पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/११९

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हटाश्लेष - हठकर्म ५४३१ २ दृढ प्रतिज्ञा । अटल सकल्प । दृढतापूर्वक किसी बात का ग्रहण। हठपणि, हठपी-सा स्त्री० [स०] १ मुस्तक मोथा । नागरमोथा उ०--(क) जो हठ राखे धर्म को तेहि राखे करतार । (ख) २ शैवाल । सेवार किो०] । तिरिया तेल, हमीर हठ चढे न दूजी वार । (शब्द॰) । हठयोग--सज्ञा पुं० [सं०] वह योग जिसमे चित्तवनि हात् बाह्य मुहा०--हठ करना = २० 'हठ ठान्ना'। उ०--जो हठ करहु प्रेम विपयो मे हटाकर अतर्मुख की जाती है और जिसमे शरीर म बामा । तो तुम दुग्व, पाउब परिनामा ।--मानस, २।६२। को साधने के लिये बडी कठिन कठिन मद्रानो और आसनो हउ ठानना = दृढ प्रतिज्ञा या अट न सकल्प करना । उ०--ग्रहह प्रादि का विधान है। तान दारुनि हठ टानी । समुझन नहि कछु लाभ न विशेप-नेती, धीती आदि क्रियाएँ इमी योग के अतर्गत हैं। हानी ।-मानम, १ । २५८ । कायन्यूह का भी इसमे विशेप विस्तार किया गया है और शरीर ३ बलात्कार । जबरदस्ती । ४ शत्रु पर पीछे से अाक्रमण । के भीतर कु डन्निी, अनेक प्रकार के चत्र तथा मणिपूर ग्रादि ५ अवश्य होने की क्रिया या भाव । अवश्यभाविता । अनि- स्थान माने गए है। स्वात्माराम की 'हठप्रदीपिका' इसका वार्यता । ६ आकाशमूली। जलभी (को०)। ७ अचितित या प्रधान ग्रथ माना जाता है। मत्स्ये द्रनाथ और गोरखनाथ इस अतकित की प्राप्ति । प्राकरिमक लाभ (को०)। ८ शक्तिमत्ता । योग के मुख्य प्राचार्य हो गए है। गोरखनाथ ने एक पथ भी प्रचडना । बल (को०)। चलाया है जिसके अनुयायी कनफटे कहलाते हैं । पतजलि के हठकर्म---मज्ञा पु० [सं० हठकर्मन् ] हठपूर्वक किया हुमा काम । शक्ति- योग के दाशनिक अश को छोडकर उसकी साधना के अश प्रयोग का कार्य [को०। को लेकर जो विस्तार दिया गया है, वही हठयोग है। हठकामुक-मज्ञा पुं० [स०] वह कामुक जो कामतुष्टि के लिये किसी स्त्री पर बलप्रयोग करे किो॰] । हठयोगी-सज्ञा पु० [• हठयोगिन्] वह साधक जो हठयोग की साधना करता हो। हठजोग-मशा पु० [स० हठयोग ] दे० 'हठयोग' । उ०--एक भक्ति मै जानी और झूठ सव वात । और झूठ सव वात कर हठ जोग हठरी-सशा स्त्री० [हिं० हाट + री (स्वा० प्रत्य॰)] हाट । बाजार । अनारी। ब्रह्म दोप वो लेय कया को राखै जारी। उ०--तुव महलनकी सुरति करन हित हठरी रुचिर बनाई, --पलटू०, भा० १, पृ० २६ । तुव मुख चद्र प्रकाश लख न हित दीपावली सुहाई।