संध्याचल सन्यासी दड और दिन का पहला एक दड ये दोनो मिलाकर प्रात सध्याकाल होते है, और दिन का अतिम एक दड और रात का पहला एक ढड ये दोनो मिलकर साय सध्याकाल होते है। इसके अतिरिक्त कुछ लोग ठीक दोपहर के समय एक और सध्या मानते है, जिसे मध्याह्न सध्या कहते है । २ दिन का अतिम भाग। सूर्यास्त के लगभग का समय । शाम । सायकाल । ३ पार्यों की एक विशिष्ट उपासना । विशेष—यह उपासना प्रतिदिन प्रात काल, मध्याह्न और सध्या के ममय होती है। इसमे स्नान और आचमन करके कुछ विशिष्ट मत्रो का पाठ, अगन्यास, और गायत्री का जप किया जाता है। द्विजातियो के लिये यह उपासना अवश्य कर्तव्य कही ४ दूसरे युग की सधि का समय । दो युगो के मिलने का समय । युगमधि । ५ एक प्राचीन नदी का नाम । ६ सीमा। हद । ७ सधान । ८ एक प्रकार का फूल । ६ प्रतिज्ञा। वादा (को०) । १० चिंतन । मनन (को०)। ११ योग । मेल (को०)। १२ ब्रह्मा की पत्नी (को०)। १३ दिन का कोई भी प्रभाग, जैसे पूर्वाह्न, मध्याह्न, अपराह्न (को०) । १४ काल या सूर्य की स्त्री (को०)। यौ०-सध्याकार्य, सध्यावदन = दे० 'सध्योपासन । सध्याकाल = (१) गोधूलि । झुटपुटा। (२) शाम । सायकाल । सध्या- कालिक = शाम से सबधित । सध्यापयोद = सायकालीन वर्षा के वादल । शाम की बदली । सध्यापुष्पी। सध्यावल । सध्यावलि सध्यामगल = साँझ के धार्मिक कृत्य । सध्याचल-सञ्ज्ञा पुं० [म० सन्ध्याचन] अस्ताचल [को०] । सध्यानाटी--मचा पु० [स० सन्ध्यानाटिन् शिव । महादेव । सध्यापुप्पी-सच्चा सी० [स० सन्ध्यापुप्पी] १ जातीफल । जायफल । २ एक प्रकार की जूही या चमेली [को०] । सध्यावधू-सज्ञा श्री० [स० सन्ध्यावध्] रात्रि । रात । निशि । सध्यावल--सज्ञा पु० [स० सन्ध्यावल] निशाचर। राक्षस । निश्चर। सव्यावलि--सड़ा पु० [स० सन्ध्यावलि] १ शिव के मदिर मे बनी हुई नदी को प्रतिमा। २ सायकालीन बलिप्रदान आदि पूजा (को०] । सध्याराग--सज्ञा पुं० [स०] १ श्यामकल्याण नाम का एक राग जिसका वर्ण सगीत गास्त्र के अनुसार काला माना गया है । २ सिंदूर । सेदुर। सध्याराम--समा पु० [स० सन्ध्याराम] ब्रह्मा । मध्यासन-मशा पु० [स० सन्ध्यासन] कामदक नीति के अनुसार आपस मे लडकर शत्रुओ का कमजोर होकर बैठ जाना । सध्योपासन-मधा पु० [स० सन्ध्योपासन] सुवह, शाम और मध्याह्न के समय की जानेवाली उपासना । विशेष दे० 'सध्या-३ । सध्वान-वि० [स० सन्ध्वान] सन् मन् की आवाज या ध्वनि उत्पन्न करनेवाला (को०] । सनिक्षेप्ता--सज्ञा पु० [स० सम् + निक्षेप्तृ] कौटिल्य के अनुसार श्रेणी या संघ के धन को रखनेवाला। खजानची। सन्यसन--सज्ञा पु० [स० सन्न्यसन] दे० 'सन्यसन' । सन्यस्त-वि॰ [म० सन्न्यस्त] दे० 'सन्धस्त' । सन्यास-पदा पु० [स० मन्न्यास] १ भारतीय आर्यों के चार आश्रमो मे से अतिम आश्रम । वानप्रस्थ आश्रम के पश्चात् का अाश्रम । विशेष-प्राचीन भारतीय आर्यो ने जीवन के चार विभाग किए थे, जो आश्रम कहलाते हैं। (दे० 'अाश्रम') इनमे से अतिम आश्रम सन्यास कहलाता है। पचीस वर्प तक वानप्रस्थ आश्रम मे रहने के उपरात ७५वे वर्ष के अत मे इस आश्रम मे प्रवेश करने का विधान है। इस पाश्रम मे काम्य और नित्य आदि सब कर्म किए तो जाते है, पर बिलकुल निष्काम भाव से किए जाते है, किसी प्रकार के फल की प्राशा रखकर नही किए जाते । विशेष दे० 'सन्यासी' । २ भावप्रकाश के अनुसार मूळ रोग का एक भेद । विशेष-यह बहुत ही भयानक कहा गया है। यह रोग प्राय निर्वल मन्प्यो को हुआ करता है और इसमे रोगी के 'मर जाने की भी आशका रहती है। साधारण मूर्छा से इसमे यह अतर हे कि मूर्छा मे तो रोगी थोडी देर मे आप से आप होश मे आ जाता है, पर इसमे बिना औषध और चिकित्सा के होण नही होता। ३ जटामासी । (अन्य अर्थों के लिये दे० 'सन्यास' शब्द)। सन्यासी--सहा पुं० [स० सन्न्यासिन्] वह जो सन्यास आश्रम मे हो । सन्यास प्राश्रम मे रहने और उसके नियमो का पालन करनेवाला। विशेष--सन्यासिबा के लिये शास्त्रो मे अनेक प्रकार के विधान है, जिनमे से कुछ इस प्रकार है--सन्यासी को सब प्रकार की तृष्णानो का परित्याग करके घर वार छोडकर जगल मे रहना चाहिए, सदा एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करना चाहिए, कही एक जगह जमकर न रहना चाहिए, गैरिक कौपीन पहनना चाहिए, दड और कमडलु अपने पास रखना चाहिए , सिर मुडाए रहना चाहिए, शिखा और सूत्र का परि- त्याग कर देना चाहिए, मिक्षा के द्वारा जीवन निर्वाह करना चाहिए, एकात स्थान मे निवास करना चाहिए, सव पदार्थों और सब कार्यो मे समदर्शी होना चाहिए, पीर सदुपदेश आदि के द्वारा लोगो का कल्याण करना चाहिए । अाजकल सन्यासियो के गिरि, पुरी, भारती अादि अनेक भेद पाए जाते है। एक प्रकार के कौल या वाममार्गी सन्यासी भी होते है जो मद्य मास आदि का भी सेवन करते है। इनके अतिरिक्त नागे, दगली, अघोरी, आकाशमुखी, मौनी आदि भी सन्यासियो के ही अर्तगत माने जाते है। २ वह जो छोड देता है या जमा करता हे (को०)। ३. वह जो पृथक् या अलग कर देता है (को॰) । ४ भोजन का त्याग करनेवाला । त्यक्ताहार व्यक्ति (को॰) ।
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