पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१५२

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हवा हरेणु'- मानस, ६ ११० । (ख) हति नाय अनाथन्ह पाहि हरे। विपया हरैनी -मञ्ज्ञा स्त्री॰ [हि० हर-हल] दे० 'हरैना' । बन पामर भूलि परे । —मानस, ७।१४ । हरैया -मना पुं० [हि० हरना] हरनेवाला । दूर करनेवाला। उ०- २-क्रि० वि० [हि० हरुए]१ धीरे से। आहिस्ता से। तेजी के माथ दसरत्य के नद है दुख हरैया ।-तुलमी (शब्द॰) । नही। मद मद । उ०-लाज के साज धरेई रहे तव नैनन लै मन हरोना-सशा पु० [हि० हरा + प्रोना] एक प्रकार की अरहर जो ही सो मिलाए। कसी करी अव क्यो निकस री हरेई हरे हिय रायपुर जिले में बहुत होती है। मे हरि आए।-केशव (शब्द०) । २ जो ऊँचा या जोर का हरोल--सज्ञा पु० [तु० हरावल] ३० 'हरावल' उ०-प्रेम है हरोल प्रागे न हो। जो तीव्र न हो (ध्वनि, शब्द आदि) । उ०—दूरि तें आवन सवन के जू भागे छल यूथ सील बल सो भगायो है।- दौरत, देव, गए सुनि के धुनि रोस महा चित चीन्हो । सग की दीन० ग्र०, पृ० १३४ और उठी हँसि के तव हेरि हरे हरि जू हमि दीन्हो।-देव हरौती--सा |--सग्ना स्री० [हि० हरा + अौती (प्रत्य॰)] एक प्रकार की (शब्द॰) । ३ जो कठोर या तीन न हो। हलका । कोमल । छडी। हरी लकडी की छटी। उ०--हाय मे हरौती की पतली (प्राघात, स्पर्श आदि)। सो छडी, आँखो मे सुरमा, मुंह मे पान, मेहदी लगी हुई लाल यौ०--हरे हरे - धीरे धीरे । उ०--रोस दरसाय बाल हरि तन दाढी, जिसकी सफेद जड दिखलाई पड रही थी।--इद्र०, हेरि हेरि फूल की छरी सो खरी मारती हरे हरे ।--(शब्द॰) । पृ०६५। हरेई. -सञ्ज्ञा पुं० [?] घोडो की एक जाति । उ०-हसा हरेई वाजि। हरौल-सज्ञा पुं० [तु हरावल] दे० 'हरावल' । उ०—जुरे दुहन के ती तुरिय तावी साजि ।-ह० रासो, पृ० ३२५ । दृग झमकि रुके न भीने चीर । हलको फौज हरोल ज्यो परत हरेक-दि० [ फा० हर + एक ] प्रत्येक । हरएक । गोल पर भीर ।-बिहारी (शब्द०)। हरेणु'- २--सञ्चा पुं० [ स०] १ मटर। २ बाड जो ग्राम आदि का हर्कत -मशा स्त्री० [अ० हरकत] ३० 'हरकत' । हद बांधने के लिये लगाई जाय । ३ लका का एक नाम (को०)। हर्गिज -अव्य. [फा० हरगिज़] दे० 'हरगिज' । उ०--मिलो जव गांव २-सज्ञा स्त्रो० १ समाननीय स्त्री। कुलस्त्री। २ हरिणी भर से, वात कहना, वात सुनना, मल कर मेरा, न हगिज नाम जो ताम्र वर्ण की हो। ताँवे के रग की मृगी। ३ एक लेना ।