पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१३५

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हेयनील हयनाल-सज्ञा स्त्री॰ [स० हय + हिं० नालघोडे द्वारा खीची जानेवाली सहल है, बिजली गिरा देना |--कविता कौ०, भा० ४, तोप । वह तोप जिसे घोडे खीचते हैं । पृ० ६२० । हयनिर्घोष --सज्ञा पु० [सं०] घोडे के खरो की या उनके हिनहिनाने यौ०--हयादार । हयादारी । वेहया । बेहयाई । को अावाज (को०] । हया'--सज्ञा स्त्री० [स०] १ अश्वगधा । २ वडवा । घोडी [को०] । हयप-मज्ञा पु० [स०] घाडे की देखभाल करनेवाला । साईस [को०)। हयात--सज्ञा स्त्री० [अ०] जिंदगी । जीवन । उ०-लाई हयात पाए, हयपुच्छिका, हयपुच्छी--सज्ञा स्त्री० [स०] मपवन । माषपर्णी (को०] । कजा ले चली चले । अपनी खुशी न पाए न अपनी खुशी चले। हयप्रिय-~मज्ञा पु० [सं०] जौ । यव । --कविता कौ०%D,भा०४, पृ० ४४१ । यौ०-हीन हयात = जिंदगी भर के लिये । किसी के जीवन काल हयप्रिया-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ जगलो खजूर । खजूरी । २ असगध । तक । जैसे,—मुअाफी हीनहयात । हीन हयात मे = जिंदगी मे। अश्वगधा (को०)। जीते जी । जीवनकाल मे। हयमार-सज्ञा पुं॰ [स०] दे० 'हयमारक' [को०] । हयमारक संज्ञा पुं० [सं०] करवीर । कनेर । हयादार--सञ्ज्ञा पुं॰ [अ० हया + फा० दार] वह जिसे हया हो । लज्जा- शील । शर्मदार। हयमारण-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ कनेर । २ अश्वत्थ । पीपल । हयमुख-सचा १० [स०] १ एक देश का नाम जिसके सबध मे प्रसिद्ध हयादारी-सज्ञा स्त्रो० [अ० हया + फा० दारी] हयादार होने का भाव । लज्जाशीलता। है कि वहाँ घोडे के से मुंहवाले आदमी वसते है । २ और्व हयाध्यक्ष-सज्ञा पु० [स०] अश्वशाला का प्रधान अधिकारी। घोडे का ऋपि का क्रोधरूपी तेज जो समुद्र मे स्थित होकर वडवानल प्रधान निरीक्षक (को०] । कहलाता है (रामायण)। ३ महाभारत के अनसार विष्णु का एक रूप (को०)। हयानद-सझा पु० [स० हयानन्द ] मूंग । मुद्ग [को॰] । हयमेध-सद्धा पुं० [स०] अश्वमेध यज्ञ । हयानन--सज्ञा पुं० [सं०] १ विष्णु का एक अवतार । विशेष दे० 'हयग्रीव' । २ वाल्मीकि रामायण के अनुसार हयग्रीव का स्थान। हयवाहन--सञ्ज्ञा पु० [स०] १ कुबेर का एक नाम । २ सूर्य के पुत्र रेवत का एक नाम (को०] । ह्यानना-सज्ञा स्त्री॰ [स०] एक योगिनी का नाम (को०] । यौ०-हयवाहनशकर - रक्तकाचन । लाल कचनार । हयायुर्वेद--सझा पु० [१०] घोडो की चिकित्सा का शास्त्र । शानिहोत्र । हयविद्या---सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] अश्व की शुभता तथा उसके गुणावगुण हयारि--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] करवीर । कनेर । आदि जानने की विद्या किो०] । हयारूढ---सञ्ज्ञा [सं०] घुडमवार । असवार (को०] । यशाला-सञ्ज्ञा खी० [स०] अश्वशाला । घुडसार । अस्तबल । हयारोह-सज्ञा पुं० [सं०] १ घोडे पर चढना । घुडसवारी। २ हयशास्त्र - सज्ञा पु० [म.] अश्वशास्त्र । अश्वविद्या को०] । असवार । घुडसवार [को०] । हयशिक्षा-सच्चा स्त्री॰ [स०] अश्वशास्त्र । हयविद्या [को०] । हयालय-सज्ञा पु० [सं०] अश्वशाला। घुडसाल [को०] । हयशिर-सज्ञा पु० [स० हयशिरस्] १ एक ऋपि का नाम । २ हयाशन--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का धूप का पौधा जो मध्य रामायण मे उल्लिखित एक दिव्यास्त्र का नाम । भारत तथा गया और शाहाबाद के पहाडो मे बहुत होता है। हयशिरा--सञ्ज्ञा पु० [स० हयशिरस्] विष्णु का हयग्रीव रूप [को०] । हयाशना-~-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] सत्लकी का वृक्ष [को॰] । हयशीर्ष--सञ्ज्ञा पुं० [स०] विष्णु का हयग्रीव रूप । ह्यासनी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] एक गधद्रव्य । लोबान की०] हयसग्रहण -सज्ञा पु० [स० हयसङ्गहण] घोडे का नियन्त्रण या हांकने हयास्य-मश्चा पु० [स०] विष्णु [को०] की कला (को०)। हयि--मया पु०, स्त्री० [स०] आकाक्षा । स्पृहा (को०] । यसयान-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'हयसग्रहण' [को०) । यी-सशा स्त्री॰ [स०] घोडी । हयसाला-सज्ञा स्त्री० [० हयशाला] अश्वशाला । घुडसाला । उ०- यी-सशा पुं० [सं० हयिन् ] १ घुडसवार । २ वह जिसके पास राखेउ वांधि सिसुन्ह हयसाला ।-मानस, ६ । २४ । अश्व हो । घोडेवाला (को॰) । हयस्कध--सज्ञा पुं॰ [स० हयस्कन्ध] हयदल । घोडो का समूह [को०] । हयुषा--सज्ञा स्त्री० [सं०] एक पौधा । पुं० दे० 'हपुपा' (को॰] । हय ह्य-अव्य० [स• हा हा] [हाय हाय] दे॰ 'हाय हाय' । उ० हयेष--सशा पुं० [स०] जो । यव [को०] । सोहड सहु भेला किया, तिण वेला तिण वार । नर नारी सहु हर--वि० [स०] १ हरण करनेवाला। ले लेनेवाला। छीनने या विलविलई, हय हय सरजण हार ।--ढोला०, दू०६०७ । लूटनेवाला। जैसे,--धनहर, वस्त्रहर, पश्यतोहर । २ दूर हयाग-सज्ञा पु० [सं० हयाङ्ग] धनु राशि । करनेवाला। मिटानेवाला । न रहने देनेवाला । जैसे,-रोगहर, हया'--सज्ञा स्त्री० [अ०] लज्जा । लाज । शर्म । उ०--हया से सर पापहर । ३. वध करनेवाला । नाश करनेवाला । मारनेवाला। झुका लेना, अदा से मुस्करा देना। हसीनो का भी कितना जैसे,--असुरहर । ४ ले जानेवाला । लानेवाला । पहुँचानेवाला।