पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/९०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

संकेत ४६०६ सकर्मक क्रिया सकत पु--क्रि० वि० [स० शक्ति] जहाँ तक हो सके । भरमक । सकर -वि० [सं०] १ हस्तयुक्त । २ किरण युक्त । ३ जिसके उ०-का तोहिं जीव मरावी सकन आा के दोम । जो नहिं ऊपर कर लगा हो । ४ सूडबाला (हायो) को०] । वुझै समुदजल सो वुभाड कित प्रोस । -जायनो (शब्द०)। सकर - Tठा पु० [अ० मकर] दोजख । नरक ०] । सकता'-सज्ञा स्त्री॰ [म० शकिरा] १ शक्नि। ताकत । २ मामर्थ्य । सकर-पला श्री. [फा० शकर तुन० म० शर्करा प्रा० नाकारा, अप० उ०-मिट्टी के बासन को इतनी सकता कहाँ जो अपने सकर 'जइ मकर सय बट थिय'--पुराने हिंदी शकरा । चीनी । खांड। कुम्हार के करतब कुछ ताड सके । सत्र है जो बना हो मो अपने बनानेवाले को क्या सराहे।-इशाअल्लाह वाँ (शन्द०)। सकरकद-मज्ञा पुं० [फा० शकरकद] दे० 'शकरकद'। सकता'-पज्ञा पुं० [अ० सकतह] १ एक प्रकार का मानमिक रोग सकरकदी-पशा स्त्री० [हिं०] 7 'शकरकद' । जिसमे रोगो वेहोश हो जाता है। बेहोशो को बीमारी । २ सकरकन-पज्ञा पु० [हि शकरकद] दे० 'शकरकद' । विराम । यति। सकरखडो-पशा प्री० [फा० शकर +हिं० राड+ई (प्रत्त०) मुहा०-सकता पडना - छद मे यति मग दोप होना। मकते का तुल० सं० शर्कराखण्ड] लाल और विना माफ को हुई चोनो। अालम = विस्मय से मुग्ध होने की स्थिति । स्तब्ध या ठक सांड । कार। होना । सकते की हालत = भय अाश्चर्य आदि से स्तब्ध या सकरणक-वि० [स०] जो शरीर के किसो अवयव द्वारा सवहन किया नि मज्ञ होने की स्थिति । बेहोशी को सो स्थिति । उ०-ौर गया।को०) । हॅमो का एक ऐसा ठहाका सुन पडा कि जिससे सबके सब । मकरना-क्रि० अ० [स० स्वोकरण १ मकारा जाना । स्वीकृत या सकते को हालत मे हो गए, मानो सबके होश हवास गायब हो अगीकृत होना । मजूर होना । जैप,-दो नकरना, दाम गए हो, केवल शरीर वहाँ वठा हो।-पोतल०, भा॰ २, मकरना । २ कबूला जाना। माना जाना। पृ०६५। सयो० क्रि०--जाना। सकरपाला-- पसा पुं० [फा० शकरसाग] १ करपारा नाम को मिठाई। सकती'-सञ्ज्ञा श्री० [सं० शक्ति] १ शक्ति । वन । ताकत। २ वि० ० 'करपाला'। २ एक प्रकार का कागुनो नो । ३ शक्ति नामक अस्त्र । ३ दे० 'शक्ति' -८-१३ । उ०--स्यो सकती दोउ मुप जीवत ।-रामानद, पृ० १२ । कपडे पर को एक प्रकार को मिलाई जो शकरसार को प्राकृति को होतो है। दे० 'शकरपारा' । सकतोg२-पक्षा सी० [फा० सख्ती] कडाई। जोर जबरदस्ती। सकरा-व० [स० सड़कोर्ण, हिं० संकरा दे० 'सेकरा' । उ०-कवि किंवित् औसर जो अकती मकती नहो हाँ पर सकरिया- स्त्री० [फा० शकर+हिं० इया] लाल शकरकद । कीजिए जू। हम तो अपनो वर पूजतो है सपने नहिं पोपर रतालू । पूजिए जू ।-कविता को०, भा० १, पृ० ४०३ । सकरु ड-- या पृ० [गुज०] सकुरुड या माड नाम का वृक्ष । सकन-सञ्ज्ञा पुं० [टेश०] लता कस्तूरो । मुरक दाना । विशेष--इम वृक्ष को पत्तियो प्रादि का व्यवहार प्रोधि के रूप सकना-क्रि० अ० [स० शक् या शक्य] कोई काम करने मे ममर्थ मे होता है। वैद्यक के अनुसार यह कवार, गचिकर, दीपन होता। करने योग्य होना । जैसे,—खा सकना, चल मकना, और वातनाशक माना जाता है। कह सकना। सकरुए--वि० [स०] १ जिसे करुणा हो। दयागोल । २ करुणा से विशेष-इस क्रिया का व्यवहार सदा किसी दूसरी क्रिया के माथ भरा हुया । करणायुक्त । करुणाई। सयोज्य क्रिया के रूप में ही होता है, अलग नहीं होता। परतु सकरुन--वि० [सं० नकरुण] १ नकरण । दयाशोल। २ करुणा ने वगाल मे कुछ लोग भूल से, या बंगला के प्रभाववश, कभी भरा हुग्रा । करुणाई । उ०--सकरुन बचन सुनत नगवाना।- कभी अकेले भी इस त्रिया का व्यवहार कर बैठते हैं। जैसे, मानस, ६०६६। हमसे नही सकेगा। सकएँ' '--पञ्चा पु० [म०] वह जो सुनता या मुन सकता हो । सकए। ---वि० [वि॰ स्त्री० सकर्णा, मकणा] १ कानवाला । जिसे । सकपक-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [अनु॰] १ हिचक । २ चकपकाहट (को० । कान हो। सकपकाना-क्रि० अ० [अनु० सकपक] १ चक्रपकाना। आश्चर्ययुक्त सकएक--पचा पु० [स०] एक प्राचीन ऋषि का नाम । होना। २ हिचकना। आगापीछा करना। ३ लज्जित सकए ग्रावृत--वि० [स०] जो कर्ण तक ढंका हुअा हो को०] । होना । शरमाना । ४ प्रेम, लज्जा या शका के कारण उदभूत सकर्तृक--व० [सं०] १ कर्ता से युक्त । २ जिनक पास सावन हो । एक प्रकार की चेष्टा । उ०-प्रथम समागम मे एहो कवि उपकरणवाला को०] । रघुनाय कहा कहौ रावरो सो एतनी सकाई है। मिलिवे को सकर्मक--वि० [स०] १ काम वाला । जिसके पास कार्य हो । २ कर्म चरचा सुनत ही सकपकाई स्वेद भरै तन परै मुखिया पियराई कारक से युक्त । जैसे, सकर्मक किया । है।-रघुनाथ (शब्द०)। ५ हिलना । डोनना । लहराना । सकर्मक क्रिया--जी० [१०] व्याकरण न दो प्रकार को क्रियायो मे उ०-सकपकाहिं विप भरे पसारे। लहरि भरे लहकति प्रति से एक । वह क्रिया जिसका कार्य उसके कर्म पर समाप्त हा । कारे ।-जायसी (शब्द०)। जैसे,-'खाना' । खाने का कार्य उस वस्तु पर समाप्त होता