-भारतेदु हठता--सज्ञा स्त्री० [म०] हठ करने का भाव । ग्र०, भा॰ २, पृ०८६ । हठतारा ---सज्ञा पुं० [हिं० हजार] दे० 'हडताल' । उ०-नाठो धरम हठवाद-सच्चा पु० [स०] दे० 'हठधर्म' । नाम सुनि मेरो, नरक कियो हठतारो। मो को ठौर नहीं अव हटवादिता-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० हठवादी+ता (प्रत्य) ] हठवादी होने कोऊ अपनो विरद सम्हारो।-सतवाणी०, पृ० ६५ । का भाव । कट्टरता। हठधर्म-सज्ञा पु० [ म० ] अपने मत पर उचित अनुचित या सत्य हठवादी-वि० [स० हठवादिन] १ हिंसक । २ हठवाद करनेवाला। असत्य का विचार छोडकर जमा रहना। दुरागह । कट्टरपन । सकीर्ण विचारोवाला। हठधरमी --सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० हठ + हि० धरमी] दे० 'हठधर्मी' । उ०-- हठविद्या--मज्ञा स्त्री॰ [स०] हठयोग । तौभी उनकी जातीय हठधरमी और विलास लालसा ने ।- प्रेमघन०, भा० २, पृ० २६१ । हठगील-वि० [म०] हठ करनेवाला। हठी। जिद्दी। हठधर्मिता-सहा स्त्री० [हिं० हठधर्मी ] हठधर्मी होने का भाव । सकी- हठमील-वि० [स० हठशील] हो । जिद्दी । उ०—यह न कहिय र्णता । कट्टरपन। मही हठसीलहिं । जो मन लाई न सुन हरिलीलहिं ।- हठधर्मी---सज्ञा स्त्री॰ [स० हठ + धर्म + ई (प्रत्य॰)] १ सत्य असत्य, मानस,७१२८ उचित अनुचित का विचार छोडकर अपनी बात पर जमे हठात्-प्रत्य० [स०] १ हठपू । दुराग्रह के माथ । लोगो के मना रहना । दूसरे की बात जरा भी न मानना । दुरागह । २. अपने करने पर भी। २ जबरदस्ती से । वलात् । ३ मत या सप्रदाय की बात लेकर अडने की त्रिया या प्रवृत्ति । निश्चय । जरुर । विचारो की सकीणता । कट्टरपन । जसे,--यह मुसलमानो हठात्कार--सञ्ज्ञा पु० [स] बलात्कार । जबरदस्ती। की हठधर्मी है कि वे व्यर्थ छेडछाड करते है। हठना@-क्रि० अ० [हिं० हठ + ना (प्रत्य॰)] १ हठ करना। जिद हठादेशी-वि० [स० हठादेशिन्] किसी के प्रति हठ का आदेशक । जो किसी के प्रति वल या शक्ति का प्रयोग करने का आदेश प्राज्ञप्त पकडना । दुराग्रह करना । उ०--(क) वरज्यो नेकु न मानत क्योहूँ सखि ये नैन हठे ।--सूर (शब्द०)। (ख) जो पै तुम या करता हो। भाँति हठहो । --सूर (शब्द०)। (ग) सुन वेमूढ अगूढ दातें हठायात-वि० [स०] अपरिहार्य । अनिवार्य [को०)। करे, हठा है काल तोहि काटि डारे।-सत० दरिया, पृ०७६ । हठाल-वि० [स० हठ + अालु (प्रत्य॰)] हठीला। हठी। उ०- मुहा०-हठकर = बलात् । जवरदस्ती । विसी का कहना न पीथल कान्हड दे पती, गोग हमीर हठाल । साकी कर पहुँती मानकर । उ०-सुनि हठि चला महा अभिमानी।-तुलसी सरग अचलो ऐ उजवाल । -बांको ग्र०, भा० १, पृ० ८२ । (शब्द०)। हठालु-सशा स्त्री॰ [स०] कुभिका। जलकुभी [को०] । २. प्रतिज्ञा करना । दृढ सकल्प करना। हाश्लेष-सच्चा स्त्री॰ [स०] वलपूर्वक या हठात् आलिंगन करना। अवश्य।