सवनन ४८८४ संवर्द्धन, सवर्धन' २ मन्न, ओपधि आदि से किमी को वश मे करने की क्रिया । मवर्त-मज्ञा पुं॰ [स०] १ जुटना । भिडना। (शत्र मे) । २ लपेटने दे० 'सवदन'। की क्रिया भाव । लपेट । ३ फेरा। घुमाव । चाकर । ४ सवनन-सा पु० [म० दे० १ 'सवदन' । २ यत्र मन आदि के द्वारा प्रलय । कागात । ५ एक करप का नाम । ६ लपेटी या बटोरी स्त्रियो को माना। ३ प्राप्ति । उपलब्धि (को०)। ४ हुई वस्तु । ७ पिडी। गोला। ८ बट्टी। टिकिया। ६ घना अनुगग । ग्रासक्ति । प्रीति (को॰) । सम्ह । घनी गणि। १० प्रलयकाल के मात मेघो मे से एक । सवनना-सशा स्त्री० [40] दे० 'सवदना'। ११ इद्र का अनुचर एक मेघ जिससे बहुत जल बरमता है। सवपन-सज्ञा पुं० [स०] बीज वपन करने की क्रिया। खेत मे वीज विशेष -मेघो के द्रोण, पावत, पुष्कलावत आदि कई नाम कहे छोटना या बोना [को०। गए हैं । जिस प्रकार आवर्त विना जल का माना गया है, उसी सवर-मचा पुं० [स०] १ रोक । परिहार। दूर करना। जैसे,- प्रकार सवर्त अत्यत अधिक जलवाला कहा गया है। कालसवर । २ इद्रियनिग्रह । मन को दबाना या वश मे १२ मेघ । वादल । १३ मवत्सर । वपं । १४ एक दिव्यास्त्र । करना। ३ बीद मतानुसार एक प्रकार का व्रत। ४ वाँध । १५ एक केतु का नाम । १६ निश्चित समय पर होनेवाला वद। ५ पुल । मेतु। ६ चुनना। पमद करना । ७ कन्या का प्रलय । खः पलय (को०)। १७ समोच । प्राकुचन (को०)। वर चुनना। ८ अाच्छादन। आवरण (को०)। ६ वोध । १८ ग्रहो का एक योग । १९ विभीतक । बहेडा। समझ (को०)। १० आड या प्रोट करना। सकोचन (को०)। मवर्तक'-वि० [स०] १ रापेटनेवाला। २ लय या नाण करनेवाला। ११ एक प्रकार का हिरन (को०)। १२ एक गक्षम का नाम सवर्तक-मज्ञा पु० १ कृष्ण के भाई बलराम। २ बलराम का अस्त्र । दे० 'शबर' (को०)। १३ छिपाव। दुराव । गोपन (को०)। लागल। हल । ३ वडवानल । ४ विभीतक वृक्ष । बहेडा । १४ पानी । जल (को०)। १५ एक प्रकार की मछली (को०)। ७ प्रलय नामक मेघ । ८ प्रलय मेघ की अग्नि | एक नाग। १६ अपने को दश्यमान ससार से दूर करना । (जैन) । १० एक ऋपि। सवरए-पला पु० [म०] [वि० सवरणीय, सवृत्त] १ हटाना । दूर सवर्तकल्प-सपा पुं० [म०] प्रलय का एक भेद । (बौद्ध)। रखना। रोकना। २ वद करना । ढकना । ३ आच्छादित सवर्तकी-सद्धा पु० [स० सवर्तकिन्] कृष्ण के भाई बलराम । करना। छोपना। ४ छिपाना । गोपन करना। ५ छिपाव । दुराव । ६ ढक्कन या परदा । ७ घेरा। जिसके भीतर मव सवर्तकेतु -सज्ञा पुं॰ [स०] एक केतु का नाम । लोग न जा सके । बाँध । वद । ६ सेतु । पुल । १० किसी विशेप-यह सध्या समय पश्चिम दिशा मे उदय होता है और चित्तवृत्ति को दबाने या रोकने की क्रिया । निग्रह । जैसे,- आकाश के तृतीयाण तक फैला रहता है। इसकी चोटी धूमिल क्रोध सवरण करना । ११ गुदा के चमडे की तीन परतो मे से रग लिए ताम्र वर्ण की होती है। इसके उदय का फ्ल राजानो एक । १२ कुरु के पिता का नाम । १३ लेने के लिये पसद का नाश कहा गया है। करना । चुनना । १४ कन्या का विवाह के लिये वर या पति सवर्तन-मझा पुं० [म०] [वि० सवर्तनीय, मवर्तित, सवृत्त] १ लपे चुनना। १५ गुप्नभेद । रहस्य (को०)। १६ कपट । प्याज । टना। २ फेरा या चक्कर देना। ३ किमो ओर फिरना । प्रवृत्त छद्म (को०)। होना या करना। ४ पहुँचना । प्राप्त होना । ५ हल नामक सवरणीय-वि० [म०] १ निवारण करने योग्य । रोकने लायक । अस्त्र । ६ हरिवश के अनुसार एक दिव्यास्त्र (को०] । २ संगोपनीय । ३ विवाह के योग्य । वरने योग्य । सवर्तनी-सज्ञा सी० (स०] सृष्टि का लय । प्रलय । सवर्ग-पज्ञा पुं० [१०] [वि० सव→] १ अपनो ओर समेटना । सवर्तनीय-नि० [म०] लपेटने योग्य । फेरने योग्य । अपने निये बटोरना। २ भक्षण । भोजन । चट कर जाना । सति-सवा स्त्री० [म० 120 'सवत्तिका' । ३ खपत । लग जाना। ४ एक वस्तु का दूसरी मे समा जाना सवर्तिका-सक्षा ली० [स०११ लपेटी हुई वस्तु । २ बत्ती । दीप की या लीन हो जाना । जैसे, जीव का ब्रह्म मे लीन होना। शिखा । ३ कमल की बँधी पत्ती। ४ कोई बँधा हुआ पत्ता । यौ०-मवर्गविद्या = विनय, तल्लीनता अथवा रूपानर प्राप्ति ५ बलराम का अस्त्र, हल । नागल । ६ वह पत्ती जो पराग का ज्ञान। केशर के पास हो (को०)। ५ गुणनफल । ६ अग्नि का एक नाम (को०) । ७ बलात् ले लेना। सतित-वि० [सं०] १ लपेटा इमा। २ फेरा या घुमाया हुप्रा । अपहरण कला (को०)। सवर्द्धक विधेक-वि०, सज्ञा पुं० [म०] [स्त्री० मद्धिका] १ वढाने सवर्गए-पचा पुं० [म.] अपना लेना। आकर्पित करना । जैसे,- वाला। वर्धन करनेत्राता। २ अतिथियो का स्वागत सत्कार मिन्न सवर्गण [को०] । करनेवाला (को०)। सवर्य - वि० [म०] मवर्ग करने योग्य । गुणित करने योग्य [को०। सवर्द्धन, सवर्वन'-मज्ञा पु० [स०] [वि० सवर्द्वनीय, सर्धित, सवृद्ध] सवर्जन-पश पु० [म०] [वि० सबजनीय, सवर्जिन, सवृक्त] १ १ वृद्धि को प्राप्त होना । बढना । २ पालना । पोसना। ३ छीनना। खसोटना। ते लेना। हरण करना। २ खा जाना। वढाना। उन्नन करना। ४ (वाल आदि) बढाने का साधन उडा जाना। (को०)।
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