ या सं० हृदय, न लेंगे?-गोदान, पृ० २४२ । प्रा० हिअय, अप० हिन] १ हृदय। उ०-स्रवन नाहि हिक्कल-सज्ञा पुं० [2 ] बौद्ध सन्यासियो या भिक्षुप्रो का दड । पै सब किछु सुना । हिन नाही गुनना सव गुना ।—जायसी हिक्का'---सज्ञा स्त्री० [स०] १ हिचकी । २ वहुत हिचकी आने का ग्र० (गुप्त), पृ० १२५ । २ छाती। वक्ष । हियडा, हिअर@-सज्ञा पुं० [अप० हिन+डा (प्रत्य॰)] दे० 'हिन'। विशेष-वायु का पसलियो और अंतडियो को पीडित करते हुए हिमाल-सञ्ज्ञा पुं॰ [प्रा० अप० हिस] । १ हृदय । २ छाती। ऊपर चढकर गले से झटके से निकलना ही हिक्का या हिचकी है। वैद्यक मे उ०-हिमा थार कुच कचन लाडू |—जायसी (शब्द॰) । वायु और कफ के मेल से पांच प्रकार की हिक्का कही हिमाउ-सज्ञा पुं० [हि० हिना + प्राउ (प्रत्य॰)] दे० 'हिनाव' । गई है-अनजा, यमला, क्षुद्रा, गभीरा और महती । पेट मे उ०-(क) जाँचो जल जाहि कहै अमिय पिप्राउ सो। कासो अफरा, पसलियो मे तनाव, कठ और हृदय का भारी होना, सो न वढत हिग्राउ सो।—तुलसी ग्र०, पृ० ५४६ । मुंह कसला होना हिक्का होने के पूवलक्षण हैं । गरम, वादी, (ख) अस्ति नास्ति को नाउँ। कवरण सु अखरु जितु रहै गरिष्ठ, रखी और वासी चीजें खाना, मुंह मे धूल जाना, हिग्राउ । -प्राण ०, पृ० ११५ । थकावट, मलमूत्र का वेग रोकना हिक्का के कारण कहे गए हैं । हिाव-सबा पुं० [हिं० हिन+प्राव (भाव० प्रत्य॰)] साहस । जिस हिक्का मे रोगी को कप हो, ऊपर की ओर दृष्टि चढ जिगरा । हिम्मत । विशेष दे० 'हियाव'। उ०--भंवर जो जाय, आँख के सामने अंधेरा छा जाय, शरीर दुवला होता मनसा मानसर लीन्ह कॅवलरस जाइ । घुन जो हिसाव न जाय, छीक बहुत अावे और भोजन मे अरुचि हो जाय, वह कै सका झूर काठ तस खाइ।-जायसी (शब्द॰) । असाध्य कही गई है। हिकदा--सज्ञा पुं० [ फा० सिह, सेह (= तीन) + हि० कोडी] तीन ३ रोने या सिसकने का वह शब्द जो रुक रुककर भावे । ४ उलूक कोड़ी कपड़ो का समूह। (धोवी) । नाम का पक्षी । उल्लू (को०)। रोग । कही काहू