- 1 सखुनचीनी ४६१३ संगण सखुनचोनो -पया स्त्री॰ [फा० सुखनचीनी] सखुनवीन का भाव । सख्तजा = (1) कठिन परिश्रमी। (२) निलज्जता का जीवन चुगुलखोरी । चवाव । वितानेवाला । (३) सख्लमीर । सस्तजानी = वेहया जीवन । सखुनतकिया-मझा पु० [फा० सुखनतकिया] वह शब्द या वाक्याश सरनदिल = निर्दय या बेरहम । सस्नदिली = कठोरहृदयता। जो कुछ लोगो की जबान पर रोमा चढ जाता है कि वातचीत मरनवाजू = प्रत्यन परिश्रमी। सख्तमिजाज = कडे मिजाज- करने मे प्राय मुंह से निकला करता है । तकियाकलाम । वाल।। सस्तमीर = जिम के प्रारण कठिनता से निकले । सख्त- विशेष-बहुत से लोग ऐसे होते है जो बातचीत करने मे बार बार मुश्किल = (१) मारी कठिनाई। गहरी बाधा । (२) अत्यत 'जो है सो', क्या नाम', 'समझ लीजिए कि' आदि कहा करते कठिन । सस्नलगाम = मुंहजोर घोटा। है । ऐसे ही शब्दो या वाक्याशो को सखुनतकिया कहते है । सख्तो-सज्ञा स्त्री० [फा० सस्ती] १ सस्त होने का भाव । कठोरता । सखुनदा-सञ्ज्ञा पुं० [फा० सुखनदाँ] १ वह जो सखुन या काव्य कडाई । २ वेहयाई । निर्लज्जता। ३ कठिनाई। निर्दयता । अच्छी तरह समभता हो। काव्य का रसिक । २ वह जो ५ तेजी । तीखापन । ६ दृढता। ७ तगी (को०] । बातचीत का मर्म अच्छी तरह समझता है। यौ०-सख्तीकश = कठिनाइयाँ झेलनेवाला । सखुनदानो-सज्ञा श्री० [फा० सुखनदानी] १ बातचीत को समझ- मुहा० - सस्ती उठाना = (१) जुल्म सहना । (२) कठिनाइयाँ दारी। २ काव्यमर्मज्ञता । काव्यरसिकता। झेलना । सस्नी में पेश आना = कठोरता का व्यवहार करना । सखुनपरवर-सज्ञा पु० [फा० सुखनपरवर] १ वह जो अपनी कही सख्य-मधा पुं० [स०] १ सखा का भाव । सखत्व । सखापन । हुई बात का सदा पालन करता हो। जवान या वात का २ मित्रता । दोस्ती। ३ वष्णव मतानुसार ईश्वर के प्रति वह धनी । २ वह जो अपनी कही हुई अनुचित या गलत वात का भाव जिसमे ईश्वरावतारको भक्त अपना सखा मानता है। भी बरावर समर्थन करता हो । हठी। जिद्दी जैसे,-महात्मा सूरदास का श्रीकृष्ण के प्रति सरय भाव था। सखुनफहम -वि० [फा० सुखनफह्म] काव्यमर्मज्ञ । सहृदय । स०-हम ४ दोस्त । मिन्न मो०)। ५ समानता । वरावरी (को०)। सखुनफहम है गालिब के तरफदार नही ।-कविता को०, यौ०-सख्यमग सख्यविसर्जन = मित्रता टूट ना . मैत्रीभग । दोस्ती भा०४, पृ० ४५४ । खत्म होना। सखुनवर -समा पुं० [फा० सुखनवर) कवि। शायर । उ०-देख इस सख्यता-सच्चा श्री० [स० सख्यत+ता (प्रत्य॰)] दे० 'सख्य' । तरह से कहते है सखुनवर सेहरा ।