पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/११४

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हक्का' हकीमी नुस्खा। हकमौत्सी ५४२६ हकर्मात्मी-मज्ञा पुं० [अ० हक मौस्नी] वह अधिकार जो पितृपरपरा हकीकी-वि० [अ० हकीकी] १ अमली। ठीक । मच्चा । सत्य । २ ने प्राप्न हो। वह हक जो बाप दादो से चला आता हो । खाम अपना । सगा। यात्मीय । जैमे,तकीकी भाई। हकरसी 1-मस स्त्री० [अ० हक+फा० रसी] न्याय पाना। इन्साफ ३ ईश्वरोन्मुख । भगवत्सरधी। जैसे,--इश्क हकीकी । उ०-- पाना । उ०--ताज की वफादारी, ईमान्दारी, मुल्क का इन्तजाम शगल बहतर है इश्कबाजी का। क्या हकीकी व क्या मजाजी मब लोगो की हकरमी, और हरेक आदमी के फायदे के लिये का।- कविता को०, मा० ८, पृ०४१ ४ शब्द का अर्थ । अभिधेय अथ। इन्साफ करना बहुत जररी है।--श्रीनिवास ग्र०, पृ० ३८६ । हकला-वि० [हिं० हकनानारुक रुककर वोलनेवाला। वाग्दोष के हकीगतgf--सज्ञा स्त्री० [अ० हकीकत ] दे० 'हकीकत । उ०- कारण हकलानेवाला। किसी वाक्य को एक साथ न बोल भील गुह्यो बन मिले भाव सू, परम भगत पोरस भरपूर । मकनेगला। मोडण लागो आप दिम मांजो, जिण। कही हकीगत जाझी, हकलाना-कि० अ० [अनु० हक ] स्वर नाली के ठीक काम न करने दल राखम करणाहिव दूर । -रघु० २०, पृ० ११ । या जीभ तेजी मे न चलने के कारण वोलने मे अटकना । रुक हकीम-सज्ञा पु० [अ० ] १ विद्वान् । प्राचार्य । ज्ञानी । जैने,-- रककर बोलना। हकीम अरस्तू । २ यूनानी रीति से चिकित्सा करनेवाला हकलापन-सज्ञा पुं० [हिं० हकला+ पन (प्रत्य०)] १ हकला होने वैद्य। चिकित्मक। की क्रिया या भाव । हकलाने का भाव । २ हकलाने की आदत हकीमी'-सा सी० [अ० हकीम + ई(प्रत्य॰)] १ यूनानी आयुर्वेद । या दोप। यूनानी चिकित्सा शास्त्र । हकीम का पेशा या काम। हकलाटा-मण स्त्री० [हिं हकलाना ] दे॰ 'हकलापन' । वैदगी । जैसे, वे लखनऊ मे हकीमी करते हैं। हकलाहा-वि० [हिं० हकनाना] ने• 'हकला' । हकीमी' -वि० हकीम का । हकीम सबधी। जैमे,-हकीमी इलाज । हकशफा-महा पुं० [अ० हक गुफा ] किमी जमीन को खरीदने का ग्रारो मे ऊपर या अधिक वह हक या स्वत्व जो गांव के (जिममे हकीयत-सज्ञा मी० [अ० हकीयत] १ स्वत्व । अधिकार । २ वह वेची हुई जमीन हिम्सेदारो अथवा पडोसियो को प्राप्त हो। वस्तु या जायदाद जिमपर हक हो । ३ अधिकार होने का विशेप-यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार की जमीन बेच देता है, तो भाव । जैसे,—-तुम अपनी हकीयत सावित करो। जिमे इस प्रकार का स्वत्व प्राप्त होता है, वह अदालत के द्वारा हकीर-वि० [अ० हकीर] १ जिसका कुछ महत्व न हो । बहुत छोटा । उतना ही या जितना अदालत ठहरा दे, अथवा खरीदार ने तुच्छ । नाचीज। उ०—क्या बात कहते हो पीराने पीर । मुजे जितना दाम देकर खरीद की हो उतना दाम देकर वह जमीन ले क्या जो बूजे हो तुमने हकीर ।