पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/६७

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संलक्षित ४८८३ मवदना कहते है। + सलक्षित-वि० [सं०] १ लखा हुअा। पहचाना हुआ। ताडा हुआ। सलीन -वि० [सं०] १ खूब लीन । अच्छी तरह लगा हुआ । २. २ रूप निश्चित किया हुआ । लक्षणो से जाना हुआ । पाच्छादित । ढका हुआ। छिपा हुआ। ३ सकुचित । सलक्ष्य--वि० [सं०] १ जो लखा जाय । जो पहचाना जाय । जो सिकुडा हुअा। ४ जो घुलकर एकरूप हो । विलीन | गर्क देखने मे या सके। २ जो लक्षणो से जाना जा सके। जो (को०)। लक्षणो द्वारा लक्षित हो सके। यौ०-सलीन कर्ण = जिसके कान नमित या लटके हो। सलीन सलक्ष्यक्रम व्यग्य-सज्ञा पुं० [स०] माहित्य शास्त्र के अनुसार व्यग्य मानस = खिन्नमन । उदास । के दो भेदो मे से एक। वह व्यजना जिसमे वाच्यार्थ से व्यगार्थ सलुलित-वि० [म०] १ जो ठीक दशा मे न हो। क्षुब्ध । अस्त- की प्राप्ति का क्रम लक्षित हो। व्यस्त । २, सपर्क या ससर्गप्राप्त [को०। विशेप--इसके द्वारा वस्तु और अलकार की व्यजना होती है । सलेख-सञ्ज्ञा पु० [स०] पूर्ण सयम । (बौद्ध)। जैमे, 'पेड का पत्ता नहीं हिलना' इसका व्यग्यार्थ हुआ कि सलेप-सज्ञा पु० [१०] कर्दम । कीचड [को० । 'हवा नही चलती'। इममे वाच्यार्थ के उपगत व्यग्यार्थ की सलोडन-सज्ञा पुं० [प्त०] [वि० सलोडित] १ (जल आदि को) खूब प्राप्ति लक्षित होती है। इसके विपरीत जहाँ रसव्यजना या भाव हिलाना या चलाना । क्षुब्ध करना। मथना । २ खूब व्यजना मे क्रम लक्षित नही होता, उसे असलक्ष्यक्रम व्यग्य हिलाना डुलाना । झकझोरना। ३ उलट पुलट करना। उथल पुथन करना। गडवड करना । सलग्न-वि० [स०] १ बिल्कुल लगा हुआ। सटा हुअा। मिला सवत्'-सधा पु० [स०] १ वर्ष । सवत्सर । साल । २ वर्ष विशेष जो हुआ.। २ भिडा हुअा। लडाई मे गुथा हुआ। ३.सवद्ध। किसी सय्या द्वारा सूचित किया जाता है । चली आती हुई जुडा हुया । ४ निमग्न । सलीन (को०)। वर्ष गणना का कोई वर्प । मन् । जैमे,- यह कौन सवत् है ? सलपन-पज्ञा पु० [स०] इधर उधर की बात चीत । प्रलाप । गपशप । ३ महाराज विक्रमादित्य के काल से चली हुई मानी जानेवाली वर्षगणना। ४ सग्राम । युद्ध (को०)। सलप्तक-सज्ञा पु० [स०] शिष्ट व्यक्ति । वह व्यक्ति जिसमे वात चीत की जा सके (को०] । संवत्'-सञ्ज्ञा स्त्री० भूमिविशेष। वह भूमि जो मिट्टी खनने के लिये प्रशस्त एवं पापाण आदि से रहित हो [को० । सलव्ध-वि० [स०] प्राप्त । पाया हुप्रा । गृहीत [को०] । सवत-सञ्ज्ञा पु० [स० सबन] दे० 'सवत्' । उ०-चद्र नाग वसु पच सलय-पचा पु० [स०] १ पक्षियो का उतरना या नीचे बैठना। २. गिनि सवत माधव मास ।-छिताई० (परिचय), पृ० ५। लीन होने की क्रिया । घुल जाना। ३ प्रलय। ४ निद्रा। नीद । लेटना । ५ घोसला (को०)। सवत्सर-मक्षा पु० [सं०] १ वर्ष । साल । २ पाँच पाँच वर्ष के युगो का प्रथम वर्ष। संलयन-सज्ञा पुं० [स०] [वि० सलीन] १ पक्षियो का नीचे उतरना विशेष-प्रभवादि साठ संवत्मर १२ यगो मे विभक्त है जिसमे से या बैठना। २ लय को प्राप्त होना। लीन होना। ३ नष्ट प्रत्येक युग पाँच वर्ष का होता है। प्रत्येक युग के प्रथम वर्ष होना । व्यक्त न रहना। दे० 'सलय'। का नाम सवत्सर है। इसका देवता अग्नि कहा गया है। सलाप-सक्षा पु० [सं०] १ परस्पर वार्तालाप । आपस की बातचीत । ३ शिव का एक नाम । ४ विक्रम संवत् (को०)। प्रेमपूर्ण वार्तालाप या कथोपकथन (को०) । ३. गुप्त वातचीत । यौ०-सवत्सरकर। सवत्सरनिरोध = एक वर्ष की कैद । बरस गोपनीय वार्ता (को०)। ४ स्वय कुछ कहना । प्रिय या भर का कारावास । सवत्सरफल = साल का शुभाशुभ फल । प्रिया के गुणो का प्रनपन (को०)। ५ नाटक मे एक प्रकार सवत्सरभुक्ति = सूर्य का एक वर्ष मार्ग । संवत्मर भृत = जो का सवाद जिसमे क्षोभ या आवेग नही होता, पर धीरता एक वर्ष के लिये रखा हो । सवत्सरभ्रमि = वर्ष भर मे परिक्रमा होती है। पूरी करनेवाला, जैसे मूर्य। सवत्सरमुखी = ज्येष्ट मास के सलापक-मज्ञा पु० [स०] १ नाटक मे एक प्रकार का सवाद । सलाप । शुक्लपक्ष की दशमी। संवत्सररय = एक वर्ष का पथ । वर्ष २ एक प्रकार का उपरूपक या छोटा अभिनय । भर की राह । सलापित-वि० [सं०] जिससे वार्तालाप किया गया गया हो। जिससे सवत्सरकर-सक्षा पुं० [मं०] शिव किो०] । कहा गया हो [को०)। सवत्सरीय-वि० [स०] सवत्सर से सबद्ध । वार्षिक । सात वाला। साल का [को०] । सलापी-वि० [स० सलापिन्] बातचीत या गपशप करनेवाला [को०] | सवदन-सा पु० [म.] १ परस्पर कथन । बातचीत । २ सवाद । मलालित' -वि० [स०] जिसका भलीभांति लालन किया गया हो (को०] । संदेशा। पैगाम । ३ विचार । पालोचन । ४ जाँच। ५ सतिप्त-वि० [सं०] १. लीन । भली भांति लिप्त । २ खूब लगा हुमा । जादू या मन के द्वारा वश मे करना (को०)। ६ यम् । तावीज सलीढ-वि० [सं० सलीड] १ अच्छी तरह चाटा हुअा। जिसे खूब (को०)। चखा गया हो । २. जिसका भोग किया गया हो [को०] । सवदना-समापी [स०] १ वश में करने वी निया। वशीकरण ।