-कविता कौ० भा०४, सगध'-वि० [म० सगन्ध] १ जिसमे गव हो । गधयुक्त । महकदार । पृ०४५५ । २ जिसे अभिमान हो। अभिमानी। ३ सबद्ध । सबधी। सखुनशनास-सञ्ज्ञा पुं० [फा० सुखनशनास। १ वह जो सखुन या काव्य भलीभाँति समझता हो। काव्य का मर्मज्ञ । २ वह जो बातचीत का मर्म बहुत अच्छी तरह समझता हो । सगधा-सञ्ज्ञा पुं० जातिवधु । ज्ञातिसबधी। सगवार-पञ्चा स्त्री० [म० मगन्धा] एक प्रकार का चावल | सुगध- सखुनसज- पज्ञा पुं॰ [फा० सुखनसज १ वह जो वान समझता हो । शालि । वाममतो चावल । २ वह जो काव्य समझता हो । सखुनसजो -मञ्चा स्त्री० [फा० सुखनसजो] सब्रुनसज का भाव । सगधा-वि० दे० 'सगा' । सगवी' - ० पुं० [स० मगन्धिन्। जिसमे गव हो । महकदार । सखुनसाज-पचा पु० [फा० सुखनसाज]। वह जो सखुन कहता हो । काव्य रचना करनेवाला। कवि। शायर । २ वह जो सदा सगधी-वि० दे० 'सगा' । झूठी बाते गढता हो। अपने मन से झूठी बाते बनाकर सग'--पज्ञा पुं॰ [फा०] कुक्कर । कुत्ता । श्वान । कहनेवाला। यौ०-सगजा = (१) नालचो । लोभी । (२) बेरहम । सगजादा = सखुनसाजो-मज्ञा पु० [फा० सुखनमाजो] १ सखुनसाज का भाव कुत्ते की औलाद (गाली) । सगबच्चा। पिल्ला। सगवान = या काम । २ कवि होने का भाव या काम । ३ झूठी वाते कुत्ते की देखरेख करनेवाला। सगवानी = कुत्ते की देखरेख । गढने का गुण या भाव। सगसार = कुत्तं को तरह अपवित्र और निकृष्ट । सखोल-पज्ञा पुं० [स०] राजतरगिणी के अनुसार एक प्राचीन नगर सगर-वि० [स० स्वक् अथवा 'सगर्भ' (वर्णलोप)] सगा। (समस्त पदो मे प्रयुक्त) जैसे, सगपन । सख्त-वि० [अ० सख्न] १ कठोर । कडा । जो मुलायम न हो । २ सग-सज्ञा पुं० [म० शाक, हिं० साग] शाक । माग । (समस्त पदो मजबूत । दृढ । ३ अत्यत | बहुत ज्यादा । जैसे,--जान सख्न मे प्रयुक्त) जैसे, मगपहिता। मुश्किल मे आ रडी है । ४ तीव्र । तेज। प्रचड । ५ निर्दय । सगजुबान-पज्ञा ० [फा०] वह घोडा जिसको जीभ कुत्ते के समान बेरहम । ६ वहुत बडा । विशाल [को०] । लवी और पतली हो। ऐसा घोडा प्राय ऐबी समभा जाता है। यो०-सख्नकमान = (१) योद्धा । पहलवान । (२) ताकतवर। सगड़ो-सवा स्त्री० [स० शफटी, शकटिका, हिं० राग्गड] छोटा सग्गड । (३) धनुर्धर । सस्तकलाम = कटुभापी । सख्तकलामी सगण'-सधा पुं० [सं०] १ छद शास्त्र मे एक गण जिसमें दो लए कटु या दुर्वचन कहना। सख्नगीर = कडी सजा देनेवाला । और एक गुरु अक्षर होते हैं। इस गरा का प्रयोग छद वे सस्नगीरी=सनगोर का काम। सन्नजवान = कटुभापी। आदि मे अशुभ है । इसका रूप ॥ऽ है । २ शिव का एक नाम । सबधित (को०)। 1 का नाम ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/९५
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