-दक्खिनी०, पृ० २३४ । २ सकता है। उपेक्षा के योग्य । उपेक्षणीय । उ०—मैं इस हकीर हज्जाम के हकार- सज्ञा पुं० [म.] ह अक्षर या वर्ण । मुंह से निकले शब्दो की सचाई तनलीम करता हूँ।-पीतल०, हकारत-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० हकारत] अपमान। तिरस्कार । तुच्छता [को०] । पृ०३६०। मुहा०—हकारत की निगाह के देख ना = अोछी या अपमानयुक्त हको हक्क-सज्ञा पु० [प्रा० हक्क, हक अथवा अनुध्व०] जोर से बोलने दृष्टि से ताकना। की ध्वनि । हाँक । उ०--हकोहक्क वाजी गजे मेघनद्द । जगे हकारना' - कि० स० [देश०] १ पाल तानना या खडा करना । २ झडा लोइलोय कुसद्दे कुमद्द । --पृ० रा०, १२।६३ । या निशान उठाना । (लश्करी) । हकूक-सञ्ज्ञा पुं० [अ० हकूब] 'क' का बहुवचन । कई प्रकार के स्वत्व हकारना'-कि० म० [म. आकारण] बुलाना । पुकारना । उ० -(क) या अधिकार । राजह मूर हकार लिय |--दिय सादर सनमान। वीर विरद हकूमत:--सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'हुकूमत' । वरदाय प्रति, लगे बत्त पुछान पृ० रा०, ६।१४७ । (ख) विर- हक्क'-सज्ञा पुं० [सं० अनु०] हाथी को बताने का शब्द । मित्र हघि बोध करि चर कह दीन हकार । पगुर नृप नहिं हक्क'-तज्ञा पु० [अ० हक्क] दे॰ हक' । उ०--हक्का वेली हक्क है जग करि अमिय ताप अमवार । -प० रामो, पृ.१३३ । वे हक्का वे हक्क । हरिया एक हक्क विन मव दिन जाहि हकीकत--सज्ञा को [प्र. हकीकत] १ तत्त्व । सचाई । अमलियत । अनहक्क ।-राम० धर्म०, पृ० ६६ । मत्यता । २ मर्यादा । विमान । हमियत (को०)। ३ तथ्य । हक्क-सज्ञा पु० [अ०] खुरचना। छीलना । काटना । तराशना [को०] । ठीक बात। असल प्रसन बात। ४ ठीक ठीक वृत्तात । असल हक्कना--क्रि० म० [प्रा० हक्क, हिं० हॉक] चिल्लाना। हांक देना। हाल । सत्य वृत्त । जैसे-उमकी हकीकत यो है। उ०--शवे उ०-घर मध्य धरै घर हक्क खल । -ह. रासो, पृ० ७८ । फुरकत मे रो रोकर सहर की। हकीकत क्या कहूँ मैं रात हक्क हलाल-सज्ञा पुं० [अ० हक्क हलाल] विहित या जायज स्वत्व। भर की। -कविता कौ०, भा०४, पृ० २६ । उचित अधिकार । १०-हक्क हलाल आप ते पावै, लेना और मुहा०-हकीकत खुलना = अमन बात का पता लग जाना । ठीक हराम।-पलटू०, भा० ३, पृ० ६१ । ठीक बान मालूम हो जाना । हकीकत मे = वास्तव मे। सचमुच । हक्का'--सज्ञा पुं० [अ० हवा] वह नोट या पुरजा जो कोई गल्ले हकीक्तन-प्रव्य० [अ० हकीयतन्] यथार्थत । वास्तव मे । वाकई । का व्यापारी किमी प्रमामी के लगान की जमानत के रूप मे सचमुच (को। जमीदार को देता है। -