पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१३९

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हरद्वान ५४५१ हरवरा हरद्वान--सञ्ज्ञा सं० [ देश० ] एक स्थान का नाम जहाँ की तलवार हरपारेउरी-सच्चा स्त्री० [ स० हरिपर्वरी] दे॰ 'हरफारेवडी' । प्रसिद्ध थी। उ०--लागि सोहाई हरपारेउरी । प्रोनइ रही केरन्ह की घउरी। हरद्वानी-वि० [हिं० हरद्वान + ई ] हरद्वान का बना हुआ। -जायसी ग्र० (गुप्त), पृ० १४३ । उ०—हाथन्ह गहे खडग हरद्वानी । चमकहि सेल वोज़ के हरपुजी --सधा स्त्री० [हि० हर, हल + पूजा ] कार्तिक मे हल का वानी।—जायसी (शब्द०)। पूजन जो किसान करते है। हरद्वार-सन्ना पुं० [स० हरिद्वार ] दे० 'हरिद्वार' । विशेष-किसान लोग इस पूजन मे उत्सव करते और मिठाई आदि बाँटते है। हरनछि, हरनछिछ-वि० [सं० हरिणाक्षी] हरिणाक्षी । मृगननी । उ०-हरि मागहि हरनछिछ, करहि तलपत्त पत्त धर। हरप्रिय -सज्ञा पुं० [स०] करवीर । कनेर । पृ० रा०, २।३०८ । हरफ -सज्ञा पुं० [अ० हरफ, हर्फ] मनुष्य के मुंह से निकलनेवाली ध्वनियो हरनर्तक--सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] एक छद का नाम । के सकेत जिनका व्यवहार लिखने मे होता है । अक्षर । वर्ण । हरना'-क्रि० स० [स० हरण] १ जिसकी वस्तु हो, उसकी इच्छा के उ०-सोहत अलक कपोत पर बढ छवि सिंधु अथाह । मनी विरुद्ध ले लेना । छीनना, लूटना या चुराना । २ दूर करना । पारसी हरफ इक लसत पारसी माह ।-स० सप्तक, पृ० हटाना। न रहने देना। ३ मिटाना । नाश करना । जैसे,- २४६ । २. शब्द । वात (को०) । ३ दोष । बुराई । ऐव (को०) । दुख या पीडा हरना, सकट हरना । उ०--मेरी भव बाधा ४ व्याकरण मे अव्यय । प्रत्यय (को॰) । हरौ राधा नागरि सोइ।-विहारी (शब्द०)। ४ ले जाना। मुहा०-किसी पर हरफ आना = दोष लगना । कसूर लगना। उठाकर ले जाना । वहन करना । ५ अपनी ओर आकर्षित जैसे,—तुम वेफिक्र रहो, तुम पर जरा भी हरफ न आवेगा। करना । खीचना। हरफ उठाना = अक्षर पहचानकर पढ लेना। जैसे,-अव तो मुहा०--मन हरना = मन खीचना । किसी के मन को अपनी ओर वच्चा हरफ उठा लेता है। हरफ पकडना = (१) किसी की आकर्षित करना । मोहित करना । लुभाना। उ०--हरि दिख राय त्रुटि पकडना । गलती पकडना। (२) बोलने मे टोकना। मोहनी मूरति मन हरि लियो हमारो।--सूर । (शब्द० हरफ बैठाना = छापे के अक्षरो को क्रम से रखना । टाइप प्राण हरना = (१) मार डालना । (२) बहुत सताप या जमाना । हरफ बनाना% (१) सुदर अक्षर लिखना । (२) दुख देना । उ०-मिलत एक दारुन दुख देही । विछुरत एक अक्षर लिखने का अभ्यास करना । (३) किसी दस्तावेज मे जाल के लिये फेरफार करना। किसी पर हरफ लाना = दोष प्रान हरि लेही।-तुलसी (शब्द॰) । देना । इलजाम लगाना । लाछित करना । हरना--नि० अ० [हिं० हारना ] १ जुए आदि मे हारना । २ पराजित होना । परास्त होना। ३ थकना । शिथिल होना। हरफगीर-वि० [अ० हर्फ + फा० गीर] १ अक्षर अक्षर का गुण दोष हिम्मत हारना। देखनेवाला । बहुत बारीकी से दोप देखने या पकडनेवाला। २ वाल की खाल निकानेवाला। हरनार--सञ्ज्ञा पुं० [ स० हरिण] दे० 'हिरन' । हरफीरी--सज्ञा स्त्री० [अ० हर्फ+ फा० गीरी] बहुत बारीकी से गुण हरनाकस-सज्ञा पुं० [ स० हिरण्यकशिपु] दे० 'हिरण्यकशिपु' । दोप देखना । बडी सूक्ष्म परीक्षा। वाल की खाल निकालना। उ०-हरनाकस प्रौ कस को गयो दुहुन को राज ।-गिरिधर (शब्द०)। हरफा-सञ्ज्ञा पु० [देश॰] कटा चारा या भूसा रखने का घर जो लकडी के घेरे से बनाया जाता है। हरनाच्छ+--सचा पुं० [स० हिरण्याक्ष ] दे० 'हिरण्याक्ष' । हरनी -सबा स्त्री० [हि० हरिन + ई (प्रत्य॰)] हिरन की मादा । मृगी। हफारेवडी--सज्ञा स्त्री० [सं० हरिपर्वरी] १ कमरख की जाति का एक पेड । लवली। हरनी--सज्ञा स्त्री॰ [ हि० हड + नी (प्रत्य॰)] कपडो मे हड (हर्रा) का रग देने की क्रिया। विशेप-इसमे आंवलो के से छोटे छोटे फल लगते है जो खाने मे कुछ खटमीठे होते है। हरनेत्र --सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ शिव के नेत्र । शकर का नेत्र । २ तीन की सख्या का वाचक शब्द [को०] । २ उक्त पेड का फल जो खाया जाता है। हरनौटा-सज्ञा पु० [हि० हिरन +ौटा (प्रत्य०)] हिरन का बच्चा । हरफारयोरीg--सञ्ज्ञा स्त्री० [म० हरिपर्वरी] दे० 'हरफारेवडी' । छोटा हिरन । उ०-लागी सोहाई हरफारयोरी। उनै रही केरा के घोरी।- जायसी ग्र०, पृ० १३ । हरपरेवरी-सज्ञा स्त्री० [हि० हर, हल + परना ( = पउना) +री (प्रत्य॰)] किसानो की औरतो का एक टोटका जो वे पानी न हरवर -सज्ञा पुं० [अनु॰] दे० 'हड वड', 'हडबडी' । बरसने पर करती हैं । हरबर'-क्रि० वि० हडबडी या उतावली से । हरपा -सज्ञा पु० [देश०] १ सुनारो का तराजू रखने का डिब्बा। हरवरा-वि० [हिं०] उतावला उ०--तहँ युद्ध को भे हरवरे ।- २ सिदूर रखने की डिबिया। सिंधोरा। हिम्मत०, पृ०२। हिं० श० ११-१६ 1