-ठडा०, पृ० १८ । सुगधित वस्तु। रेणुका नामक गधद्रव्य (को॰] । हर्ज-सज्ञा पुं० [अ०] १ काम मे रुकावट । बाधा । अडचन । जमे,- हरेणुक--सज्ञा पुं० । म०] मटर । मटर [को॰] । नौकर के न रहने से बडा हर्ज हो रहा है। २ हानि । नुकसान । हरेना -सञ्ज्ञा पुं० [हिं० हरा ] वह विशेष प्रकार का चारा जो जैसे-इनके यहां रहने से आपका क्या हर्ज है। व्यानेवाली गाय को दिया जाता है। क्रि० प्र०--करना।—होना । हरेरा-वि० [हि० हरा + एरा (प्रत्य॰)] दे० 'हरा', 'हरिअर' । हर्जा' -सञ्ज्ञा पु० [फा० हर्जह] तावान । क्षतिपूर्ति । हरजाना [को०] । हरेरी -वि० [हि० हरा] दे० 'हरिअरी' । हर्जा २-यज्ञा पुं० [फा० हर्जह,] व्यथ । अनर्गल । वेहूदा । हरेव-सज्ञा पुं० [ देश० ] १ मगोलो का देश । २ म गोल जाति । हर्जा'-मज्ञा पुं० [अ० हर्ज] दे० 'हज', 'हरज' । उ०--पछि हरेव दीन्हि जो पीठी । सो पुनि फिरा सौह हर्जाना--मज्ञा पु० [फा० हर्जानह ] दे० 'हरजाना' । के दीठी । —जायसी (शब्द०)। हर्तव्य--वि० [म०] हरण करने लायक (को०] । हरेवा--- --सञ्ज्ञा पुं० [हि० हग] हरे रग की एक चिडिया । हरी बुलबुल । हर्ता-सञ्ज्ञा पुं॰ [म० हत। [मचा स्त्री हीं] । १ हरण करनेवाला। उ०- पचै बाग उटे चुटक्के हरेव। मनौ मडिय मौज केकी २ नाश करनेवाला। ३ काटकर अलग करनेवाला। विच्छिन्न परेव ।--पृ० रा०, १२ । १७५ । करनेवाला। ४ तस्कर । चोर (को०)। ५ डकैत । डाकू (को०)। विशेष—इस पक्षी की चोच काली, पैर पीले और लवाई १४ या ६ सूर्य (को०) । ७ वह जो कर लगाए । राजा (को०) । १५ अगुल होती है । यह युक्तप्रात, मध्यप्रदेश और बगाल मे हर्तार -सज्ञा पुं० [सं० हरि हरण करनेवाला । हर्ता । पाई जाती है । यह पेड की जड और रेशो से कटोरे के आकार हतु-सञ्ज्ञा पुं० । स०] १ मरण । मृत्यु । २ गाढ अनुराग । (को०] । का घोसला बनाती और दो अडे देती है। यह बहुत अच्छा वोलती है, इससे इसे 'हरी बुलबुल' भी कहते है। हर्तृ - सज्ञा पुं॰ [स०] दे० 'हर्ता' (को० । हरे @-क्रि० वि० [हि० हरुए ] दे० 'हरे' । हर्द-मक्षा पुं० [सं० हरिद्रा] दे॰ 'हलदी' । --सज्ञा स्त्री॰ [स० हरिद्रा] दे० 'हलदी'। हरैना--सज्ञा पुं० [हि० हर( = हल) ऐना (प्रत्य०) [वि० सी० अल्पा० हरैनी] १ वह टेढी गावदुम लकडी जो हल के लट्टे (हरिस) के -सञ्ज्ञा पुं० [अ० हर्फ] दे० 'हरफ'। एक छोर पर आडे वल मे लगी रहती है और जिसमे लोहे का हर्ब -सज्ञा पुं० [अ०] युद्ध । लडाई। सग्राम [को०] । फाल ठोका रहता है। २ वैलगाडी के सामने की ओर निकली यौ०-हवगाह = युद्धस्थल । लडाई का मैदान । हुई लकडी। हर्वा-सञ्ज्ञा पुं० [अ० हरवह,] दे० 'हरवा' । हर्दी-