पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/८०

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सम्यान सस्कृत और विद्वानो तथा शिष्यो की परंपरा द्वारा अपने शुद्ध रूप मे व्यवहत तथा प्रयुक्त होती चली आ रही है। आज भी उसमे साहित्य रचा जा रहा है और पत्र-पत्रिकाएँ आदि निकलती है बोलचाल की भाषाएँ पाली, प्राकृत, अपभ्रश आदि प्राकृतिक कहलाई और यह सस्कार की हुई प्राचीन भाषा सस्कृत या अमरभाषा कहलाई। सस्कृत--सञ्ज्ञा पु० १ व्याकरण के नियमो द्वारा व्युत्पन्न शब्द । २ द्विजाति का वह व्यक्ति जिसका सस्कार हा गया हो। ३ विद्वान् पुरुप । ४ धार्मिक परपरा । ५ बलि । पाहुति को०)। सस्कृति-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०1१ शुद्धि। सफाई । २ सस्कार । सुधार । परिष्कार । ३ मजावट । पाराइश । ४ रहन सहन आदि की रूढि। भीतर वाहर से सस्कार की गई-मभ्यता । शाइस्तगी। ५ पूर्ण करना । पूरा करना (को०)। ६ निणय । निश्चयन (को०)। ७ उद्योग । चेष्टा (को०)। ८ २८ वर्ण के वृत्तो की सज्ञा । अग्रेजी 'कल्चर' शब्द के अनुवाद रूप में प्रयुक्त शब्द । सस्क्रिया-सहा त्री० [स०] १ सस्कार । सस्कृति । २ शुद्ध करना । मन आदि से पवित्र करना (को०)। ३ प्रत्येष्टि (को०)। ४ तैयार करना (को०)। सस्खलन-सज्ञा पु० [म०] [वि० सस्खलित] १ च्युत होना । गिरना । २ भूल करना । चकना। सस्खलित'-वि० [सं०] १ च्युत । गिरा हुआ। २ भूला हुआ। चूका हुआ। संस्खलित-सञ्ज्ञा पु० भूल चूक सस्तभ-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० सस्तम्भ] १ गति का सहसा रोव । एकवारगी रुकावट । २ चेष्टा का अभाव । निश्चेष्टता। ठक हो जाना। हाथ पैर रुक जाना। ३ शरीर की गति का मारा जाना। लकवा। ४ दृढता। धीरता। ५ हठ। टेक । जिद। ६ आधार । टेक । सहारा। सस्तभन-सज्ञा पुं० [स० सस्तम्भन] [वि० सस्तभित, सस्तब्ध] १ गति का सहसा रुकना या रोकना। एकवारगी ठहर जाना। २ निश्चेप्ट करना या होना। ठक कर देना या हो जाना। ३ बद करना। ४ सहारा देना। टेकना। ५ रोकनेवाली वस्तु । ६ मकुचित करना । समेट लेना (को०)। सस्तभनीय-वि० [स० सस्तम्भनीय] १ दृढ करने योग्य । २ रोके जाने योग्य । ३ सहारा देने योग्य (को०)। सस्तभित-वि० [सं० सस्तम्भित) १ जिसे सहारा दिया गया हो। २ स्तब्ध । निश्चेप्ट । ३ लकवा रोग से ग्रस्त [को०] । सस्तभी-[स० सस्तम्भिन्] सस्तभ करने या रोकनेवाला । निवारण करनेवाला (को०)। सस्तब्ध-वि० [स०] १ एकबारगी रुका या ठहरा हुआ। २ निश्चेप्ट । ठक । भोचक्का। ३ सहारा दिया हुआ। जिसे टेक या महारा दिया हो। स-तर'--सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ तह । पर्त । पहल । २ घास फूस से बनाया हुआ आच्छादन । ३ घास फूस फैलाकर बनाया हुआ बिस्तर । तृण शय्या। ४ विस्तर । शय्या। ५ विखेरना। विकीर्णन (को॰) । विकीर्ण पुष्पराशि। 1 फनाए हुए फूनो का ममूह । ७ यन या यज आदि का प्रायोजन (का०) । ८ विधि, व्यवस्था या पाचागदि का प्रचार (को०)। सस्तर'--वि० छितराया हुया । विकीर्ण क्यिा हुआ । मस्तरए--सा पुं० [म०] १ विछाना। फैनाना। पमारना। २ छिनराना । बिग्रेग्ना । ३ तह चढाना । परत फैलाना।। विस्तर । जय्या। सस्तव--मज्ञा पुं० [सं०] १ प्रणमा। स्तुनि । तारीफ । २ जित । कथन । उल्लेउ । ३ परिचय । जान पहचान । मेल जोन । सम्तवन--सञ्ज्ञा पु० [म०] [वि० मस्नवनीप, मनन J१ म्नुति करना। प्रजमा करना। २ यण गाना । कौति बजानना। सम्तव प्रीति-मज्ञा स्त्री० [म०] मस्तव अर्थात् परिचय के कारण होनेवाली प्रीति [को०] । सस्तवस्थिर-वि० [म.] परिचय वा घनिष्टता से दृट को।। सस्तवान'--वि० स०] १ यश गान करनेवाला। स्तुति करनेवाना । २ वाग्मो। वाग्पटु को०] । सस्तवान-सग पु०१ प्रमन्नता । पानद । २ गायक । गानेवाला। ३ उद्गाता [को०)। सस्तार-पज्ञा पुं०1 सतह । पहन । २ विम्मर। शय्या । ३ एक यज्ञ का नाम । ४ वितति । विम्नार । वृद्धि (को॰) । सस्तारक-सज्ञा पुं० [म.] विस्तर । गय्या (को०] । सस्तार पक्ति-मझा स्त्री॰ [म० सम्नार पडिक्त एक वर्णवृत्ति जिममे १२+++१२ के योग के ४० वर्ण होते है किो०] । सताव-सज्ञा पु० [म०] १ यज्ञ मे स्तुति करनेवाले वाहाणो की अवस्थान भूमि । २ सुति । प्रशमा। ३ परिचय। जान पहचान । ४ समिलित स्तवन या स्तुति (को०)। सस्तीर्ण-वि० [स०] फैलाया हुग्रा । पमारा हुआ। विछाया हुआ। २ बिखेरा हुमा । फैलाया हुया । छितगया हुअा। सस्तुत-वि० [मं०] १ जिमको खूब स्तुति या प्रशसा को गई हो । २ परिचित । ज्ञात। ३ एक साथ गिना हुअा। गिनती में शामिल किया हुआ। ४ ममान । तुल्य । सामजस्य युक्त। ५ अभीप्ट । इच्छित (को०)। ६ जिसको एक साथ या समिलित होकर स्तुति की गई हो (को०)। सस्तुतक-वि० [म०] भद्र । शिष्ट । मभ्य [को०] । सस्तुति-पञ्चा सी० [स०] १ सम्यक् म्नुति। खूब प्रशसा। गहरी तारीफ । २ भावाभिव्यजन को एक पालकारिक पद्धति या शैली (को०)। सस्तूप-सचा पं० [स०] घूर । कूडे कचरे का ढेर [को०] । सस्तृत-वि० [स०] फैलाया या विछाया हुआ। आच्छादित (को॰] । सस्त्यान'--वि० [स०] दृढ । जमा हुआ। सस्त्यान-सक्षा ली. वह जो स्थिर या दृढ हो । जैसे,-गर्भस्थ भ्रूण या गर्भ 'को०] । 1