पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१०५

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स्वोत्य ५४१७ हंडर स्वोत्थ-वि० [स०] स्वय उद्भूत । स्वाभाविक [को०' । स्वोत्थित-वि० [सं०] स्वय उठा हुआ । स्वय उत्पन्न (को०] । स्वोदय-सधा पुं० किसी निश्चित स्थान पर नक्षत्र या आकाशीय पिंड का उदय होना [को०)। स्वोदरपूरक-वि० [म०] अपना ही पेट भरनेवाला । अपने ही खाने की चिंता करनेवाला। स्वोदरपूरण-मज्ञा पुं० [सं०] अपना ही उदर या पेट भरना । उदरभर । अघाकर पाना (को०] । म्वोपज्ञ-वि० [स०] स्वय निर्मित । स्वय रचित कि०) । स्वोपधि-मज्ञा पुं० [सं०] १ आत्मनिर्भरता। २ निश्चित तारा । अचल ग्रह [को०)। स्वोपार्जित-वि० [सं०] अपना उपार्जन किया हुया । अपना कमाया हुअा । जैसे,--उनकी मागे मपत्ति म्वोपार्जित है। स्वोरस-मज्ञा पुं० [स०] १ दे० 'स्वरस' । २ तुप । छिलका । भूसी (को०)। ३ अपना वक्षस्थल (को०) । स्वोवशीय-सज्ञा पुं० [सं०] विशेपत भावी जीवन सवधी आनद, सुख या समृद्धि [को०] । ह ह-सस्कृत या हिंदी वर्णमाला का तैतीसवाँ व्यजन जो उच्चारण क्रि० प्र०-करना। -मचना । - होना। विभाग के अनुसार ऊष्म वर्ण कहलाता है तथा इसका उच्चारण २ शोरगुल । कलकल । हल्ला। स्थान कठ है। गोरी- सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक बहुत उडा पेड जो दार्जिलिंग के पहाडो ह-क्रि० वि० [स० हम्] दे० 'हम्' । मे होता है। हक-सज्ञा स्त्री॰ [देश० हक्क, हिं० हाँक] १ हाँक । पुकार । विशप-इस वृक्ष की लकडी बहुत मजबूत होती है और मेज, २ बढावा । ललकार। उ०- सकत लक असक बक हकनि कुरसी, आलमारी आदि सजावट के सामान बनाने के काम मे हुडकारत ।-पदमाकर ग्र०, पृ० १० । आती है। पहाडी लोग इसका फल भी खाते है । हकना-क्रि० अ० [हिं० हक + ना] चिल्लाना। हांक देना । हजा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०हजा] चेटी। सेविका [को०] उ.--बर तीर मार परे मुड हक ।--प० रासो पृ० ४५। हजा'-सज्ञा पुं० [हिं० दे० 'प्रेमी' । उ०-पेच सुरधी पाघरा, हकना-क्रि० स० वढावा देना । ललकारना। उ०—(क) हकत टॉके मतधर ढाल । काढी चढ पाछी कहूँ, हजा भीपण हाल । भयउ निज दल सकल ह करि भटन की पिट्ठि पै । (ख) नृप -बाँकी० ग्र०, भा० २, पृ०८। मनि अनूप गिरि भूप जव निज दल बल हकत भयउ।--पद्माकर हजि-सज्ञा पुं० [सं० हज] छोक । ग्र०, पृ० ११॥ हजिका -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ हञ्जिका ] १ भाी नामक पौधा । भारगी। हका- सज्ञा स्त्री॰ [हिं० हांक] ललकार । दपट । उ०-सका दै दसानन २ चेटी। सेविका (को०] । को हका दै सुबका वीर, डका दै विजय को कपि कूदि परयो हझिसञ्चा पु० [सं० हस ] दे० 'हस' । उ०-डीभू लक मरालि लका मे ।--पद्माकर (शब्द०)। गय पिकसर एही वाणि । ढोला एही मारुई, जेह हझि निवारिण। क्रि० प्र०-देना। -मारना। -ढोला०, दू० ४६० । हकार'--सज्ञा पुं० [सं० अहवार] दे० 'अहकार' । उ०-(क) खग हटर-सशा पुं० [अ० हट ( = आखेट, शिकार) या हटर लबी चाबुक । सोजन कहें तू परा पीछे अगम अपार । विन परिचय ते जानहू, झूठा है हकार । --कबीर वी० (शिशु०), पृ० २०६ । (ख) गुरु के चरनन मे धरो, चित बुधि मन हकार ।-सतवानी०, क्रि० प्र०-जमाना ।-मारना। लगाना। भा० १, पृ० १४२ । हड-सज्ञा पुं० [सं० भाण्ड, प्रा० हड, हिं० हडा] हडा। मिट्टी का हकार'-सज्ञा पुं॰ [सं० हुङ्कार] वीरो का दर्पनाद । ललकार । दपट । घडा बरतन । उ०--ग्रह्माड हट चढाइया, मानो रै अन्न । उ०-हकार हक्क कल कूह मचि जय सवद मच्चिय धनह । कोई गुरु कृपा त ऊबरं, दादू साधू जन्न । --दादू० बानी, पृ० रा०, पृ०३८१॥ पृ० २६२ । (अथवा प्रा० हिंडन) हकारना-पि०अ० [हिं० हुकार] हुकार शब्द करना । वीरनाद करना । हडना'--किअ० [सं० अभ्यटन, प्रा० अहडन, हिडन अथवा भडन (= नटखटी)] १ घूमना । फिरना । जैसे,--काशी हडे, प्रयाग हकारी-वि० [सं० ग्रहवारिन्] दर्पयुक्त । घमडी । अहकारी। मुडे। २ व्यर्थ इधर उधर फिरना। आवारा घूमना। ३ (वस्त्र आदि का) व्यवहार मे आना। पहनना या प्रोढा जाना। हगाम-सहा पुं० [क] १ काल । समय । २ ऋतु । मौसिम (को०] । हगामा-सज्ञा पुं० [फा० हगामह] १ उपद्रव । हलचल । दगा । वलवा। हडना-क्रि० स० इधर उधर हूँढना । छानवीन करना। खोजना। मारपीट । लड़ाई झगडा। हडर--संज्ञा पुं० [हिं०] ३० 'हडरवेट' । कोडा। दपटना।